छिंदवाड़ा। सतपुड़ा की वादियों के बीच बसे पातालकोट के नाम एक और उपलब्धि जुड़ गई है. वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड ने पातालकोट का नाम अपनी सूची में दर्ज किया है. वहीं इस स्थान को विश्व का सबसे अनोखा स्थान माना है. भारत सरकार ने भी पातालकोट को एडवेंचर प्लेस ऑफ गोंडवाना के नाम पर नई पहचान दी है. चिमटीपुर में आयोजित हुए कार्यक्रम में संस्था के विल्हेम जेजलर ने ये प्रमाणपत्र जुन्नारदेव एसडीएम मधुवंतराव धुर्वे को प्रदान किया है. ये पहला मौका है, जब विश्व की सबसे बड़ी रिकॉर्ड बुक में जिले के पातालकोट को शामिल किया गया है.
पातालकोट विश्व का अनोखा स्थान: चिमटीपुर में आयोजित हुए कार्यक्रम में संस्था के विल्हेम जेजलर ने ये प्रमाणपत्र जुन्नारदेव एसडीएम मधुवंतराव धुर्वे को प्रदान किया है. ये पहला मौका है, जब विश्व की सबसे बड़ी रिकॉर्ड बुक में जिले के पातालकोट को शामिल किया गया है. पातालकोट की पहाड़ियों में मौजूद जड़ी- बूटियों के भंडार और यहां की प्राकृतिक सुंदरता ने हमेशा ही पर्यटकों का ध्यान आकर्षित किया है. रहस्य, रोमांच और विशेष पिछड़ी जनजाती का निवास स्थान माने जाने वाले पातालकोट को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं.
पातालकोट है जड़ी-बूटियों का खजाना: पातालकोट के जंगलों में कई दुर्लभ जड़ी बूटियों का खजाना है. इनमें से कई बूटियां तो सिर्फ हिमालय में मिलती है. शोधकर्ताओं के लिए ये आज भी रहस्य का विषय है कि इन दुर्लभ बूटियों के यहां विकसित होने का मुख्य कारण क्या है.
MP: भारिया आदिवासी बने पातालकोट के मालिक, हैबिटेट राइटस के तहत मिला अधिकार, छिंदवाड़ा बना देश का पहला जिला
गर्भ में पल रही आज भी सभ्यता: पातालकोट के 12 गांवों में आज भी सालों पुरानी पुरानी सभ्यता पल रही है. यहां पाई जाने वाली भारिया जनजाति को विशेष जनजाति का दर्जा शासन ने दिया है. ये जनजाति सिर्फ पातालकोट में पाई जाती है. इनके संरक्षण के भी प्रयास किए जा रहे हैं. इन्हें कई सुविधाएं भी शासन द्वारा दी जाती है. समुद्र तल से 2750 से 3250 फीट की औसत ऊंचाई पर बसा पातालकोट 79 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. आज भी यहां के जंगलों के बीच बसे 12 गांवों में लोग वहीं पुरानी जीवन शैली के अनुसार निवास करते हैं. बारिश में पूरी पहाड़ी हरियाली की चादर ओढ़ लेती है.
यहां पल रही सभ्यता के रीति-रिवाज: पातालकोट के भारिया जनजाति के लोग इस आधुनिक युग में भी कोदो-कुटकी, महुआ की खीर, बाजरे की रोटी का सेवन करते हैं. आदिवासियों के परंपरागत भोजन आज भी यहां प्रचलित है. यहां रहने वाले आदिवासी रावण के पुत्र मेघनाथ का सम्मान करती है. चैत्र पूर्णिमा पर इस मौके पर मेले का भी आयोजन किया जाता है, यहां आदिवासियों के अलग धार्मिक स्थल है.
अब पहुंचना हुआ आसान: पहले पातालकोट के रहवासियों तक पहुंचना जितना मुश्किल था, अब उतना ही आसान हो चुका है. 22 करोड़ की लागत से नई सड़क का निर्माण कराया गया है, जो सीधे पातालकोट के गांवों तक जाती है. पहले यहां पहुंचने के लिए पहाड़ियों पर बने ऊबर खाबड़ रास्तों से ही जाया जा सकता था.