छिंदवाड़ा। पारंपरिक खेती से हटकर छिंदवाड़ा जिले के किसानों ने कॉन्ट्रैक्ट खेती का सहारा लिया है. अब वही कॉन्ट्रैक्ट खेती किसानों के लिए लाभ का धंधा साबित हो रही है(Chhindwara contract farming profitable deal). छिंदवाड़ा जिले में अधिकतर किसान कॉन्ट्रैक्ट के जरिए आलू की खेती कर रहे हैं और मल्टीनेशनल कंपनी सीधे किसानों के खेतों से आलू खरीद कर ले जा रही है.
10 साल पहले शुरू हुई थी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग: छिंदवाड़ा जिले के किसानों ने 2012 में निजी कंपनी के साथ कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की शुरुआत की थी. पेप्सीको ने चिप्स बनाने के लिए आलू उत्पादन के लिए किसानों से अनुबंध किया था. सबसे पहले इसके तहत महज 5 एकड़ में आलू की फसल लगाई गई थी. आज जिले में करीब 4 हजार एकड़ जमीन में आलू बोया जा रहा है. हर साल सैकड़ों टन आलू निर्यात किया जाता है.
किसानों को बीज और दवाई उपलब्ध: कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के जरिए कंपनी और किसानों के बीच वेंडर होते हैं. कंपनी वेंडरों के जरिए किसानों से संपर्क करती है और फिर किसानों को खेतों में लगाने के लिए बीज से लेकर उसमें उपयोग की जाने वाली दवाइयां तक देती है. बाद में लागत मूल्य निकालने के साथ ही निर्धारित रेट तय होता है और उसी रेट पर कंपनियां किसानों से उनकी उपज खरीदती हैं.
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से किसान ने कमाया तीन गुना मुनाफा
कॉन्ट्रैक्ट के बाद फसल बेचने में नहीं आती दिक्कत: ईटीवी भारत को किसानों ने बताया कि कंपनी से कॉन्ट्रैक्ट के बाद किसी प्रकार की समस्या नहीं होती. 30 से 40 हजार प्रति एकड़ खर्च होता है और मुनाफा भी 60 से 70 हजार प्रति एकड़ तक हो जाता है. निश्चित रेट में कंपनियां उनसे उनकी उपज खरीदती हैं और उन्हें कहीं बाहर भी नहीं ले जाना पड़ता(Chhindwara cultivating potatoes through contract). किसान कलेक्शन सेंटर में अपनी उपज जमा करता है, जहां से सीधे एक कंपनी के वेयर हाउसों में उनकी उपज पहुंचती है.
50 से 60 हजार प्रति एकड़ कमाता है किसान: छिंदवाड़ा जिले के उमरेठ बिछुवा मोहखेड़ ब्लॉक के किसानों ने कंपनी के साथ अनुबंध किया है. उमरेठ रिधोरा में करीब 80 फीसद किसान इसी प्रकार खेती कर रहे हैं. कंपनी और किसानों के बीच करार के बाद अगर बाजार में उनकी फसल के रेट ज्यादा है, तो किसान बाजार में भी फसल बेच सकता है.