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Chaitra Navratri 2023: प्रथम दर्शना जागृत पीठ मां शैलपुत्री के इस मंदिर में मनचाही मुराद होती है पूरी

नवरात्र में 9 दिनों तक चलने वाले इस पावन त्यौहार पर हर दिन अलग-अलग देवियों को पूजा जाता है. पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है. ऐसा ही एक दरबार छिंदवाड़ा के बुधवारी बाजार में स्थित है. मां शैलपुत्री का प्रथम दर्शना जागृत पीठ के नाम से विख्यात मां के इस दरबार में जो भी सच्चे मन से आता है, उसकी मनोकामना पूरी होती है.

Maa Shailputri fulfills all wishes
प्रथम दर्शना जागृत पीठ मां शैलपुत्री के इस मंदिर में मनचाही मुराद होती है पूरी
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Published : Mar 22, 2023, 8:31 AM IST

छिंदवाड़ा। बरगद के वृक्ष के नीचे विराजमान माता शैलपुत्री की आराधना करने वाले मंदिर के पुजारी पंडित चंद्र प्रताप द्विवेदी ने बताया कि ऐसे माता के दरबार बहुत ही कम मिलते हैं, जो वटवृक्ष के नीचे होते हैं. माता का मंदिर करीब 150 से 200 साल पुराना है. 25 साल पहले इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया था. मान्यता है कि जिनकी बरसों से कोई संतान नहीं है, वे सच्चे मन से मां शैलपुत्री का पूजन अर्चन करते हैं तो माता उनकी मनोकामना पूरी करती हैं. जिनके विवाह नहीं होते उनके संबंधों को जोड़ा जाता है. मां ने कई के असाध्य रोगों को भी दूर किया है.

भगवान शिव व पार्वती एक जगह : पुजारी चंद्र प्रताप द्विवेदी ने बताया कि माता के धाम अक्सर पहाड़ों में ही मिला करते हैं. यह पहला स्थान है जहां पर बरगद के पेड़ के नीचे भगवान गुप्तेश्वर और माता शैलपुत्री एक साथ विराजित हैं. बरगद का पेड़ विश्वास का प्रतीक माना जाता है. माता के नौ रूपों में पहला रूप शैलपुत्री का है और माता का ही रूप पार्वती जी भी हैं. जहां पर स्वयं भगवान शिव और पार्वती विराजित हैं तो इस स्थान के प्रति श्रद्धा अलग होती है. दरबार का नाम प्रथम दर्शना जागृत पीठ है. प्रथम दर्शना मां शैलपुत्री की दर्शन के लिए यूं तो पूरे वर्ष भक्तों का आना जाना लगा रहता है, लेकिन नवरात्र पर यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है. मां शैलपुत्री दरबार में स्थापित माता की चमत्कारिक प्रतिमा असंख्य श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है. हर साल नवरात्रि में यहां पर मनोकामना कलश स्थापित किए जाते हैं.

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मां शैलपुत्री की ऐसे करें आराधना : मां शैलपुत्री की पूजन सामग्री के लिए एक छोटी चुनरी, एक बड़ी चुनरी, कलावा, चौकी, कलश, कुमकुम, पान, सुपारी, कपूर, जौ, नारियल, लोंग, बतासे, आम के पत्ते, केले का फल, देसी घी, धूप, दीपक, अगरबत्ती, मिट्टी का बर्तन, माता का श्रृंगार का सामान, देवी की प्रतिमा या फोटो, फूलों की माला, गोबर का उपला, सूखे मेवा, मावे की मिठाई, लाल फूल, एक कटोरी गंगाजल आदि सामग्री रख लें और विधिविधान से दुर्गा सप्तशती या दुर्गा स्तुति आदि का पाठ जरूर करें. मां का यह स्वरूप बेहद ही शुभ माना जाता है.

छिंदवाड़ा। बरगद के वृक्ष के नीचे विराजमान माता शैलपुत्री की आराधना करने वाले मंदिर के पुजारी पंडित चंद्र प्रताप द्विवेदी ने बताया कि ऐसे माता के दरबार बहुत ही कम मिलते हैं, जो वटवृक्ष के नीचे होते हैं. माता का मंदिर करीब 150 से 200 साल पुराना है. 25 साल पहले इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया था. मान्यता है कि जिनकी बरसों से कोई संतान नहीं है, वे सच्चे मन से मां शैलपुत्री का पूजन अर्चन करते हैं तो माता उनकी मनोकामना पूरी करती हैं. जिनके विवाह नहीं होते उनके संबंधों को जोड़ा जाता है. मां ने कई के असाध्य रोगों को भी दूर किया है.

भगवान शिव व पार्वती एक जगह : पुजारी चंद्र प्रताप द्विवेदी ने बताया कि माता के धाम अक्सर पहाड़ों में ही मिला करते हैं. यह पहला स्थान है जहां पर बरगद के पेड़ के नीचे भगवान गुप्तेश्वर और माता शैलपुत्री एक साथ विराजित हैं. बरगद का पेड़ विश्वास का प्रतीक माना जाता है. माता के नौ रूपों में पहला रूप शैलपुत्री का है और माता का ही रूप पार्वती जी भी हैं. जहां पर स्वयं भगवान शिव और पार्वती विराजित हैं तो इस स्थान के प्रति श्रद्धा अलग होती है. दरबार का नाम प्रथम दर्शना जागृत पीठ है. प्रथम दर्शना मां शैलपुत्री की दर्शन के लिए यूं तो पूरे वर्ष भक्तों का आना जाना लगा रहता है, लेकिन नवरात्र पर यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है. मां शैलपुत्री दरबार में स्थापित माता की चमत्कारिक प्रतिमा असंख्य श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है. हर साल नवरात्रि में यहां पर मनोकामना कलश स्थापित किए जाते हैं.

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