छिन्दवाड़ा। कोरोना की मार से देश संभलने की कोशिश कर ही रहा है, कि बर्ड फ्लू ने भी कई जगह पैर पसार लिए हैं. कॉर्न सिटी छिंदवाड़ा में बर्ड फ्लू की मार किसानों पर पड़ रही है. आप सोच रहे होंगे कि बर्ड फ्लू का भला किसानों से क्या लेना देना. आपको बता दें कि छिंदवाड़ा के किसान मक्के की फसल पर काफी निर्भर है. इसी मक्के की खपत मुर्गी दाना के रूप में सबसे ज्यादा होती है. जब मुर्गियों पर बर्ड फ्लू का कहर टूटा तो मक्के की डिमांड कम हो गई. इससे दाम गिर गए और किसान भी चित हो गए.
कॉर्न सिटी के किसान पर बर्ड फ्लू की मार
छिंदवाड़ा मध्यप्रदेश का कॉर्न सिटी कहलाता है. यहां के किसानों की जेब और कॉर्न यानि मक्का का सीधा संबंध है. यहां भरपूर मक्का होता है. दाम भी अच्छे मिलते हैं. जेब गर्म रहती है तो किसानों के चहरे पर भी उसकी चमक दिखती है. मक्के के दाने मुर्गियों का पसंदीदा भोजन है. लिहाजा इसकी सबसे ज्यादा खपत मुर्गी दाने के रूप में होती है. मुर्गियों के खातिर पोल्ट्री फॉर्म भी हाथों हाथ मक्का खरीद लेते हैं. यानि मुर्गियां खुश तो किसान भी खुश. लेकिन जैसे की बर्ड फ्लू ने पैर पसारे, तो सबसे पहले मार मुर्गियों पर ही पड़ी. मुर्गियां दम तोड़ने लगी. पोल्ट्री फॉर्म का धंधा मंदा पड़ने लगा. मक्के का डिमांड कम हो गई. ऐसे में किसान भी लाचार होने लगा. डिमांड कम हुई तो मक्के के दाम गिर गए. किसान की टाइट जेब ढीली होने लगी, तो उसके चेहरे की रंगत भी फीकी पड़ गई.
करीब 25 फीसदी कम हुई किसानों की कमाई
मध्य प्रदेश में मक्के का सबसे ज्यादा उत्पादन छिंदवाड़ा के काश्तकार करते हैं. समर्थन मूल्य पर खरीद नहीं होने से पहले ही भाव कम थे. लेकिन पोल्ट्री फॉर्म काफी हद तक इसकी पूर्ति कर देते थे. बर्ड फ्लू से 1500 रुपए प्रति क्विंटल के भाव से मक्का आसानी से बिक जाता था. लेकिन बर्ड फ्लू फैलने के बाद इसके दाम काफी गिर गए . अब मक्का 800 रुपए प्रति क्विंटल से लेकर 1100 सौ रुपए प्रति क्विंटल तक ही मिल रहे हैं.
किसानों को अच्छे दिन का इंतजार
मक्के की फसल को छिंदवाड़ा के किसानों की लाइफ लाइन माना जाता है. जिले में मक्के का भरपूर उत्पादन होता है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि खेतों से मक्का निकाले करीब 3 महीने गुजर चुके हैं. अभी भी मंडी में रोजाना करीब 3000 क्विंटल मक्के की आवक हो रही है. मंडी अधिकारी का कहना है कि बर्ड फ्लू के चलते भाव कम हो गए हैं . इसलिए आवक में भी कमी आई है. शायद किसान बर्ड फ्लू के जाने और अच्छे दिन आने का इंतजार कर रहा है.
मुर्गियां आबाद, तो किसान भी खुशहाल
छिंदवाड़ा जिले में खरीफ के मौसम में करीब 75 फीसदी जमीन पर मक्का उगाया जाता है. साढ़े 3 लाख हेक्टेयर में से 2 लाख 60 हजार हेक्टेयर में मक्के की फसल लहलहाती है. चौरई चांद और अमरवाड़ा विकासखंड में सबसे ज्यादा मक्के की फसल होती है. फिलहाल कॉर्न सिटी का किसान संकट में है. उसे भरोसा है अंधेरा छंटेगा और मुर्गियां फिर से आबाद होंगी. और तभी छिंदवाड़ा का किसान भी खिलखिलाएगा.