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महिलाओं के हौसले को सलाम, पानी के लिए 'चीर' डाला 107 मीटर लंबा पहाड़

छतरपुर में ग्रामीण महिलाओं ने परमार्थ समाज सेवी संस्थान के साथ मिलकर पानी के लिए 107 मीटर लंबे पहाड़ को काटकर रास्ता बनाया है. जानें जल सहेलियों की कहानी...

Women dug mountain for water
पानी के लिए महिलाओं ने खोद दिया पहाड़
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Published : Sep 15, 2020, 6:04 PM IST

छतरपुर। बिन पानी सब सून! ये तो सुना ही होगा. अपनी प्यास बुझाने के लिए शख्स को कभी मीलों सफर तय करना पड़ता है तो कभी घंटों कतारों में लगना पड़ता है. यूं तो पर्यावरण बचाने और जल संवर्धन का काम करने वाली कई संस्थाएं शहरों में काम करती हैं. लेकिन छतरपुर के एक गांव में महिलाओं ने खुद पहाड़ खोद पानी की समस्या का समाधान निकाला है.

पानी के लिए महिलाओं ने खोद दिया पहाड़

बड़ामलहरा ब्लॉक की ग्राम पंचायत भेल्दा के एक छोटे से गांव अंगरोठा की करीब 100 से ज्यादा महिलाओं ने जल संवर्धन के क्षेत्र में परमार्थ समाज सेवी संस्थान के साथ मिलकर लगभग 107 मीटर लंबे पहाड़ को काटकर एक ऐसा रास्ता बनाया है, जिससे उनके गांव के तालाब में अब पानी भरने लगा है जो कभी सूखा पड़ा रहता था. अब उन महिलाओं के चेहरे पर खुशी है, जहां कभी मायूसी छाई रहती थी.

महिलाओं ने बदली गांव की दशा और दिशा

अंगरोठा गांव की महिलाओं ने बताया कि यह जीत जल सहेलियों की जीत है, ये जीत पंचायत की जीत है. महिलाओं ने बताया कि पहाड़ों के कारण बारिश का पानी बहकर निकल जाता था. ऐसे में इस पानी को सहेजने के बारे में महिलाओं ने सोचा, जिसके बाद इन जल महिलाओं ने गांव की दशा और दिशा दोनों ही बदल कर रख दी.

उपेक्षा का शिकार रहा तालाब

जल जन जोड़ो अभियान के राज्य संयोजक मानवेंद्र सिंह बताते हैं कि बुंदेलखंड पैकेज से इस तालाब का निर्माण कार्य हुआ था, जो अब तक उपेक्षा का शिकार रहा है. इसमें पर्याप्त पानी नहीं भर रहा था. वन विभाग के साथ सामंजस्य स्थापित कर 107 मीटर के पहाड़ को काटा गया और अब इस 40 एकड़ के तालाब में लगभग 70 एकड़ पानी भर रहा है. सूखे हुए कुएं में पानी आ चुका हैं, जो हैडपंप सूख गए थे, अब वह पानी देने लगे हैं. कृषि के सुनहरे भविष्य की कल्पना किसान कर रहे हैं. 100 से ज्यादा महिलाओं ने श्रमदान कर अपने गांव की खुशहाली के लिए मेहनत की है.

ये भी पढ़ें- ऑनलाइन क्लासेस से प्रदेश के कई छात्र आज भी वंचित, बेअसर हुई डिजिटल पढ़ाई

जल सहेली बबीता राजपूत बताती हैं कि परमार्थ समाज सेवी संस्थान के मार्गदर्शन और सहयोग से यह संभव हो पाया है. दूर-दूर से तीन किलोमीटर पैदल चलकर महिलाएं यहां पर आती थी और श्रमदान किया करती थीं. लगभग 18 महीनों की मेहनत के बाद आज यह परिणाम आंखों के सामने है. इस तस्वीर से महिलाओं की और गांव की दशा और दिशा दोनों बदल चुकी है. महिलाओं ने इस पर्वत पर पौधे लगाने और पर्वत को बचाने का संकल्प भी लिया है.

जानकारी के मुताबिक अब तक करीब 11 तालाबों को फिर से जीवित किया जा चुका है. सबसे बड़ी बात यह है कि इस तालाब के भरने से सूखी हुई बछेड़ी नदी एक बार फिर से जी उठेगी. बछेड़ी नदी का उद्गम स्थल अंगरोठा है. अब बछेड़ी भी एक बार फिर जीवित हो चुकी है, जो कभी सिर्फ बारिश में ही बहा करती थी.

छतरपुर। बिन पानी सब सून! ये तो सुना ही होगा. अपनी प्यास बुझाने के लिए शख्स को कभी मीलों सफर तय करना पड़ता है तो कभी घंटों कतारों में लगना पड़ता है. यूं तो पर्यावरण बचाने और जल संवर्धन का काम करने वाली कई संस्थाएं शहरों में काम करती हैं. लेकिन छतरपुर के एक गांव में महिलाओं ने खुद पहाड़ खोद पानी की समस्या का समाधान निकाला है.

पानी के लिए महिलाओं ने खोद दिया पहाड़

बड़ामलहरा ब्लॉक की ग्राम पंचायत भेल्दा के एक छोटे से गांव अंगरोठा की करीब 100 से ज्यादा महिलाओं ने जल संवर्धन के क्षेत्र में परमार्थ समाज सेवी संस्थान के साथ मिलकर लगभग 107 मीटर लंबे पहाड़ को काटकर एक ऐसा रास्ता बनाया है, जिससे उनके गांव के तालाब में अब पानी भरने लगा है जो कभी सूखा पड़ा रहता था. अब उन महिलाओं के चेहरे पर खुशी है, जहां कभी मायूसी छाई रहती थी.

महिलाओं ने बदली गांव की दशा और दिशा

अंगरोठा गांव की महिलाओं ने बताया कि यह जीत जल सहेलियों की जीत है, ये जीत पंचायत की जीत है. महिलाओं ने बताया कि पहाड़ों के कारण बारिश का पानी बहकर निकल जाता था. ऐसे में इस पानी को सहेजने के बारे में महिलाओं ने सोचा, जिसके बाद इन जल महिलाओं ने गांव की दशा और दिशा दोनों ही बदल कर रख दी.

उपेक्षा का शिकार रहा तालाब

जल जन जोड़ो अभियान के राज्य संयोजक मानवेंद्र सिंह बताते हैं कि बुंदेलखंड पैकेज से इस तालाब का निर्माण कार्य हुआ था, जो अब तक उपेक्षा का शिकार रहा है. इसमें पर्याप्त पानी नहीं भर रहा था. वन विभाग के साथ सामंजस्य स्थापित कर 107 मीटर के पहाड़ को काटा गया और अब इस 40 एकड़ के तालाब में लगभग 70 एकड़ पानी भर रहा है. सूखे हुए कुएं में पानी आ चुका हैं, जो हैडपंप सूख गए थे, अब वह पानी देने लगे हैं. कृषि के सुनहरे भविष्य की कल्पना किसान कर रहे हैं. 100 से ज्यादा महिलाओं ने श्रमदान कर अपने गांव की खुशहाली के लिए मेहनत की है.

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जल सहेली बबीता राजपूत बताती हैं कि परमार्थ समाज सेवी संस्थान के मार्गदर्शन और सहयोग से यह संभव हो पाया है. दूर-दूर से तीन किलोमीटर पैदल चलकर महिलाएं यहां पर आती थी और श्रमदान किया करती थीं. लगभग 18 महीनों की मेहनत के बाद आज यह परिणाम आंखों के सामने है. इस तस्वीर से महिलाओं की और गांव की दशा और दिशा दोनों बदल चुकी है. महिलाओं ने इस पर्वत पर पौधे लगाने और पर्वत को बचाने का संकल्प भी लिया है.

जानकारी के मुताबिक अब तक करीब 11 तालाबों को फिर से जीवित किया जा चुका है. सबसे बड़ी बात यह है कि इस तालाब के भरने से सूखी हुई बछेड़ी नदी एक बार फिर से जी उठेगी. बछेड़ी नदी का उद्गम स्थल अंगरोठा है. अब बछेड़ी भी एक बार फिर जीवित हो चुकी है, जो कभी सिर्फ बारिश में ही बहा करती थी.

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