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बेरोजगारी के चलते पलायन को मजबूर हुई समाज सेवा पुरस्कार से सम्मानित सुखरनिया आदिवासी

छतरपुर जिले के खजुराहो क्षेत्र में रहने वाली सुखरनिया आदिवासी बेरोजगारी के चलते अपने गांव से पलायन करने को मजबूर हो गया, 2014 में तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान ने सुखरनिया को विजयाराजे सिंधिया समाज सेवा पुरस्कार से सम्मानित किया था.

सुखरनिया आदिवासी का पलायन
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Published : Oct 15, 2019, 6:34 AM IST

Updated : Oct 15, 2019, 9:46 AM IST

छतरपुर। खजुराहो के कुंदनपुरा में रहने वाली विजयाराजे सिंधिया समाज सेवा पुरस्कार से सम्मानित सुखरनिया आदिवासी बेरोजगारी के चलते अपने गांव से पलायन करने पर मजबूर है, सुखरनिया को 2014 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा सम्मानित किया गया था. जिसमें उन्हें एक प्रशस्ति पत्र के अलावा एक लाख की राशि भी दी गई थी.

सुखरनिया आदिवासी का पलायन

सुखरनिया ने 2012 से 2014 तक गांव में लगातार नशा मुक्ति शिक्षा एवं महिला उत्पीड़न को लेकर एक आंदोलन चलाया था. जिसमें उन्होंने गांव में बनने वाली शराब, शराब पीने वाले व्यक्ति एवं बच्चों को पढ़ाई न कराने के विरोध में मुहिम चलाई थी. आखिर में लगातार असामाजिक तत्वों से संघर्ष करते हुए गांव में शराब बंद करावा दी.

जैसे-जैसे समय बीतता गया सरकार और स्थानीय प्रशासन में उनकी महत्ता कम होती चली गई और आज स्थिति यह है कि उन्हें अपना घर छोड़कर दिल्ली में दिहाड़ी करने के लिए जाना पड़ा. सुखरनिया की मां बताती हैं कि उनकी बेटी कुछ महीनों से बाहर काम करने के लिए गई है. गांव में कोई भी काम नहीं है और ज्यादा बरसात होने की वजह से खेती-बाड़ी भी खराब हो गई है.

भले ही आज पूरा देश विश्व ग्रामीण महिला दिवस मनाया जा रहा हो, लेकिन सुखरनिया को बेरोजगारी और आर्थिक तंगी के चलते अपना घर छोड़ना पड़ा. सम्मानित करने के बाद सरकार ने न तो दोबारा इस आदिवासी महिला की ओर ध्यान दिया और न ही दोबारा उसे प्रोत्साहित करने की कोशिश की.

छतरपुर। खजुराहो के कुंदनपुरा में रहने वाली विजयाराजे सिंधिया समाज सेवा पुरस्कार से सम्मानित सुखरनिया आदिवासी बेरोजगारी के चलते अपने गांव से पलायन करने पर मजबूर है, सुखरनिया को 2014 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा सम्मानित किया गया था. जिसमें उन्हें एक प्रशस्ति पत्र के अलावा एक लाख की राशि भी दी गई थी.

सुखरनिया आदिवासी का पलायन

सुखरनिया ने 2012 से 2014 तक गांव में लगातार नशा मुक्ति शिक्षा एवं महिला उत्पीड़न को लेकर एक आंदोलन चलाया था. जिसमें उन्होंने गांव में बनने वाली शराब, शराब पीने वाले व्यक्ति एवं बच्चों को पढ़ाई न कराने के विरोध में मुहिम चलाई थी. आखिर में लगातार असामाजिक तत्वों से संघर्ष करते हुए गांव में शराब बंद करावा दी.

जैसे-जैसे समय बीतता गया सरकार और स्थानीय प्रशासन में उनकी महत्ता कम होती चली गई और आज स्थिति यह है कि उन्हें अपना घर छोड़कर दिल्ली में दिहाड़ी करने के लिए जाना पड़ा. सुखरनिया की मां बताती हैं कि उनकी बेटी कुछ महीनों से बाहर काम करने के लिए गई है. गांव में कोई भी काम नहीं है और ज्यादा बरसात होने की वजह से खेती-बाड़ी भी खराब हो गई है.

भले ही आज पूरा देश विश्व ग्रामीण महिला दिवस मनाया जा रहा हो, लेकिन सुखरनिया को बेरोजगारी और आर्थिक तंगी के चलते अपना घर छोड़ना पड़ा. सम्मानित करने के बाद सरकार ने न तो दोबारा इस आदिवासी महिला की ओर ध्यान दिया और न ही दोबारा उसे प्रोत्साहित करने की कोशिश की.

Intro:छतरपुर जिले के खजुराहो क्षेत्र में रहने वाली सुखरनियां आदिवासी बेरोजगारी के चलते अपने गांव से पलायन कर गई सुखमणि आदिवासी को 2014 में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा माता विजयाराजे सिंधिया समाज सेवा पुरस्कार से सम्मानित किया गया था जिसमें उन्हें एक प्रशस्ति पत्र के अलावा एक लाख की राशि भी दी गई थी!


Body:देश में आज विश्व ग्रामीण महिला दिवस मनाया जा रहा है ऐसे में छतरपुर जिले के विश्व पर्यटन स्थल खजुराहो के पास सटा हुआ एक गांव कुंदनपुरा की एक क्रांतिकारी महिला बेरोजगारी के चलते अपना गांव छोड़कर चली गई आपको बताते हैं कि सुखरनिया आदिवासी ने 2012 से लेकर 2014 तक गांव में लगातार नशा मुक्ति शिक्षा एवं महिला उत्पीड़न को लेकर एक आंदोलन चलाया था जिसमें उन्होंने गांव में बनने वाली शराब शराब पीने वाले व्यक्ति एवं बच्चों की पढ़ाई को लेकर जो दिया था शराब मुक्ति को लेकर सुख रनिया आदिवासी ने कई बार डंडे भी चलाए लगातार असामाजिक तत्वों से संघर्ष करते हुए गांव में शराबबंदी करा दी एवं गांव में रहने वाले बच्चों को स्कूल में दाखिला करा दिया!

एक आदिवासी महिला के इस प्रकार के कार्यों से तत्कालीन सरकार नसरत बेहद प्रभावित हुई बल्कि उसे एक प्रशस्ति पत्र एवं ₹100000 का पुरस्कार भी दिया गया जिसके बाद कई महीने तक सुखरनिया आदिवासी सुर्खियों में रही!

लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया सरकार एवं स्थानीय प्रशासन में उनकी महत्ता कम होती चली गई और आज स्थिति यह है कि उन्हें अपना घर छोड़कर दिल्ली में दिहाड़ी करने के लिए जाना पड़ा!

सुख रनिया की बुजुर्ग मां कटु भाई बताती हैं कि उनकी बेटी कुछ महीनों से बाहर काम करने के लिए गई है गांव में कोई भी काम नहीं है अधिक बरसात होने की वजह से खेती-बाड़ी भी खराब हो गई है!

बाइट_कट्टू बाई_सुखरनिया की मां

सुखरनिया आदिवासी के पति मलका बताते है कि उनकी पत्नी ने गांव में शिक्षा एवं नशा के लिए लगातार काम किए लेकिन आज गांव में किसी प्रकार का कोई काम ना होने की वजह से उसे दिल्ली में मजदूरी करने के लिए जाना पड़ा!

बाइट_मलका पति

सुख रनिया आदिवासी का लड़का सुरेश आदिवासी बताता है कि उनकी मां ने भले ही गांव में तमाम प्रकार के अच्छे काम किए हो सरकार ने उनको सम्मानित भी किया था लेकिन मजबूरी बस ने गांव छोड़कर बाहर मजदूरी करने के लिए जाना पड़ा!

बाइट_सुरेश आदिवासी बेटा
बाइट_भागवती आदिवासी बहु



Conclusion:भले ही आज पूरा देश विश्व ग्रामीण महिला दिवस मना रहा हो लेकिन सुखरनिया आदिवासी देसी महिला बेरोजगारी और आर्थिक तंगी के चलते अपना गांव छोड़कर दिल्ली में मजदूरी करने के लिए मजबूर है! 2014 में सम्मानित करने के बाद सरकार ने ना तो दोबारा इस आदिवासी महिला की ओर ध्यान दिया ना ही दोबारा उसे प्रोत्साहित करने की कोशिश की!
Last Updated : Oct 15, 2019, 9:46 AM IST
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