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कोरोनाकाल में गर्भवती महिलाओं पर संकट, अस्पताल प्रबंधन नहीं दे रहा ध्यान

जिले में गर्भवती महिलाओं को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. ग्रामीण इलाके से जिला अस्पताल में अल्ट्रासाउंड कराने आ रही महिलाओं से अस्पताल प्रबंधन खराब बर्ताव कर रहा है. महिलाओं से बदतमीजी कर हॉस्पिटल से बाहर निकाला जा रहा है. गर्भवती महिलाओं के साथ आए परिजन भी मरीज के इलाज के लिए परेशान हो रहे हैं. सिविल सर्जन सुविधाओं की बात कर रहे हैं, जबकि जमीनी स्तर पर हालात कुछ और ही बयां कर रहे हैं.

Pregnant women treated poorly
मरीज हो रहे परेशान
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Published : Jul 25, 2020, 10:42 PM IST

छतरपुर । कहते हैं "नाजुक है पर वीरों को मात देती है, जो मां नौ महीने तक गर्भ में पनाह देती है." जब कोई औरत मां बनती है, तभी वह पूर्ण स्त्री कहलाती है. मां बनने के बाद एक स्त्री में पूर्णता का भाव आता है. बच्चे को नौ महीने तक कोख में पालना कोई आसान काम नहीं है, लेकिन उस परमात्मा ने यह शक्ति सिर्फ स्त्री को ही दी है, क्योंकि स्त्री में पुरुषों की तुलना में ज्यादा धैर्य होता है और नौ महीने तक का धैर्य एक स्त्री ही रख सकती है. लेकिन कोरोनाकाल में गर्भवती महिलाओं को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. एक ओर सरकारी अस्पतालों में पदस्थ स्त्री रोग विशेषज्ञ महिला डॉक्टरों ने मरीजों से दूरियां बना ली हैं, तो वहीं प्राइवेट नर्सिंग होम के दरवाजे भी गर्भवती महिलाओं के लिए बंद हैं.

मरीज हो रहे परेशान

महिलाएं हो रहीं परेशान

अल्ट्रासाउंड और सोनोग्राफी जैसी महत्वपूर्ण जांचों के लिए भी महिलाओं को संघर्ष करना पड़ रहा है. ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाली गर्भवती महिलाओं को जिला अस्पताल में कई बार तिरस्कार का सामना भी करना पड़ रहा है. सुबह से ही जिले के संबंधित अधिकारी कह रहे हैं कि हालात काबू में हैं और गर्भवती महिलाओं के लिए सभी सुविधाएं मौजूद हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है.

गर्भवती महिलाएं एक ओर सरकारी नुमाइंदों की लापरवाही, तो वहीं दूसरी ओर कोरोना महामारी का डर झेल रही हैं. ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाली महिलाओं को खासी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. मेटरनिटी वार्ड की सीनियर नर्सों और इक्का-दुक्का महिला डॉक्टरों पर इन गर्भवती महिलाओं की जिम्मेदारी आ गई है. जिला अस्पताल में पदस्थ कर्मचारी दूर क्षेत्र से आने वाली महिलाओं के साथ बदतमीजी करने से भी नहीं चूक रहे हैं.

Women are getting upset
महिलाएं हो रहीं परेशान

गर्भवती महिला से बदतमीजी

खेरा कसार गांव से जिला अस्पताल में अपने पति और सास के साथ अपना इलाज कराने आई गर्भवती महिला जय देवी बताती हैं, कि उनका आठवां महीना चल रहा है. दर्द होने की वजह से उन्हें अचानक अस्पताल आना पड़ा, लेकिन जिला अस्पताल में पदस्थ नर्सों ने उनके साथ बदतमीजी की और उन्हें डांटते हुए बाहर निकाल दिया. महिला ने कहा कि उसे यह समझ में नहीं आ रहा कि उसकी गलती क्या है. वह अपना इलाज कराने के लिए कहां पर जाए.

Lack of facilities
सुविधाओं का अभाव

जया देवी की सास रामसखी का कहना है कि वे अपनी बहू को लेकर जिला अस्पताल आई थीं. आठवें महीने में अचानक पेट में दर्द हुआ तो सोचा कि अस्पताल पहुंच जाएं, जिससे कि कि बहू को जल्द से जल्द स्वास्थ्य लाभ मिल सके, लेकिन स्वास्थ्य लाभ तो दूर यहां पदस्थ कर्मचारियों ने बदतमीजी करते हुए उन्हें मेटरनिटी वार्ड से बाहर निकाल दिया.

अधिकारी कर रहे सुविधाओं का दावा

वहीं मामले को लेकर जिला अस्पताल में पदस्थ सिविल सर्जन आर एस त्रिपाठी का कहना है कि जिला अस्पताल में गर्भवती महिलाओं के लिए तमाम प्रकार की सुविधाएं हैं. जिला अस्पताल में काम करने वाले सभी स्टाफ को इस बात की सख्त हिदायत दी गई है, कि गर्भवती महिलाओं के मामले में किसी भी प्रकार की लापरवाही ना बरती जाए और अगर किसी भी प्रकार की लापरवाही होती है, तो वह बर्दाश्त नहीं की जाएगी.

जमीनी स्तर पर हालात विपरीत

बता दें कि गर्भवती महिलाओं के लिए अल्ट्रासाउंड एवं सोनोग्राफी बेहद महत्वपूर्ण होती है. खासतौर से गर्भावस्था के आखिरी महीने में इसकी ज्यादा जरुरत होती है. इसके बावजूद जिला अस्पताल और छतरपुर शहर में कहीं पर भी सोनोग्राफी एवं अल्ट्रासाउंड नहीं हो रहा है. चेकअप नहीं होने से गर्भवती महिलाओं को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. सिविल सर्जन भले ही इस बात को कह रहे हो कि जिला अस्पताल में गर्भवती महिलाओं के लिए तमाम प्रकार की सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं, लेकिन हकीकत कुछ और ही है. सिविल सर्जन ने कहा कि यदि कोई अल्ट्रासाउंड और सोनोग्राफी करने से मना करता है, तो उसके खिलाफ सख्त वैधानिक कार्रवाई की जाएगी. फिलहाल देखना होगा कि इन महिलाओं को कब तक इलाज की सुविधा मिल सकेगी.

छतरपुर । कहते हैं "नाजुक है पर वीरों को मात देती है, जो मां नौ महीने तक गर्भ में पनाह देती है." जब कोई औरत मां बनती है, तभी वह पूर्ण स्त्री कहलाती है. मां बनने के बाद एक स्त्री में पूर्णता का भाव आता है. बच्चे को नौ महीने तक कोख में पालना कोई आसान काम नहीं है, लेकिन उस परमात्मा ने यह शक्ति सिर्फ स्त्री को ही दी है, क्योंकि स्त्री में पुरुषों की तुलना में ज्यादा धैर्य होता है और नौ महीने तक का धैर्य एक स्त्री ही रख सकती है. लेकिन कोरोनाकाल में गर्भवती महिलाओं को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. एक ओर सरकारी अस्पतालों में पदस्थ स्त्री रोग विशेषज्ञ महिला डॉक्टरों ने मरीजों से दूरियां बना ली हैं, तो वहीं प्राइवेट नर्सिंग होम के दरवाजे भी गर्भवती महिलाओं के लिए बंद हैं.

मरीज हो रहे परेशान

महिलाएं हो रहीं परेशान

अल्ट्रासाउंड और सोनोग्राफी जैसी महत्वपूर्ण जांचों के लिए भी महिलाओं को संघर्ष करना पड़ रहा है. ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाली गर्भवती महिलाओं को जिला अस्पताल में कई बार तिरस्कार का सामना भी करना पड़ रहा है. सुबह से ही जिले के संबंधित अधिकारी कह रहे हैं कि हालात काबू में हैं और गर्भवती महिलाओं के लिए सभी सुविधाएं मौजूद हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है.

गर्भवती महिलाएं एक ओर सरकारी नुमाइंदों की लापरवाही, तो वहीं दूसरी ओर कोरोना महामारी का डर झेल रही हैं. ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाली महिलाओं को खासी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. मेटरनिटी वार्ड की सीनियर नर्सों और इक्का-दुक्का महिला डॉक्टरों पर इन गर्भवती महिलाओं की जिम्मेदारी आ गई है. जिला अस्पताल में पदस्थ कर्मचारी दूर क्षेत्र से आने वाली महिलाओं के साथ बदतमीजी करने से भी नहीं चूक रहे हैं.

Women are getting upset
महिलाएं हो रहीं परेशान

गर्भवती महिला से बदतमीजी

खेरा कसार गांव से जिला अस्पताल में अपने पति और सास के साथ अपना इलाज कराने आई गर्भवती महिला जय देवी बताती हैं, कि उनका आठवां महीना चल रहा है. दर्द होने की वजह से उन्हें अचानक अस्पताल आना पड़ा, लेकिन जिला अस्पताल में पदस्थ नर्सों ने उनके साथ बदतमीजी की और उन्हें डांटते हुए बाहर निकाल दिया. महिला ने कहा कि उसे यह समझ में नहीं आ रहा कि उसकी गलती क्या है. वह अपना इलाज कराने के लिए कहां पर जाए.

Lack of facilities
सुविधाओं का अभाव

जया देवी की सास रामसखी का कहना है कि वे अपनी बहू को लेकर जिला अस्पताल आई थीं. आठवें महीने में अचानक पेट में दर्द हुआ तो सोचा कि अस्पताल पहुंच जाएं, जिससे कि कि बहू को जल्द से जल्द स्वास्थ्य लाभ मिल सके, लेकिन स्वास्थ्य लाभ तो दूर यहां पदस्थ कर्मचारियों ने बदतमीजी करते हुए उन्हें मेटरनिटी वार्ड से बाहर निकाल दिया.

अधिकारी कर रहे सुविधाओं का दावा

वहीं मामले को लेकर जिला अस्पताल में पदस्थ सिविल सर्जन आर एस त्रिपाठी का कहना है कि जिला अस्पताल में गर्भवती महिलाओं के लिए तमाम प्रकार की सुविधाएं हैं. जिला अस्पताल में काम करने वाले सभी स्टाफ को इस बात की सख्त हिदायत दी गई है, कि गर्भवती महिलाओं के मामले में किसी भी प्रकार की लापरवाही ना बरती जाए और अगर किसी भी प्रकार की लापरवाही होती है, तो वह बर्दाश्त नहीं की जाएगी.

जमीनी स्तर पर हालात विपरीत

बता दें कि गर्भवती महिलाओं के लिए अल्ट्रासाउंड एवं सोनोग्राफी बेहद महत्वपूर्ण होती है. खासतौर से गर्भावस्था के आखिरी महीने में इसकी ज्यादा जरुरत होती है. इसके बावजूद जिला अस्पताल और छतरपुर शहर में कहीं पर भी सोनोग्राफी एवं अल्ट्रासाउंड नहीं हो रहा है. चेकअप नहीं होने से गर्भवती महिलाओं को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. सिविल सर्जन भले ही इस बात को कह रहे हो कि जिला अस्पताल में गर्भवती महिलाओं के लिए तमाम प्रकार की सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं, लेकिन हकीकत कुछ और ही है. सिविल सर्जन ने कहा कि यदि कोई अल्ट्रासाउंड और सोनोग्राफी करने से मना करता है, तो उसके खिलाफ सख्त वैधानिक कार्रवाई की जाएगी. फिलहाल देखना होगा कि इन महिलाओं को कब तक इलाज की सुविधा मिल सकेगी.

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