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क्या है भीमकुंड का रहस्य ? वैज्ञानिक भी हैरान !

भीम कुंड की गहराई मापने के लिए कई वैज्ञानिकों ने दिन रात एक कर दिए. लेकिन आज तक कोई भी वैज्ञानिक पता नहीं कर पाया कि आखिर भीम कुंड की गहराई कितनी है और आखिर क्यों इस कुंड का पानी नीला दिखाई देता है. विज्ञान के लिए आज भी कुंड किसी रहस्य से कम नहीं है कि आखिर कैसे एक छोटे से कुंड के अंदर समुद्र की जैसी स्थितियां पैदा होती हैं.

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भीमकुंड का रहस्य
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Published : Nov 2, 2020, 1:59 PM IST

Updated : Nov 2, 2020, 2:07 PM IST

छतरपुर। जिला मुख्यालय से करीब 77 किलोमीटर दूर स्थित भीमकुंड धाम जहां पर कुंड की गहराई आज भी रहस्यमय बनी हुई है. मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड में स्थित यह स्थान प्राचीनकाल से ही ऋषियों, मुनियों, तपस्वियों और साधकों की स्थली रही है. वर्तमान समय में यह स्थान धार्मिक पर्यटन और वैज्ञानिक शोध का केंद्र भी बन हुआ है.

भीमकुंड का रहस्य

भीमकुंड स्थानीय लोगों के लिए न सिर्फ आस्था का केंद्र है, बल्कि दूर-दूर से लोग इस कुंड में नहाने के लिए जाते हैं, इस कुंड का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है, यही वजह है कि लोगों के लिए यह कुंड आस्था का केंद्र बना हुआ है. भीमकुंड की खासियत यह है कि इसका पानी बेहद साफ और निर्मल है. लाखों की संख्या में मछलियां ऊपर तैरती हुई दिखाई देती है. जब भी कोई आस्थावान व्यक्ति इस कुंड में स्नान करने के लिए आता है, तो न तो मछलियां पानी के अंदर जाती हैं और न ही उन्हें किसी प्रकार का डर होता है.

वैज्ञानिकों के लिए आज भी है रहस्य

भीमकुंड एक ऐसा नाम जो आज भी वैज्ञानिकों के लिए रहस्य बना हुआ है भीम कुंड की गहराई मापने के लिए कई वैज्ञानिकों ने दिन रात एक कर दिया लेकिन आज तक कोई भी वैज्ञानिक और संस्था पता नहीं कर पाई कि आखिर भीम कुंड की गहराई कितनी है और आखिर क्यों इस कुंड का पानी नीला दिखाई देता है विज्ञान को के लिए आज भी कुंड किसी रहस्य से कम नहीं है कि आखिर कैसे एक छोटे से कुंड के अंदर समुद्र की जैसी स्थितियां पैदा होती हैं, छतरपुर जिले से लगभग 70 किलोमीटर दूर स्थित भीमकुंड स्थानीय लोगों के लिए न सिर्फ आस्था का केंद्र है बल्कि दूर-दूर से लोग इस कुंड में नहाने के लिए जाते हैं इस कुंड का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है यही वजह है कि लोगों के लिए यह कुंड आस्था का केंद्र बना हुआ है.

महाभारत काल से जुड़ा भीमकुण्ड का इतिहास

भीमकुंड का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है. ऐसा माना जाता है कि पांडव जब अज्ञातवास में रह रहे थे, तब उन्होंने अपना कुछ समय भीमकुंड के आसपास गुजारा क्योंकि यह पूरा इलाका पथरीला है और चारों तरफ पहाड़ियां हैं. कहते हैं कि कई दिनों तक घूमते-घूमते द्रौपदी को जब प्यास लगी तो पांडवों ने इधर उधर पानी की तलाश की. लेकिन आखिरकार जब उन्हें कहीं पर भी पानी नहीं मिला, तो भीम ने अपने गदा से एक चट्टान में जोरदार प्रहार किया और उसके नीचे एक बड़ा सा जलाशय निकला. लेकिन उस जलाशय के अंदर जाने के लिए कोई रास्ता नहीं था. इसके लिए अर्जुन ने अपने बालों का प्रयोग करते हुए रास्ता बनाया. फिर इस तरह न सिर्फ पांचाली ही वहीं बल्कि पांचों पांडवों ने अपनी प्यास बुझाई. भीम कुंड के चारों तरफ आज भी कुछ निर्माण कार्य दिखाई देता है जो इस बात का प्रतीक है कि पांडवों ने भीमकुंड के अंदर एक वर्ष का तक का समय बिताया था.

कुंड में होती है समुद्र जैसी हलचल

वैसे तो भीमकुंड की प्रसिद्धि चारों ओर थी लेकिन 2004 में जब सुनामी आई तो हजारों की संख्या में लोग मारे गए. तब इस कुंड में अचानक कुछ हलचल पैदा होना शुरू हो गई. इस कुंड का पानी 15 से 20 फीट ऊंचाई तक अचानक उछलने लगा और देखते ही देखते पूरे देश में यह बात आग की तरह फैल गई. कुछ दिनों बाद देश विदेश की मीडिया और दुनियाभर के वैज्ञानिक यहां पहुंच गए. जिसके बाद शोध शुरू हो गया, कि आखिर कैसे इस कुंड में समुद्र की तरह हलचल हो रही है. वैज्ञानिक कई दिनों तक इस कुंड की गहराई को मापने की कोशिश करते रहे. कई वैज्ञानिकों ने कुंड के अंदर जाकर देखा. लगभग 22 फीट पानी के अंदर जाने के बाद वैज्ञानिक आगे नहीं जा पाए. वैज्ञानिकों का कहना था कि इसकी गहराई मापना संभव नहीं है. गहराई में कई क्विंटल वजन की मछलियां मौजूद हैं और अंदर पानी का बहाव बहुत तेज है.

प्राकृतिक आपदा से पहले बढ़ जाता है कुंड का जलस्तर

भीम कुंड में रहकर मंदिर की सेवा करने वाले आचार्य नीरज तिवारी बताते हैं कि 2005 में जर्मनी से डिस्कवरी टीम आई थी, जो कई दिनों तक भीम कुंड में शूट करती रही और इस कुंड की गहराई मापने का प्रयास करती रही. लेकिन आखिरकार वह भी असफल हो गई. उन्होंने बताया कि फिलहाल भीमकुंड की गहराई मापना संभव नहीं है. कुंड की गहराई में बड़ी-बड़ी मछलियां है, पानी का तेज बहाव है और साथ ही नीलम की एक बड़ी सी चट्टान है. वैज्ञानिकों ने बताया कि जो मछलियां इस कुंड के अंदर मौजूद हैं. ठीक ऐसी ही मछलियां समुद्र की गहराई में पाई जाती हैं तो कहीं न कहीं इस कुंड का संबंध समुद्र से मिलता-जुलता है. कुछ समय बाद जब नेपाल और जापान में भूकंप आए तब भी इस कुंड का जलस्तर अचानक बढ़ने लगा. जब भी कोई जलीय आपदा या प्राकृतिक आपदा आती है, तो इस कुंड का जल अपने आप बढ़ने लगता है. जो कहीं न कहीं इस बात का इशारा करती है कि कोई प्राकृतिक आपदा आ रही है, या आ चुकी है. भीमकुंड अपने आप में कई रहस्यों को संजोए हुए हैं जिन्हें आज तक कोई भी नहीं जान सका है.

छतरपुर। जिला मुख्यालय से करीब 77 किलोमीटर दूर स्थित भीमकुंड धाम जहां पर कुंड की गहराई आज भी रहस्यमय बनी हुई है. मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड में स्थित यह स्थान प्राचीनकाल से ही ऋषियों, मुनियों, तपस्वियों और साधकों की स्थली रही है. वर्तमान समय में यह स्थान धार्मिक पर्यटन और वैज्ञानिक शोध का केंद्र भी बन हुआ है.

भीमकुंड का रहस्य

भीमकुंड स्थानीय लोगों के लिए न सिर्फ आस्था का केंद्र है, बल्कि दूर-दूर से लोग इस कुंड में नहाने के लिए जाते हैं, इस कुंड का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है, यही वजह है कि लोगों के लिए यह कुंड आस्था का केंद्र बना हुआ है. भीमकुंड की खासियत यह है कि इसका पानी बेहद साफ और निर्मल है. लाखों की संख्या में मछलियां ऊपर तैरती हुई दिखाई देती है. जब भी कोई आस्थावान व्यक्ति इस कुंड में स्नान करने के लिए आता है, तो न तो मछलियां पानी के अंदर जाती हैं और न ही उन्हें किसी प्रकार का डर होता है.

वैज्ञानिकों के लिए आज भी है रहस्य

भीमकुंड एक ऐसा नाम जो आज भी वैज्ञानिकों के लिए रहस्य बना हुआ है भीम कुंड की गहराई मापने के लिए कई वैज्ञानिकों ने दिन रात एक कर दिया लेकिन आज तक कोई भी वैज्ञानिक और संस्था पता नहीं कर पाई कि आखिर भीम कुंड की गहराई कितनी है और आखिर क्यों इस कुंड का पानी नीला दिखाई देता है विज्ञान को के लिए आज भी कुंड किसी रहस्य से कम नहीं है कि आखिर कैसे एक छोटे से कुंड के अंदर समुद्र की जैसी स्थितियां पैदा होती हैं, छतरपुर जिले से लगभग 70 किलोमीटर दूर स्थित भीमकुंड स्थानीय लोगों के लिए न सिर्फ आस्था का केंद्र है बल्कि दूर-दूर से लोग इस कुंड में नहाने के लिए जाते हैं इस कुंड का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है यही वजह है कि लोगों के लिए यह कुंड आस्था का केंद्र बना हुआ है.

महाभारत काल से जुड़ा भीमकुण्ड का इतिहास

भीमकुंड का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है. ऐसा माना जाता है कि पांडव जब अज्ञातवास में रह रहे थे, तब उन्होंने अपना कुछ समय भीमकुंड के आसपास गुजारा क्योंकि यह पूरा इलाका पथरीला है और चारों तरफ पहाड़ियां हैं. कहते हैं कि कई दिनों तक घूमते-घूमते द्रौपदी को जब प्यास लगी तो पांडवों ने इधर उधर पानी की तलाश की. लेकिन आखिरकार जब उन्हें कहीं पर भी पानी नहीं मिला, तो भीम ने अपने गदा से एक चट्टान में जोरदार प्रहार किया और उसके नीचे एक बड़ा सा जलाशय निकला. लेकिन उस जलाशय के अंदर जाने के लिए कोई रास्ता नहीं था. इसके लिए अर्जुन ने अपने बालों का प्रयोग करते हुए रास्ता बनाया. फिर इस तरह न सिर्फ पांचाली ही वहीं बल्कि पांचों पांडवों ने अपनी प्यास बुझाई. भीम कुंड के चारों तरफ आज भी कुछ निर्माण कार्य दिखाई देता है जो इस बात का प्रतीक है कि पांडवों ने भीमकुंड के अंदर एक वर्ष का तक का समय बिताया था.

कुंड में होती है समुद्र जैसी हलचल

वैसे तो भीमकुंड की प्रसिद्धि चारों ओर थी लेकिन 2004 में जब सुनामी आई तो हजारों की संख्या में लोग मारे गए. तब इस कुंड में अचानक कुछ हलचल पैदा होना शुरू हो गई. इस कुंड का पानी 15 से 20 फीट ऊंचाई तक अचानक उछलने लगा और देखते ही देखते पूरे देश में यह बात आग की तरह फैल गई. कुछ दिनों बाद देश विदेश की मीडिया और दुनियाभर के वैज्ञानिक यहां पहुंच गए. जिसके बाद शोध शुरू हो गया, कि आखिर कैसे इस कुंड में समुद्र की तरह हलचल हो रही है. वैज्ञानिक कई दिनों तक इस कुंड की गहराई को मापने की कोशिश करते रहे. कई वैज्ञानिकों ने कुंड के अंदर जाकर देखा. लगभग 22 फीट पानी के अंदर जाने के बाद वैज्ञानिक आगे नहीं जा पाए. वैज्ञानिकों का कहना था कि इसकी गहराई मापना संभव नहीं है. गहराई में कई क्विंटल वजन की मछलियां मौजूद हैं और अंदर पानी का बहाव बहुत तेज है.

प्राकृतिक आपदा से पहले बढ़ जाता है कुंड का जलस्तर

भीम कुंड में रहकर मंदिर की सेवा करने वाले आचार्य नीरज तिवारी बताते हैं कि 2005 में जर्मनी से डिस्कवरी टीम आई थी, जो कई दिनों तक भीम कुंड में शूट करती रही और इस कुंड की गहराई मापने का प्रयास करती रही. लेकिन आखिरकार वह भी असफल हो गई. उन्होंने बताया कि फिलहाल भीमकुंड की गहराई मापना संभव नहीं है. कुंड की गहराई में बड़ी-बड़ी मछलियां है, पानी का तेज बहाव है और साथ ही नीलम की एक बड़ी सी चट्टान है. वैज्ञानिकों ने बताया कि जो मछलियां इस कुंड के अंदर मौजूद हैं. ठीक ऐसी ही मछलियां समुद्र की गहराई में पाई जाती हैं तो कहीं न कहीं इस कुंड का संबंध समुद्र से मिलता-जुलता है. कुछ समय बाद जब नेपाल और जापान में भूकंप आए तब भी इस कुंड का जलस्तर अचानक बढ़ने लगा. जब भी कोई जलीय आपदा या प्राकृतिक आपदा आती है, तो इस कुंड का जल अपने आप बढ़ने लगता है. जो कहीं न कहीं इस बात का इशारा करती है कि कोई प्राकृतिक आपदा आ रही है, या आ चुकी है. भीमकुंड अपने आप में कई रहस्यों को संजोए हुए हैं जिन्हें आज तक कोई भी नहीं जान सका है.

Last Updated : Nov 2, 2020, 2:07 PM IST
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