छतरपुर। 2 अक्टूबर को जब देश ओडीएफ घोषित हुआ तो शायद उससे पहले बुंदेलखंड के गांवों पर किसी का ध्यान नहीं गया. अगर ऐसा हुआ होता तो शायद ये घोषणा ही नहीं हुई होती. क्योकिं इन कागजी रिपोर्टों से कोसो दूर है जमीनी हकीकत. जहां शौचालय का यूज शौच के लिए जाता है वहां बुंदेलखंड के ग्रामीण कंडे रखने के लिए उपयोग करते हैं, इन शौचालयों का. पढ़िए बुंदेलखंड में शौचालयों की जमीनी हकीकत.
शौचालयों में रख रहे कंडे, खुले में शौच को मजबूर
छतरपुर की महिलाएं, बच्चें-बूढ़ें सब खुले में शौच में जाने को मजबूर हैं. नाम के लिए तो सरकारी योजनाओं के तहत शौचालय तो बनवा दिए गए हैं. लेकिन वो ऐेसे शौचालय हैं जहां कंडो को संग्रहित किया जा रहा है. ये एक अनूठा यूज किया है ग्रामीणों ने शौचालयों का.
टैंक ही नहीं तो कैसे करें शौचालयों का यूज
महज चार दीवार खड़ी कर एक टॉयलेट सीट लगाने से तो शौचालय नहीं बन जाता. ग्रामीण शौचालय का यूज इसी वजह से नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि टैंकर के नाम पर सिर्फ गड्ढे खोद कर छोड़ दिेए हैं. अब ऐसे में भला ग्रामीण बाहर शौच के लिए न जाएं तो कहां जाएं.
भ्रष्टाचार की सीमा पार
शौचालय की अनियमितताएं ही कम नहीं थी की इस मामले में भ्रष्टाचारी भी उजागर हो गई. अब तक ग्रामीणों को शौचालय के पैसे भी नहीं मिले हैं. वहीं कहीं-कहीं तो किसी के नाम के पैसे भी निकाल लिए गए हैं लेकिन शौचालय नहीं बनाया गया.
कागजों में तो 2018 में ही बन चुके हैं शत- प्रतिशत शौचालय
इस मामले पर आला अधिकारी एक अलग ही दलील पेश कर रहे हैं. स्वच्छ भारत अभियान प्रभारी मनीषा यादव का कहना है कि लगभग सब जगह शौचालय बनवनाए जा चुके हैं. लेकिन जो लोग गांव के बाहर थे और जो अपने परिवार से अलग हैं उन लोगों जोड़ा जा रहा है. आने वाले समय में जल्द से जल्द इनके भी शौचालय बन जाएंगे. वहीं जनपद सीईओ मजहर अली का कहना है कि 2018 में ही शत-प्रतिशत शौचालय बनवा दिए गए थे. लेकिन जिन लोगों के शौचालय नहीं बने हैं, उनके दूसरे चरण में बन जाएंगे.