छतरपुर. अब हमारे हाथ-पैर नहीं चलते, जी कांपता हैं, बच्चों का भी कोई सहारा नहीं हैं. ऐसे में कई बार तो भूखे पेट ही सोने की नौबत बन जाती हैं. समस्याएं तो बहुत हैं, लेकिन साहब को बताने में डर लग रहा था, लोगों ने कहा था कि समस्याएं न बताना, जो मिले सो ले लेना. यह पीड़ा सामने आई हैं टपरन गांव में रहने वाले एक वृद्ध दंपति की, जिनकी मदद कलेक्टर शीलेंद्र सिंह ने दो दिन पहले राशन पैकट देकर तो कर दी, लेकिन उनकी मूल समस्या अब भी बरकरार है.
दो दिन पहले ही कलेक्टर शीलेंद्र सिंह, एसडीएम प्रियांशी भंवर और प्रशासनिक अमला कर्री ग्राम पंचायत के आदिवासी गांव पुरवा टपरन गया था. यहां कलेक्टर ने जिन जरूरतमंदों को राशन के पैकेट वितरित किए थे, उनमें एक परिवार गरवेदी व बछिया आदिवासी का भी था, जिन्हें यह तो पता था कि कलेक्टर आए हैं, लेकिन उन्हें अपनी समस्याएं बताने से वह डर रहे थे. डर भी तत्काल ही वहां मौजूद कुछ लोगों ने पैदा किया था. वृद्ध के अनुसार कुछ लोगों ने उनसे कहा था कि कोई समस्या सुनाने की जरूरत नहीं, जो मदद मिले चुपचाप रख लेना. बस यही वजह थी कि उन्होंने अपनी पीड़ा व्यक्त नहीं की.
कलेक्टर के दौरे के दो दिन बाद ईटीवी की टीम ने टपरन(मानक पूरा) गांव का जायजा लिया, जहां एक बजुर्ग दंपति ने बताया कि वे कलेक्टर की अपनी समस्या नहीं सुना पाए, क्योंकि कुछ लोगों ने कलेक्टर को अपनी समस्या बताने से मना किया था. बुजुर्ग दंपति ने बताया कि उम्र के इस पड़ाव पर आकर वे कुछ नहीं कर पाते. ऐसे में दो वक्त का भोजन भी जुटाना मुश्किल होता है. कई बार तो उन्हें भूखे ही सोना पड़ता है. उनके अपने बच्चे भी मदद करने नहीं आते हैं, ऐसे में सरकार से उन्होंने मदद की गुहार लगाई है.