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खजुराहो फिल्म फेस्टिवल में ढिमरयाई लोकगीत ने बांधा समां, झूम उठे दर्शक

खजुराहो फिल्म फेस्टिवल में ढिमरयाई लोकगीत और नृत्य की प्रस्तुति दी गई. इस दौरान तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा सदन गूंज उठा.

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ढिमरयाई की प्रस्तुति ने बांधा समां
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Published : Dec 24, 2019, 11:17 AM IST

छतरपुर। खजुराहो में चल रहे अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में रंग-बिरंगी वेशभूषा में ढिमरयाई लोकगीत पर नृत्य प्रस्तुति दी गई. ऐसा पहली बार हुआ है जब बुंदेलखंड के लोकगीत को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर प्रस्तुत किया गया हो. इस नृत्य को 20 कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किया गया.

ढिमरयाई की प्रस्तुति ने बांधा समां


बता दें की ढिमरयाई लोकगीत रैकवार समाज विशेष खुशी के मौके पर गाता है और नृत्य करता है. यह गीत दर्शाता है कि रैकवार समाज जब मछलियों को पकड़ने जाते हैं तो कितने खुश होते हैं. साथ ही इस गाने में रैकवार समाज का परिवेश, वेशभूषा और समाज के प्रति उनके संदेश भी है कि समाज अपने काम में किस तरह से आनंद ढूंढ लेता है.

ढिमरयाई लोकगीत और नृत्य


लगभग 20 मिनट तक चले लोकगीत को लोगों ने बांधकर रखा, प्रस्तुति के दौरान लोगों ने जमकर तालियां बजाई. इस लोकगीत पर नृत्य की प्रस्तुति स्वर्ण बुंदेल ग्रुप के द्वारा दी गई. ग्रुप के सदस्य सचिन सिंह परिहार बताते हैं कि ढिमरयाई रैकवार समाज द्वारा बुंदेलखंड का गाया जाने वाला प्रसिद्ध लोकगीत और नृत्य है, जो कि समाज के लोग खुशी के मौके पर गाते हैं.

छतरपुर। खजुराहो में चल रहे अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में रंग-बिरंगी वेशभूषा में ढिमरयाई लोकगीत पर नृत्य प्रस्तुति दी गई. ऐसा पहली बार हुआ है जब बुंदेलखंड के लोकगीत को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर प्रस्तुत किया गया हो. इस नृत्य को 20 कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किया गया.

ढिमरयाई की प्रस्तुति ने बांधा समां


बता दें की ढिमरयाई लोकगीत रैकवार समाज विशेष खुशी के मौके पर गाता है और नृत्य करता है. यह गीत दर्शाता है कि रैकवार समाज जब मछलियों को पकड़ने जाते हैं तो कितने खुश होते हैं. साथ ही इस गाने में रैकवार समाज का परिवेश, वेशभूषा और समाज के प्रति उनके संदेश भी है कि समाज अपने काम में किस तरह से आनंद ढूंढ लेता है.

ढिमरयाई लोकगीत और नृत्य


लगभग 20 मिनट तक चले लोकगीत को लोगों ने बांधकर रखा, प्रस्तुति के दौरान लोगों ने जमकर तालियां बजाई. इस लोकगीत पर नृत्य की प्रस्तुति स्वर्ण बुंदेल ग्रुप के द्वारा दी गई. ग्रुप के सदस्य सचिन सिंह परिहार बताते हैं कि ढिमरयाई रैकवार समाज द्वारा बुंदेलखंड का गाया जाने वाला प्रसिद्ध लोकगीत और नृत्य है, जो कि समाज के लोग खुशी के मौके पर गाते हैं.

Intro:अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल खजुराहो में बुंदेलखंड के एक लोकगीत का नृत्य के माध्यम से मंचन किया गया यह लोकगीत प्रस्तुत करते ही लोग झूम उठे और पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा!

आपको बता दी मंच से जिस लोकगीत की प्रस्तुति दी गई थी उस लोकगीत को ढिमरयाई कहते हैं यह बुंदेलखंड के प्रसिद्ध गीतों में से एक है जिसे रैकवार समाज के द्वारा गाया एवं बजाया जाता है!


Body:खजुराहो अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल के मंच पर रंग बिरंगी वेशभूषा में लगभग 20 कलाकार ढिमरयाई लोकगीत पर जैसे ही डांस करने पहुंचे लोगों ने जमकर तालियां बजानी शुरू कर दी ऐसा पहली बार हो रहा था कि बुंदेलखंड के एक लोकगीत को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर प्रस्तुत किया जा रहा था!

लोकगीत शुरू होते ही होली बम आसपास की मौजूद लोग झूम उठे लोगों ने जमकर इस गाने एवं नृत्य की सराहना की आपको बता दें की ढिमरयाई लोक नृत्य रैकवार समाज द्वारा(ढीमर) विशेष खुशी के मौके पर गाया जाता है और यह गाना यह दर्शाता है कि रैकवार समाज जब मछलियों को पकड़ने जाते हैं तो कितने खुश होते हैं साथ ही इस गाने के माध्यम से रैकवार समाज का परिवेश वेशभूषा एवं समाज के प्रति उनके संदेश का भी जिक्र किया गया है कि आखिर रैकवार समाज अपने काम में किस तरह से आनंद ढूंढ लेता है!

लगभग 20 मिनट तक चले लोकगीत को लोगों ने बांधकर रखा और जमकर लोगों ने तालियां बजाई! इस लोकगीत पर नृत्य की प्रस्तुति स्वर्ण बुंदेल ग्रुप के द्वारा दी गई ग्रुप के सदस्य सचिन सिंह परिहार बताते हैं कि उनके ग्रुप के सदस्यों द्वारा ढिमरयाई नृत्य की प्रस्तुति दी गई है यह रैकवार समाज के द्वारा बुंदेलखंड का गाया जाने वाला प्रसिद्ध लोक गीत एवं नृत्य है जो कि समाज के लोग खुशी के मौके पर गाते हैं!




Conclusion: ढिमरयाई नृत्य ने बॉलीवुड एवं अन्य धांसू पर परफॉर्मेंस देने वाले कलाकारों को न सिर्फ पीछे छोड़ दिया बल्कि जमकर सुर्खियां भी बटोरी!
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