छतरपुर। बिजावर तहसील में एक ऐसा कुंआ मौजूद है, जिसमें से पुराने समय में देसी घी निकाला जाता था. बताया जाता है कि इस कुंए का निर्माण देसी घी के भंडारण करने के लिए कराया गया था. इस कुंए के अंदर नाली के माध्यम से देसी घी सीधा हवन कुंड में जाकर गिरता था. यही कारण है कि इस कुंए को देशी घी का कुंआ कहा जाता है.
प्राचीन लक्ष्मी नारायण के प्रसिद्द मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हेतु इस कुंए का निर्माण कराया गया था. जिसके ठीक सामने पानी से भरा चोपरा है, जो लगभग 300 साल पुराना है. इसे प्राचीन समय का हवन कुंड कहा जाता है. जिसमें साधु संतों द्वारा वेद मंत्रों के उच्चारण के साथ लक्ष्मी नारायण मंदिर निर्माण के बाद मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की गयी थी. जिसके लिए बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया गया था. जिसमें बहुत अधिक मात्रा में देसी घी का उपयोग किया गया था. जिसके लिए पूरे क्षेत्र से देसी घी इकट्ठा कर इस कुएं में उसका भंडारण कर रखा गया. माना जाता है कि इस कुएं में जमा शुद्ध देसी घी का इस्तेमाल महायज्ञ में किया गया था.
इस कुएं की हवन कुंड से दूरी लगभग 10 फीट तक है. कुएं से हवन कुंड तक देशी घी कुएं के अंदर एक नाली के माध्यम से पहुंचाया जाता था, जो सीधा जाकर हवन कुंड में गिरता था. वैसे तो ये कुआं देसी घी के कुए के नाम से प्रख्यात है, लेकिन वर्तमान में इस कुंए में पानी भरा रहता है. जिसे अब दीक्षित के कुंए के नाम से जाना जाता है. यहां आस-पास के लोगों का कहना है कि इस कुंए को प्राचीन भाषा में देसी घी का कुआं कहा जाता था. जानकारों का कहना है कि कुंए का रहस्य उन्होंने अपने पूर्वजों से सुना है. मंदिर एवं कुएं का निर्माण दीक्षित परिवार ने करवाया था, जिनके परिवार का अब कुछ अता-पता नहीं है.