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समय के साथ सूख गया देसी घी वाला कुआं, अब पानी के लिए भी है मोहताज

एक ऐसा कुंआ मौजूद है, जिसमें से पुराने समय में देसी घी निकाला जाता था. बताया जाता है कि इस कुंए का निर्माण देसी घी के भंडारण करने के लिए कराया गया था.

समय के साथ सूख गया देसी घी वाला कुआं
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Published : Aug 18, 2019, 11:49 PM IST

छतरपुर। बिजावर तहसील में एक ऐसा कुंआ मौजूद है, जिसमें से पुराने समय में देसी घी निकाला जाता था. बताया जाता है कि इस कुंए का निर्माण देसी घी के भंडारण करने के लिए कराया गया था. इस कुंए के अंदर नाली के माध्यम से देसी घी सीधा हवन कुंड में जाकर गिरता था. यही कारण है कि इस कुंए को देशी घी का कुंआ कहा जाता है.

प्राचीन लक्ष्मी नारायण के प्रसिद्द मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हेतु इस कुंए का निर्माण कराया गया था. जिसके ठीक सामने पानी से भरा चोपरा है, जो लगभग 300 साल पुराना है. इसे प्राचीन समय का हवन कुंड कहा जाता है. जिसमें साधु संतों द्वारा वेद मंत्रों के उच्चारण के साथ लक्ष्मी नारायण मंदिर निर्माण के बाद मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की गयी थी. जिसके लिए बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया गया था. जिसमें बहुत अधिक मात्रा में देसी घी का उपयोग किया गया था. जिसके लिए पूरे क्षेत्र से देसी घी इकट्ठा कर इस कुएं में उसका भंडारण कर रखा गया. माना जाता है कि इस कुएं में जमा शुद्ध देसी घी का इस्तेमाल महायज्ञ में किया गया था.

समय के साथ सूख गया देसी घी वाला कुआं

इस कुएं की हवन कुंड से दूरी लगभग 10 फीट तक है. कुएं से हवन कुंड तक देशी घी कुएं के अंदर एक नाली के माध्यम से पहुंचाया जाता था, जो सीधा जाकर हवन कुंड में गिरता था. वैसे तो ये कुआं देसी घी के कुए के नाम से प्रख्यात है, लेकिन वर्तमान में इस कुंए में पानी भरा रहता है. जिसे अब दीक्षित के कुंए के नाम से जाना जाता है. यहां आस-पास के लोगों का कहना है कि इस कुंए को प्राचीन भाषा में देसी घी का कुआं कहा जाता था. जानकारों का कहना है कि कुंए का रहस्य उन्होंने अपने पूर्वजों से सुना है. मंदिर एवं कुएं का निर्माण दीक्षित परिवार ने करवाया था, जिनके परिवार का अब कुछ अता-पता नहीं है.

छतरपुर। बिजावर तहसील में एक ऐसा कुंआ मौजूद है, जिसमें से पुराने समय में देसी घी निकाला जाता था. बताया जाता है कि इस कुंए का निर्माण देसी घी के भंडारण करने के लिए कराया गया था. इस कुंए के अंदर नाली के माध्यम से देसी घी सीधा हवन कुंड में जाकर गिरता था. यही कारण है कि इस कुंए को देशी घी का कुंआ कहा जाता है.

प्राचीन लक्ष्मी नारायण के प्रसिद्द मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हेतु इस कुंए का निर्माण कराया गया था. जिसके ठीक सामने पानी से भरा चोपरा है, जो लगभग 300 साल पुराना है. इसे प्राचीन समय का हवन कुंड कहा जाता है. जिसमें साधु संतों द्वारा वेद मंत्रों के उच्चारण के साथ लक्ष्मी नारायण मंदिर निर्माण के बाद मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की गयी थी. जिसके लिए बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया गया था. जिसमें बहुत अधिक मात्रा में देसी घी का उपयोग किया गया था. जिसके लिए पूरे क्षेत्र से देसी घी इकट्ठा कर इस कुएं में उसका भंडारण कर रखा गया. माना जाता है कि इस कुएं में जमा शुद्ध देसी घी का इस्तेमाल महायज्ञ में किया गया था.

समय के साथ सूख गया देसी घी वाला कुआं

इस कुएं की हवन कुंड से दूरी लगभग 10 फीट तक है. कुएं से हवन कुंड तक देशी घी कुएं के अंदर एक नाली के माध्यम से पहुंचाया जाता था, जो सीधा जाकर हवन कुंड में गिरता था. वैसे तो ये कुआं देसी घी के कुए के नाम से प्रख्यात है, लेकिन वर्तमान में इस कुंए में पानी भरा रहता है. जिसे अब दीक्षित के कुंए के नाम से जाना जाता है. यहां आस-पास के लोगों का कहना है कि इस कुंए को प्राचीन भाषा में देसी घी का कुआं कहा जाता था. जानकारों का कहना है कि कुंए का रहस्य उन्होंने अपने पूर्वजों से सुना है. मंदिर एवं कुएं का निर्माण दीक्षित परिवार ने करवाया था, जिनके परिवार का अब कुछ अता-पता नहीं है.

Intro:स्पेशल---
बिजावर
एक ऐसा कुंआ जिसमे निकलता था देशी शुध्द घी

भारत मे एक से बढ़कर एक रहस्य मौजूद है ऐसे ही एक
रहस्य की हम बात करने जा रहे है जो अविस्निय है लेकिन यह सच है
छतरपुर जिले के बिजावर तहसील में एक ऐसा कुंआ मौजूद है जिसमे पुराने समय मे देशी घी निकाला जाता था जिसकी कहानी रोचक है ऐसे ही यह कुंआ लोगो मे चर्चा का विषय बन जाता है लोग बहुत गहराई से ऐसे किस्से और कहानी के पीछे के बारे में जानना चाहते है
Body:
दरअसल हम बात कर रहें है बिजावर शहर के बीचों-बीच एक कुँए की जो आज भी मौजूद है इस कुंए का निर्माण देशी घी के भंडारण करने के लिए कराया गया था और इस कुंए के अंदर नाली के माध्यम से देशी घी सीधा हबन कुंड में जाकर गिरता था यही कारण है कि इस कुंए को देशी घी का कुंआ कहा जाता है
जो देसी घी का कुआँ के नाम से जाना जाता है प्राचीन लक्ष्मी नारायण का प्रसिद्द मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हेतु इस कुएं का निर्माण कराया गया था जिसके ठीक सामने पानी से भरा चोपरा है जो लगभग 300 वर्ष पुराना है प्राचीन समय का हवन कुंड कहा जाता है जिसमें साधु संतों के द्वारा वेद मंत्रो के उच्चारण के साथ लक्ष्मी नारायण मंदिर निर्माण के वाद मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की गयी जिसके लिए बहुत बड़ा यज्ञ का महा आयोजन किया गया जिसमे बहुत अधिक मात्रा में देसी घी का उपयोग किया गया जिसके लिए पूरे क्षेत्र से देसी घी इकट्ठा कर इस कुएं में उसका भंडारण कर रखा गया और माना जाता है प्राण प्रतिष्ठा महायज्ञ होने की अवधि में इस कुएं में जमा शुद्ध देसी घी का इस्तेमाल महायज्ञ में किया गया था
Conclusion: इस कुएं की हवन कुंड से दूरी लगभग 10 फिट तक है कुएं से हवनकुंड तक देशी घी कुएं के अंदर एक नाली के माध्यम से पहुँचाया जाता था जो सीधा जाकर हवन कुंड में गिरता था वैसे तो यह कुआं देसी घी का कुआं के नाम से प्रख्यात है लेकिन वर्तमान में इस कुएं में पानी भरा रहता है जिसे अब दीक्षित के कुए के नाम से जाना जाता है यहां आस-पास के लोगों को कहना है कि इस कुंए को प्राचीन भाषा में देसी घी का कुआं कहा जाता था जानकारों का कहना है कि कुंए का रहस्य हमने अपने पूर्वजों से सुना है यह मंदिर एवं कुएं का निर्माण दीक्षित परिवार ने करवाया था जिनके परिवार का अब कुछ अता पता नही है

बाईट-1 - रामेश्वर प्रसाद चऊदा (स्थानीय निवासी)

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