भोपाल। लोकसभा चुनाव के सात में से तीन चरणों में कुल 303 सीटों पर मतदान हो चुका है. बाकी बचे चार चरणों में 240 सीटों पर वोट डाले जाएंगे. ये चरण बीजेपी के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण हैं क्योंकि पिछले आम चुनाव में बीजेपी यहां की 65 फीसदी सीटों पर जीत दर्ज की थी. 29 अप्रैल को होने वाले चौथे चरण में 9 राज्यों की 71 सीटों पर वोट डाले जाएंगे, जिसमें मध्यप्रदेश की सीधी, शहडोल, जबलुपर, मंडला, बालाघाट और छिंदवाड़ा सीट शामिल है, जबकि छिंदवाड़ा विधानसभा सीट पर उपचुनाव भी इसी दिन होना है.
मध्यप्रदेश में चुनावी मुद्दे शहरी-ग्रामीण दो भागों में बंटे हैं. शहरी इलाकों में राष्ट्रवाद का मुद्दा सबसे ऊपर है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में जातिगत-लोकल मुद्दों का बोलबाला है. मध्यप्रदेश की जिन 6 सीटों पर वोट डाले जाएंगे, उनमें से छिंदवाड़ा, जबलपुर और सीधी VIP सीट हैं. छिंदवाड़ा से मुख्यमंत्री कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ पहली बार सियासी पिच पर बैटिंग करने उतरे हैं. जहां उन्हें अपने पिता की विरासत बचाने की चुनौती है. कमलनाथ यहां से 8 बार सांसद रहें है, सिर्फ एक बार बीजेपी के सुंदरलाल पटवा ने कमलनाथ को उपचुनाव में हराया था. अब नकुलनाथ का मुकाबला बीजेपी के पूर्व विधायक नत्थन शाह से है.
जबलपुर पर सबकी निगाहें टिकी हैं क्योंकि यहां से दो सांसद आमने-सामने हैं. एक लोकसभा और दूसरा राज्यसभा का सदस्य है. पिछले आम चुनाव में भी दोनों प्रतिद्वंदी थे, जिसमें राकेश सिंह ने कांग्रेस के विवेक तन्खा को बड़े अंतर से हराया था. दोनों की प्रतिष्ठा इस बार भी दांव पर लगी है क्योंकि एक प्रत्याशी प्रदेश में पार्टी का नेतृत्व कर रहा है, जबकि दूसरे की प्रदेश में सरकार है. हालांकि, विधानसभा चुनाव के परिणामों पर नजर डालें तो पिछले आम चुनाव में 2 लाख से अधिक की बढ़त बनाने वाली बीजेपी विधानसभा चुनाव में 32 हजार के फासले पर सिमट गई है. राकेश सिंह यहां से पिछले 3 बार से चुनाव जीत रहे हैं, लेकिन इस बार यहां बागी सिरदर्द बन रहे हैं.
तीसरी वीआईपी सीट सीधी है, जहां सासंद रीति पाठक और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय सिंह के बीच मुकाबला है. अजय सिंह ये चुनाव हर हाल में जीतना चाहते हैं. अबकी बार के नतीजे उनके सियासी करियर की दशा-दिशा तय करने वाले हैं क्योंकि वो चुरहट से विधानसभा चुनाव पहले ही हार चुके हैं. हालांकि, यहां का मुकाबला जातिगत खेमों में तब्दील होता दिख रहा है. यहां भी बीजेपी को भितरघात का डर सता रहा है. बीजेपी का एक बड़ा समूह रीति से नाराज चल रहा है, जबकि ग्रामीण इलाकों में मोदी की धमक आज भी कायम है तो अजय सिंह अपने दिवंगत पिता पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के नाम पर वोट मांग रहे हैं.
वहीं, शहडोल में दलबदलुओं के बीच मुकाबला है, यहां कांग्रेस से प्रमिला सिंह और बीजेपी से हिमाद्री सिंह उम्मीदवार हैं. दोनों प्रत्याशी अपनी-अपनी पार्टी छोड़कर आयी हैं. प्रमिला बीजेपी से विधायक रह चुकी हैं तो हिमाद्री शहडोल से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा उपचुनाव लड़ चुकी हैं, तब हिमाद्री सिंह को ज्ञान सिंह के हाथों शिकस्त झेलनी पड़ी थी.
मंडला में मुकाबला बीजेपी सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते और कांग्रेस के कमल मरावी के बीच है. कुलस्ते मोदी कैबिनेट में मंत्री भी रहे हैं. 2009 को छोड़ दिया जाए तो यहां 1996 से कमल ही खिलता आया है. फग्गन सिंह सातवीं बार चुनाव मैदान में हैं. ये सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है और आदिवासी बाहुल्य है.
बालाघाट बीजेपी का गढ़ है, पिछले पांच चुनाव से यहां बीजेपी ही बीजेपी है. बीजेपी यहां से जीत का छक्का लगाने की तैयारी में है. पहली बार बीजेपी 1998 में ये सीट जीती थी, उसके बाद कभी हारी नहीं. बीजेपी ने यहां से मौजूदा सांसद बोध सिंह भगत का टिकट काटकर ढाल सिंह बिसेन को प्रत्याशी बनाया है. टिकट कटने के बाद बोध सिंह निर्दलीय ताल ठोक रहे हैं जो बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी कर रहे हैं. वही कांग्रेस की तरफ से मधु भगत मैदान में हैं.
इन छह सीटों पर बीजेपी जीत का चौका-छक्का लगाने की तैयारी में है, जबकि कांग्रेस प्रदेश की सत्ता की तरह केंद्र की सत्ता से बेदखल करने की हर संभव कोशिश कर रही है. अब 23 मई को आने वाले नतीजे ही तय करेंगे कि बीजेपी जीत का चौका-छक्का लगा पाती है या कांग्रेस कैच लपककर बीजेपी को क्लीन बोल्ड कर देती है.