भोपाल। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब हर सांसद को उसके संसदीय क्षेत्र का एक गांव गोद लेकर उसे आर्दश गांव बनाने का जिम्मा सौंपा था, तब ये योजना बहुत आदर्श लगी थी, लेकिन गांवों को आदर्श बनाने में सांसदों ने जैसा आदर्शवाद दिखाया उससे इनकी जमीनी हकीकत बिल्कुल अलग नज़र आने लगी. अगर भोपाल सांसद आलोक संजर के गोद लिए गांव तारासेवनियां का हाल देखें तो नतीजे मिले-जुले नजर आते हैं.
आर्दश गांव तारासेवनियां में पीने के पानी की कमी यहां के बाशिंदों की सबसे बड़ी समस्या है. ग्रामीणों के मुताबिक नल-जल योजना के तहत लगी पानी की मोटर एक अरसे से खराब है और पीने का पानी लेने के लिए ग्रामीणों को लंबी दूरी तय करनी पड़ती है.
ग्रामीणों की पानी की समस्या का निदान न तो प्रदेश सरकार की योजना से हुआ और न ही सांसद से, लेकिन ऐसा नहीं है कि अपने आदर्श गांव के लिए सांसद महोदय ने कुछ किया ही नहीं. आलोक संजर ने यहां स्वास्थ्य केंद्र भी बनवाया और पशु चिकित्सा केंद्र भी, वो अलग बात है कि इन्हें बनवाकर वे डॉक्टरों का इंतजाम करना भूल गए सो ग्रामीणों को अपनी और पशुओं की चिकित्सा के लिए शहर का रास्ता ताकना पड़ता है.
गांव में इतना कुछ कराने के बाद भी युवाओं को सांसद से शिकायत है कि न तो उनके गांव की सूरत बदली और न ही उनके रोजगार का कोई इंतजाम हुआ.गांव के लोग सांसद आदर्श ग्राम से भले ही खुश न हों, लेकिन चार हजार की आबादी वाले गांव के ODF हो जाने और पीएम आवास योजना के तहत गांव में बने आवासों पर ग्रामीण खुशी जाहिर करते हैं.
गांव गोद लेने के बाद सांसद ने यहां काम तो बहुत कराये, लेकिन ऐसे विकास कार्यों को चिराग लेकर ढूंढना पड़ेगा, जो अपने मुकाम तक पहुंचे हों. बहरहाल ग्रामीणों को सांसद के ये आधे-अधूरे काम कितने रास आते हैं इसका जवाब उसे खुद ही देना है.