मुरैनाl सियासी शतरंज का बादशाह, चाणक्य जैसी चातुरता और बाजी पलटने की कुशलता ने एक आम इंसान को सियासत का बाजीगर बना दिया, नाम है नरेंद्र सिंह तोमर, एक साधारण परिवार से आने वाले नरेंद्र सिंह तोमर की राजनीतिक कुशलता का लोहा पूरा बीजेपी संगठन मानता है. उनकी अगुवाई में बीजेपी ने 2008 और 2013 में मध्यप्रदेश की सत्ता में वापसी की थी.
2014 में ग्वालियर लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर दिल्ली पहुंचे तोमर को मोदी कैबिनेट में अहम जिम्मेदारी सौंपी गयी थी. 2019 में बीजेपी को मिले प्रचंड बहुमत में मुरैना सीट से तोमर ने भी जीत का झंडा बुलंद किया. जहां उनका मुकाबला 2009 में प्रतिद्वंदी रहे रामनिवास रावत से था, 2009 के बाद 2019 में भी तोमर ने रावत सियासी मैदान में धूल चटा दी. पार्टी ने मुरैना से अटल बिहारी के भांजे अनूप मिश्रा का टिकट काटकर तोमर को प्रत्याशी बनाया था. नरेंद्र सिंह तोमर के सियासी सफर पर एक नजर डालते हैं.
- 1983 में ग्वालियर नगर निगम के पार्षद चुने गए
- 1998 में पहली बार विधायक बने
- 2003 में मध्यप्रदेश सरकार में मंत्री बने
- 2009 लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बने
- 2008 और 2013 में तोमर की अगुवाई में पार्टी ने सूबे की सत्ता में वापसी की
- 2014 में दूसरी बार लोकसभा चुनाव जीतने के बाद केंद्रीय मंत्री बनाए गए
- 2019 में लोकसभा चुनाव जीतने के बाद मोदी मंत्रिमंडल में दोबारा जगह पक्की
- नरेंद्र सिंह तोमर एक बार राज्यसभा के लिए भी चुने गए
- बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं
बागी-बीहड़ के लिए बदनाम, लेकिन मोर, घड़ियाल, डॉल्फिन के अलावा गजक की मिठास वाले मुरैना से निकलकर दिल्ली की गलियों में तोमर का सितारा इस कदर बुलंद हुआ कि उनकी चमक के आगे बड़े-बड़ों की चमक फीकी पड़ गयी. मध्यप्रदेश की सियासत में हमेशा पर्दे के पीछे से राजनीति करने वाले नरेंद्र सिंह तोमर अब सूबे में बीजेपी के एक मजबूत स्तंभ के रुप में स्थापित हो चुके हैं. मुरैना से चुनाव लड़ने के साथ-साथ बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने उन्हें सूबे की सभी सीटों के मैनेजमेंट की जिम्मेदारी भी सौंपी थी. जिसे हकीकत में बदलना उनके सियासी कौशल की खुद-ब-खुद गवाही देता है. यही वजह है कि एक बार फिर तोमर मोदी की आंखों का तारा बनकर उभरे हैं.