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सियासी भंवर में फंसी कमलनाथ सरकार, कौन बनेगा तारणहार? - कमलनाथ घिरे

संकट के दौर से गुजर रही मध्यप्रदेश सरकार के सामने रोजाना नई-नई परेशानी खड़ी हो रही है, चुनाव हारने का जख्म अभी भरा भी नहीं था किस सरकार पर बढ़ते संकट ने कांग्रेसियों की नींद उड़ा दी है. हालांकि, सरकार पूरे आत्मविश्वास के साथ कह रही है कि किसी तरह का कोई खतरा नहीं है, लेकिन इन विषम परिस्थितियों के सामने सरकार को चट्टान की तरह टिके रहना चुनौती होगी.

बैठक करते सीएम कमलनाथ
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Published : May 29, 2019, 7:11 PM IST

Updated : May 29, 2019, 7:40 PM IST

भोपाल। जून 2017 के पहले हफ्ते में हुए किसान आंदोलन ने मध्यप्रदेश में बदलाव की जो नींव रखी थी, उसने 15 साल से प्रदेश में जमी बीजेपी सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया था, लेकिन बीजेपी छह महीने के अंदर ही फिर से आम लोगों के दिल में जगह बनाने में सफल रही. अब वही किसान संगठन कांग्रेस सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरने वाला था, जिसे कमलनाथ सरकार ने पहले ही मना लिया और ये आंदोलन शुरू होते ही समाप्त हो गया.

  • किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए गठित होगी राज्यस्तरीय समिति। मुख्यमंत्री श्री कमल नाथ की घोषणा। भारतीय किसान मजदूर महासंघ के प्रतिनिधि से चर्चा के बाद महासंघ ने हड़ताल वापस लेने की घोषणा की।
    Read More.. https://t.co/wY84xRlpug pic.twitter.com/Bh0V7dO0Kz

    — CMO Madhya Pradesh (@CMMadhyaPradesh) May 29, 2019 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

मुख्यमंत्री कमलनाथ ने किसान संगठन के नेताओं के साथ बैठक कर उनकी मांगों को पूरा करने का आश्वासन दिया, इसके लिए सीएम की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित करने का फैसला भी बैठक में लिया गया है, जो किसान हित से जुड़े फैसले लेगी, साथ ही कर्जमाफी की विसंगतियों को भी दूर करने का आश्वासन दिया है. बैठक के बाद सीएम ने कई और मुद्दों पर अपनी बात रखी, उन्होंने दो टूक कहा कि सरकार को कोई खतरा नहीं है. पिछली सरकार के कारनामों की फाइलें खुलने वाली हैं, जिसके चलते बीजेपी ध्यान भटकाने के लिए रोजाना नये-नये मुद्दे गढ़ रही है.

  • किसानों की समस्या को हमेशा गंभीरता से लेने वाले प्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय कमलनाथ जी समन्वय भवन में किसान संगठन के प्रतिनिधियों से मुलाक़ात कर रहे हैं।
    —इस अवसर पर प्रदेश वित्त मंत्री श्री तरुण भनोट और कृषि मंत्री श्री सचिन यादव भी मौजूद हैं। pic.twitter.com/rNaaIapRQC

    — MP Congress (@INCMP) May 29, 2019 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

दरअसल, इन दिनों मध्यप्रदेश सरकार संकट के दौर से गुजर रही है, सभी मंत्री विधायकों पर नजर रख रहे हैं, जबकि सरकार मंत्रिमंडल विस्तार के जरिए नाराज विधायकों को मनाने की तैयारी में है. इसके अलावा विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने अपनी सुरक्षा वापस करके एक तरह से सरकार को आंख दिखा दी है. उपर से लोकसभा चुनाव के दौरान 7 अप्रैल को सुबह आयकर विभाग की छापेमारी में कमलनाथ के ओएसडी प्रवीण कक्कड़ सहित पांच करीबियों के दर्जनों ठिकानों से करोड़ों की बेनामी संपत्ति बरामद हुई थी.

मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह सहित कांग्रेस के 11 प्रत्याशियों को चुनाव के दौरान मिले करोड़ों रुपये की जांच चुनाव आयोग सीबीआई से कराने की तैयारी कर रही है, उधर यूपी सरकार ने कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ की गाजियाबाद स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी को आवंटित करीब 10841 वर्ग मीटर जमीन को रद कर दिया है, जिसे कांग्रेस बदले की कार्रवाई बता रही है. कुल मिलाकर कमलनाथ सरकार एक के बाद एक मामले में घिरती जा रही है.

भले ही सीएम कमलनाथ सरकार को खतरे से बाहर बता रहे हैं, लेकिन जिस तरह से वह एक-एक कर चौतरफा घिरते जा रहे हैं, उससे सरकार पर एक मनोवैज्ञानिक दबाव भी बन रहा है क्योंकि लोकसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद पदाधिकारियों से लेकर कार्यकर्ताओं तक के मनोबल में गिरावट आयी है. और ऊपर से कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में मध्यप्रदेश में हार की वजह कमलनाथ के पुत्र मोह को बताया जाना भी कमलनाथ को कम परेशान करने वाला नहीं है. जिस तरह प्रदेश सरकार समस्याओं के चक्रव्यूह में फंसी है, उससे बाहर निकलना किसी महारथी के बिना संभव नहीं है. फिलहाल अब कांग्रेस को पहले महारथी की तलाश करनी चाहिए, जो इस सियासी संकट के चक्रव्यूह को भेद सके.

भोपाल। जून 2017 के पहले हफ्ते में हुए किसान आंदोलन ने मध्यप्रदेश में बदलाव की जो नींव रखी थी, उसने 15 साल से प्रदेश में जमी बीजेपी सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया था, लेकिन बीजेपी छह महीने के अंदर ही फिर से आम लोगों के दिल में जगह बनाने में सफल रही. अब वही किसान संगठन कांग्रेस सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरने वाला था, जिसे कमलनाथ सरकार ने पहले ही मना लिया और ये आंदोलन शुरू होते ही समाप्त हो गया.

  • किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए गठित होगी राज्यस्तरीय समिति। मुख्यमंत्री श्री कमल नाथ की घोषणा। भारतीय किसान मजदूर महासंघ के प्रतिनिधि से चर्चा के बाद महासंघ ने हड़ताल वापस लेने की घोषणा की।
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मुख्यमंत्री कमलनाथ ने किसान संगठन के नेताओं के साथ बैठक कर उनकी मांगों को पूरा करने का आश्वासन दिया, इसके लिए सीएम की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित करने का फैसला भी बैठक में लिया गया है, जो किसान हित से जुड़े फैसले लेगी, साथ ही कर्जमाफी की विसंगतियों को भी दूर करने का आश्वासन दिया है. बैठक के बाद सीएम ने कई और मुद्दों पर अपनी बात रखी, उन्होंने दो टूक कहा कि सरकार को कोई खतरा नहीं है. पिछली सरकार के कारनामों की फाइलें खुलने वाली हैं, जिसके चलते बीजेपी ध्यान भटकाने के लिए रोजाना नये-नये मुद्दे गढ़ रही है.

  • किसानों की समस्या को हमेशा गंभीरता से लेने वाले प्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय कमलनाथ जी समन्वय भवन में किसान संगठन के प्रतिनिधियों से मुलाक़ात कर रहे हैं।
    —इस अवसर पर प्रदेश वित्त मंत्री श्री तरुण भनोट और कृषि मंत्री श्री सचिन यादव भी मौजूद हैं। pic.twitter.com/rNaaIapRQC

    — MP Congress (@INCMP) May 29, 2019 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

दरअसल, इन दिनों मध्यप्रदेश सरकार संकट के दौर से गुजर रही है, सभी मंत्री विधायकों पर नजर रख रहे हैं, जबकि सरकार मंत्रिमंडल विस्तार के जरिए नाराज विधायकों को मनाने की तैयारी में है. इसके अलावा विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने अपनी सुरक्षा वापस करके एक तरह से सरकार को आंख दिखा दी है. उपर से लोकसभा चुनाव के दौरान 7 अप्रैल को सुबह आयकर विभाग की छापेमारी में कमलनाथ के ओएसडी प्रवीण कक्कड़ सहित पांच करीबियों के दर्जनों ठिकानों से करोड़ों की बेनामी संपत्ति बरामद हुई थी.

मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह सहित कांग्रेस के 11 प्रत्याशियों को चुनाव के दौरान मिले करोड़ों रुपये की जांच चुनाव आयोग सीबीआई से कराने की तैयारी कर रही है, उधर यूपी सरकार ने कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ की गाजियाबाद स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी को आवंटित करीब 10841 वर्ग मीटर जमीन को रद कर दिया है, जिसे कांग्रेस बदले की कार्रवाई बता रही है. कुल मिलाकर कमलनाथ सरकार एक के बाद एक मामले में घिरती जा रही है.

भले ही सीएम कमलनाथ सरकार को खतरे से बाहर बता रहे हैं, लेकिन जिस तरह से वह एक-एक कर चौतरफा घिरते जा रहे हैं, उससे सरकार पर एक मनोवैज्ञानिक दबाव भी बन रहा है क्योंकि लोकसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद पदाधिकारियों से लेकर कार्यकर्ताओं तक के मनोबल में गिरावट आयी है. और ऊपर से कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में मध्यप्रदेश में हार की वजह कमलनाथ के पुत्र मोह को बताया जाना भी कमलनाथ को कम परेशान करने वाला नहीं है. जिस तरह प्रदेश सरकार समस्याओं के चक्रव्यूह में फंसी है, उससे बाहर निकलना किसी महारथी के बिना संभव नहीं है. फिलहाल अब कांग्रेस को पहले महारथी की तलाश करनी चाहिए, जो इस सियासी संकट के चक्रव्यूह को भेद सके.

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सियासी चक्रव्यूह में फंसी कमलनाथ सरकार, कौन बनेगा महारथी





भोपाल। जून 2017 के पहले हफ्ते में हुए किसान आंदोलन ने मध्यप्रदेश में बदलाव की जो नींव रखी थी, उसने 15 साल से प्रदेश में जमी बीजेपी सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया था, लेकिन बीजेपी छह महीने के अंदर ही फिर से आम लोगों के दिल में जगह बनाने में सफल रही. अब वही किसान संगठन कांग्रेस सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरने वाला था, जिसे कमलनाथ सरकार ने पहले ही मना लिया और ये आंदोलन शुरू होते ही समाप्त हो गया.

मुख्यमंत्री कमलनाथ ने किसान संगठन के नेताओं के साथ बैठक कर उनकी मांगों को पूरा करने के लिए सीएम की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित करने की बात कही, जो किसान हित से जुड़े फैसले लेगी, साथ ही कर्जमाफी की विसंगतियों को भी दूर करने का आश्वासन दिया है. बैठक के बाद सीएम ने कई और मुद्दों पर अपनी बात रखी, उन्होंने दो टूक कहा कि सरकार को कोई खतरा नहीं है. पिछली सरकार के कारनामों की फाइलें खुलने वाली हैं, जिसके चलते बीजेपी ध्यान भटकाने के लिए रोजाना नये-नये मुद्दे गढ़ रही है.

दरअसल, इन दिनों मध्यप्रदेश सरकार संकट के दौर से गुजर रही है, सभी मंत्री विधायकों पर नजर रख रहे हैं, जबकि सरकार मंत्रिमंडल विस्तार के जरिए नाराज विधायकों को मनाने की तैयारी में है. इसके अलावा विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने अपनी सुरक्षा वापस करके एक तरह से सरकार को आंख दिखा दी है. उपर से लोकसभा चुनाव के दौरान 7 अप्रैल को सुबह आयकर विभाग की छापेमारी में कमलनाथ के ओएसडी प्रवीण कक्कड़ सहित पांच करीबियों के दर्जनों ठिकानों से करोड़ों की बेनामी संपत्ति बरामद हुई थी.

मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह सहित कांग्रेस के 11 प्रत्याशियों को चुनाव के दौरान मिले करोड़ों रुपये की जांच चुनाव आयोग सीबीआई से कराने की तैयारी कर रही है, उधर यूपी सरकार ने कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ की गाजियाबाद स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी को आवंटित करीब 10841 वर्ग मीटर जमीन को रद कर दिया है, जिसे कांग्रेस बदले की कार्रवाई बता रही है. कुल मिलाकर कमलनाथ सरकार एक के बाद एक मामले में घिरती जा रही है.

भले ही सीएम कमलनाथ सरकार को खतरे से बाहर बता रहे हैं, लेकिन जिस तरह से वह एक-एक कर चौतरफा घिरते जा रहे हैं, उससे सरकार पर एक मनोवैज्ञानिक दबाव भी बन रहा है क्योंकि लोकसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद पदाधिकारियों से लेकर कार्यकर्ताओं तक के मनोबल में गिरावट आयी है. और ऊपर से कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में मध्यप्रदेश में हार की वजह कमलनाथ के पुत्र मोह को बताया जाना भी कमलनाथ को कम परेशान करने वाला नहीं है. जिस तरह प्रदेश सरकार समस्याओं के चक्रव्यूह में फंसी है, उससे बाहर निकलना किसी महारथी के बिना संभव नहीं है. फिलहाल अब कांग्रेस को पहले महारथी की तलाश करनी चाहिए, जो इस सियासी संकट का चक्रव्यूह को भेद सके.


Conclusion:
Last Updated : May 29, 2019, 7:40 PM IST
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