ETV Bharat / state

वाइल्ड लाइफ बोर्ड में नियुक्ति के खिलाफ वन्यप्रेमियों ने खोला मोर्चा, प्रदेश सरकार के खिलाफ हाईकोर्ट में करेंगे अपील

कमलनाथ सरकार के कामकाज से वन्य प्रेमी और विशेषज्ञ नाराज हैं. वन्यप्रेमियों ने सीएम कमलनाथ पर वाइल्ड लाइफ बोर्ड में अयोग्य व्यक्ति की नियुक्ति का आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट जाने की बात कही है.

author img

By

Published : Aug 14, 2019, 5:42 PM IST

डिजाइन फोटो

भोपाल। एक तरफ बाघ संरक्षण के मामले में मध्यप्रदेश राष्ट्रीय स्तर पर उपलब्धियां हासिल कर रहा है. वहीं दूसरी तरफ कमलनाथ सरकार के कामकाज से वन्य प्रेमी और विशेषज्ञ नाराज हैं. वन्यप्रेमियों ने सीएम कमलनाथ पर वाइल्ड लाइफ बोर्ड में अयोग्य व्यक्ति की नियुक्ति का आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट जाने की बात कही है.


वन्यप्रेमियों की माने तो कमलनाथ सरकार ने राज्य वन्य प्राणी बोर्ड में ऐसे कई सदस्यों की नियुक्त की हैं. जिनकी योग्यता और चरित्र पर सवाल खड़े हो रहे हैं. इस मामले में वन्य प्राणी संरक्षण कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री से नियुक्तियां रद्द करने की मांग की है. वन्यप्रेमियों का कहना है कि अगर मुख्यमंत्री कमलनाथ यह नियुक्तियां रद्द नहीं करेंगे. तो वन्य प्राणी संरक्षण कार्यकर्ता सरकार के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे.

वन्यप्रेमियों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला


आरटीआई एक्टिविस्ट अजय दुबे का कहना है कि प्रदेश सरकार ने जो वाइल्ड लाइफ बोर्ड बनाया है, वो वाइल्ड लाइफ एक्ट के विरूद्ध बनाया गया है. अजय दुबे ने कहा कि इस बोर्ड में अयोग्व व दागी लोगों को शामिल किया गया है. उन्होंने कहा कि अयोग्य लोगों के बोर्ड में रहने से वन्यप्राणियों की सुरक्षा में सवाल खड़े होते हैं. अजय दुबे ने कहा कि सीएम ने अपनी ताकत को गलत उपयोग कर, जो काबिल लोग थे उन्हें दरकिनार किया है. लिहाजा वे इस मामले को लेकर हाईकोर्ट जाएंगे.

भोपाल। एक तरफ बाघ संरक्षण के मामले में मध्यप्रदेश राष्ट्रीय स्तर पर उपलब्धियां हासिल कर रहा है. वहीं दूसरी तरफ कमलनाथ सरकार के कामकाज से वन्य प्रेमी और विशेषज्ञ नाराज हैं. वन्यप्रेमियों ने सीएम कमलनाथ पर वाइल्ड लाइफ बोर्ड में अयोग्य व्यक्ति की नियुक्ति का आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट जाने की बात कही है.


वन्यप्रेमियों की माने तो कमलनाथ सरकार ने राज्य वन्य प्राणी बोर्ड में ऐसे कई सदस्यों की नियुक्त की हैं. जिनकी योग्यता और चरित्र पर सवाल खड़े हो रहे हैं. इस मामले में वन्य प्राणी संरक्षण कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री से नियुक्तियां रद्द करने की मांग की है. वन्यप्रेमियों का कहना है कि अगर मुख्यमंत्री कमलनाथ यह नियुक्तियां रद्द नहीं करेंगे. तो वन्य प्राणी संरक्षण कार्यकर्ता सरकार के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे.

वन्यप्रेमियों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला


आरटीआई एक्टिविस्ट अजय दुबे का कहना है कि प्रदेश सरकार ने जो वाइल्ड लाइफ बोर्ड बनाया है, वो वाइल्ड लाइफ एक्ट के विरूद्ध बनाया गया है. अजय दुबे ने कहा कि इस बोर्ड में अयोग्व व दागी लोगों को शामिल किया गया है. उन्होंने कहा कि अयोग्य लोगों के बोर्ड में रहने से वन्यप्राणियों की सुरक्षा में सवाल खड़े होते हैं. अजय दुबे ने कहा कि सीएम ने अपनी ताकत को गलत उपयोग कर, जो काबिल लोग थे उन्हें दरकिनार किया है. लिहाजा वे इस मामले को लेकर हाईकोर्ट जाएंगे.

Intro:भोपाल। एक तरफ बाघ संरक्षण के मामले में मध्य प्रदेश को राष्ट्रीय स्तर पर उपलब्धियां हासिल हो रही है और दूसरी तरफ कमलनाथ सरकार के कामकाज से प्रदेश के वन्यप्रेमी और विशेषज्ञ नाराज है। दरअसल कमलनाथ सरकार ने राज्य वन्य प्राणी बोर्ड में ऐसे सदस्य नियुक्त किए हैं। जिन की योग्यता और चरित्र पर सवाल खड़े हो रहे हैं। इस मामले में वन्य प्राणी संरक्षण कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री से नियुक्तियां रद्द करने की मांग की है और अगर मुख्यमंत्री कमलनाथ यह नियुक्तियां रद्द नहीं करेंगे।तो वन्य प्राणी संरक्षण कार्यकर्ता मध्य प्रदेश सरकार के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की तैयारी कर रहे हैं।


Body:दरअसल वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत 2003 से केंद्र और राज्य सरकारों को वन्य प्राणियों के संरक्षण के लिए वन्य प्राणी बोर्ड गठित करना अनिवार्य किया गया था। वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 6 के तहत केंद्र सरकार ने विधिवत नियम बनाकर 2003 में नेशनल वाइल्डलाइफ बोर्ड का गठन किया।किंतु मध्य प्रदेश सरकार ने 2003 में वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 64 के तहत आवश्यक नियमों को ना बनाते हुए मध्य प्रदेश राज्य वन प्राणी बोर्ड का गठन किया, जो अवैधानिक है। सरकार की स्थिति को लेकर वन्य प्राणी संरक्षण कार्यकर्ता कई बार कार्रवाई का अनुरोध कर चुके हैं। लेकिन अभी तक यह स्थिति नहीं सुधारी गई है। हाल ही में कमलनाथ सरकार ने 3 अगस्त 2019 को आवश्यक नियमों के अभाव में ही मध्य प्रदेश राज्य बनने प्राणी बोर्ड का पुनर्गठन किया, जो न केवल अवैधानिक है। बल्कि वन और वन्य प्राणियों के सबसे बड़ा संरक्षक वनवासियों के खिलाफ भी है।

वन्य प्राणी संरक्षण कार्यकर्ताओं का कहना है कि सरकार ने वनवासियों के साथ भेदभाव करते हुए इस पुनर्गठन बोर्ड में गैर सरकारी सदस्यों में अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को शामिल नहीं किया है।वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 6 (1) ई के तहत राज्य बनने प्राणी बोर्ड में 10 गैर सरकारी प्रख्यात लोगों को जो वन्य प्राणी संरक्षण में कार्यरत हों, राज्य सरकार नामांकित करती है। अधिनियम के अनुसार इस में न्यूनतम 2 सदस्य अनुसूचित जनजाति के होना ही चाहिए। 10 गैर सरकारी सदस्यों में आदिवासी समुदाय के सदस्य का ना होना। कांग्रेस पार्टी की आदिवासी समाज के प्रति असंवेदनशीलता को भी उजागर करता है। सरकार ने कानून के अनुसार राज्य वन्य प्राणी बोर्ड में आवश्यक 3 विधायकों में से 2 अनुसूचित जनजाति विधायकों को सदस्य बनाकर जो औपचारिकता पूरी की है। वह 10 गैर सरकारी सदस्यों में न्यूनतम दो आदिवासी समाज के सदस्यों की अनिवार्यता से मुक्ति नहीं दिलाती है. पहले भी राज्य सरकार के वन विभाग ने मध्य प्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्य प्राणी को पत्र लिखकर दो आदिवासी गैर सरकारी सदस्यों की नियुक्ति पर कानूनी प्रक्रिया का स्पष्ट जिक्र किया था।

राज्य सरकार द्वारा गठित राज्य वन्य प्राणी बोर्ड में दो सदस्यों को केवल वन्य प्राणी में रुचि के कारण सदस्य बनाया, जो कानून के अनुसार अनुचित है।क्योंकि कानून के अनुसार सदस्य को वन्य प्राणी संरक्षण में प्रख्यात होना चाहिए।इसके अलावा एक ऐसे सदस्य को बोर्ड में नामांकित किया गया है। जिनके परिजनों पर बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के निकट आदिवासी समाज की जमीन पर अवैध कब्जा कर रिसोर्ट बनाने की पुष्टि पूर्व शेड्यूल कमिश्नर की रिपोर्ट में हुई है। एक और ऐसे विवादित व्यक्ति को बोर्ड का सदस्य बनाया है, जो पिछले वर्ष नियम विरुद्ध तरीके से राजस्थान के रणथंभौर टाइगर रिजर्व में घूमते हुए पाए गए थे और टाइगर रिजर्व के कैमरा ट्रैप फोटोग्राफ में इनकी फोटो वायरल हुई थी।


Conclusion:वन्य प्राणी संरक्षण कार्यकर्ताओं का आरोप है कि कमलनाथ सरकार में अधिकतर गैर सरकारी सदस्यों को मध्यप्रदेश के बाहर से चुना है और एक ऐसे रिटायर्ड आईएएस अफसर को सदस्य बनाया है, जो पिछले 15 साल से मध्यप्रदेश/ देश से बाहर पदस्थ रहे हैं। यह सदस्य मध्य प्रदेश की जमीनी हकीकत से वाकिफ नहीं है। कमलनाथ सरकार ने बोर्ड में उम्र दराज गैर सरकारी सदस्यों को बनाकर मध्य प्रदेश के भविष्य के वन और वन्य प्राणियों के संरक्षण की समस्याओं के प्रबंधन के प्रति संवेदनशीलता जाहिर की है। वन्य प्राणी संरक्षण कार्यकर्ता अजय दुबे का कहना है कि मुझे जानकारी मिली है कि वन विभाग ने राज्य वन्य प्राणी बोर्ड के लिए वन्य प्राणी संरक्षण से जुड़े लोगों की सूची आपको प्रस्तुत की थी। किंतु उसे दरकिनार कर राजनीतिक और निजी स्वार्थ के कारण मुख्यमंत्री कार्यालय ने अयोग्य लोगों को नियम विरुद्ध चयनित किया। मैं आपको सूचित करना चाहता हूं कि मुझे राज्य वन्य प्राणी बोर्ड में गैर सरकारी सदस्य के पद पर नामांकन हेतु वन विभाग से अनुरोध प्राप्त हुआ था।किंतु मैंने विनम्रता पूर्वक उसे अस्वीकार कर दिया था। मैं स्वयं पिछले 20 सालों से पर्यावरण और वन्य प्राणियों के संरक्षण के लिए कार्यरत हूं।अजय दुबे ने मुख्यमंत्री से तत्काल राज्य बनने प्राणी बोर्ड को भंग कर वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत नियम बनाने और योग्य एवं प्रख्यात लोगों को शामिल करने की मांग की है और कहा है कि अगर इस मामले में सरकार ने उचित कदम नहीं उठाए तो हमें हाईकोर्ट की शरण लेना पड़ेगी।
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.