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Masik Durga Ashtami 2021: जगत जननी की मनोयोग से की पूजा तो मिलेगा मनोवांछित फल

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Published : Jun 17, 2021, 7:43 AM IST

वर्ष के हर मास में मां आदिशक्ति की उपासना विधिवत अष्टमी तिथि को होती है. भक्तगण हर महीने की अष्टमी तिथि को दुर्गाष्टमी का व्रत रखते हैं और मां दुर्गा की विधि-विधान से पूजा करते हैं. इस बार ज्येष्ठ माह की दुर्गाष्टमी 18 जून 2021 को है. आपको बताते हैं वो सरल पूजा विधि और महत्त्व जिससे जगत जननी को आप प्रसन्न कर सकते हैं.

durgashtami
दुर्गाष्टमी

भोपाल। देवी दुर्गा के नौ रूपों को समर्पित नवरात्र में जो अष्टमी आती है उसे महाष्टमी कहते हैं. लेकिन इनके अलावा भी वर्ष के हर मास में मां आदिशक्ति की उपासना विधिवत अष्टमी तिथि को होती है. भक्तगण हर महीने की अष्टमी तिथि को दुर्गाष्टमी का व्रत रखते हैं और मां दुर्गा की विधि-विधान से पूजा करते हैं. इससे मां दुर्गा भक्तों पर प्रसन्न होकर उन्हें सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति दिलाती है. उनको शत्रुओं पर विजय दिलाती है. मान्यता है कि सच्चे मन से मां दुर्गा की आराधना करने वालों पर वे अपनी कृपा बरसाती हैं.हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को दुर्गाष्टमी मनाई जाती है. इस बार ज्येष्ठ माह की दुर्गाष्टमी 18 जून 2021 को है. आज आपको बताते हैं वो सरल पूजा विधि और महत्त्व जिससे जगत जननी को आप प्रसन्न कर सकते हैं.

मासिक दुर्गाष्टमी शुभ मुहूर्त (masik durgashtami muhurat)

ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि आरंभ- 17 जून 2021 बृहस्पतिवार रात 09 बजकर 52 मिनट से

ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि समाप्त – 18 जून 2021 दिन शुक्रवार रात 08 बजकर 39 मिनट तक

हाथ नहीं, मुंह थाली से लगाकर मौन व्रत तोड़ते हैं ये लोग, महिला लिबास में नजर आते हैं पुरुष

मासिक दुर्गाष्टमी सरल पूजा विधि (simple puja vidhi)

  • अष्टमी तिथि के दिन भक्त प्रातःकाल उठकर स्नान कर साफ कपड़े पहनें.
  • घर में पूजा स्थल साफ-सफाई के बाद गंगाजल से शुद्ध करें.
  • अब पूजा स्थल पर पूजा चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं और माता दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करें.
  • मां के समक्ष धूप- दीप जलाएं तथा लाल चुनरी चढ़ाएं.
  • इसके बाद अक्षत, लाल पुष्प, फल और मिष्ठान भी अर्पित करें.
  • श्री दुर्गा सप्तशती में सात सौ श्लोकों में महिषासुर पर माँ दुर्गा की विजय का वर्णन किया गया है संभव हो तो इनका जाप करें
  • अब मां दुर्गा की चालीसा करें और आरती उतारें.

दुर्गाष्टमी व्रत का महत्त्व (Masik Durga Ashtami significance )

धार्मिक मान्यता है कि जो भक्त दुर्गाष्टमी तिथि पर मां दुर्गा की पूजा सच्चे दिल और पूरे विधि-विधान से करते हैं. उन्हें शुभ फल की प्राप्ति होती है. इस दिन भक्त मां दुर्गा मंत्रों का पाठ करते हैं. कहा जाता है कि ऐसा करने से व्यक्ति को स्वास्थ्य, धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है. जो भक्त प्रत्येक मासिक दुर्गाअष्टमी को व्रत और पूजन करते हैं, मां आदिशक्ति जगदंबे उनके सारे कष्टों का हरण कर लेती है। उन्हें स्वास्थ्य, धन, समृद्धि और खुशहाली की प्राप्ति होती है।

दुर्गाष्टमी की कथा (मासिक दुर्गाष्टमी कथा) : Masik Durga Ashtami Katha पौराणिक मान्यताओं अनुसार, प्राचीन काल में असुर दंभ को महिषासुर नाम के एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी, जिसके भीतर बचपन से ही अमर होने की प्रबल इच्छा थीं। अपनी इसी इच्छा की पूर्ति के लिए उसने अमर होने का वरदान हासिल करने के लिए ब्रह्मा जी की घोर तपस्या आरंभ की। महिषासुर द्वारा की गई इस कठोर तपस्या से ब्रह्मा जी प्रसन्न भी हुए और उन्होंने वैसा ही किया जैसा महिषासुर चाहता था। ब्रह्मा जी ने खुश होकर उसे मनचाहा वरदान मांगने को कहा, ऐसे में महिषासुर, जो सिर्फ अमर होना चाहता था, उसने ब्रह्मा जी से वरदान मांगते हुए खुद को अमर करने के लिए उन्हें बाध्य कर दिया।

परन्तु ब्रह्मा जी ने महिषासुर को अमरता का वरदान देने की बात ये कहते हुए टाल दी कि जन्म के बाद मृत्यु और मृत्यु के बाद जन्म निश्चित है, इसलिए अमरता जैसी किसी बात का कोई अस्तित्व नहीं है। जिसके बाद ब्रह्मा जी की बात सुनकर महिषासुर ने उनसे एक अन्य वरदान मानने की इच्छा जताते हुए कहा कि ठीक है स्वामी, यदि मृत्यु होना तय है तो मुझे ऐसा वरदान दे दीजिये कि मेरी मृत्यु किसी स्त्री के हाथ से ही हो, इसके अलावा अन्य कोई दैत्य, मानव या देवता, कोई भी मेरा वध ना कर पाए।

जिसके बाद ब्रह्मा जी ने महिषासुर को दूसरा वरदान दे दिया। ब्रह्मा जी द्वारा वरदान प्राप्त करते ही महिषासुर अहंकार से अंधा हो गया और इसके साथ ही बढ़ गया उसका अन्याय। मौत के भय से मुक्त होकर उसने अपनी सेना के साथ पृथ्वी लोक पर आक्रमण कर दिया, जिससे धरती चारों तरफ से त्राहिमाम-त्राहिमाम होने लगी। उसके बल के आगे समस्त जीवों और प्राणियों को नतमस्तक होना ही पड़ा। जिसके बाद पृथ्वी और पाताल को अपने अधीन करने के बाद अहंकारी महिषासुर ने इन्द्रलोक पर भी आक्रमण कर दिया, जिसमें उन्होंने इन्द्र देव को पराजित कर स्वर्ग पर भी कब्ज़ा कर लिया।

महिषासुर से परेशान होकर सभी देवी-देवता त्रिदेवों (महादेव, ब्रह्मा और विष्णु) के पास सहायता मांगने पहुंचे। इस पर विष्णु जी ने उसके अंत के लिए देवी शक्ति के निर्णाम की सलाह दी। जिसके बाद सभी देवताओं ने मिलकर देवी शक्ति को सहायता के लिए पुकारा और इस पुकार को सुनकर सभी देवताओं के शरीर में से निकले तेज ने एक अत्यंत खूबसूरत सुंदरी का निर्माण किया। उसी तेज से निकली मां आदिशक्ति जिसके रूप और तेज से सभी देवता भी आश्चर्यचकित हो गए।

त्रिदेवों की मदद से निर्मित हुई देवी दुर्गा को हिमवान ने सवारी के लिए सिंह दिया और इसी प्रकार वहां मौजूद सभी देवताओं ने भी मां को अपने एक-एक अस्त्र-शस्त्र सौंपे और इस तरह स्वर्ग में देवी दुर्गा को इस समस्या हेतु तैयार किया गया। माना जाता है कि देवी का अत्यंत सुन्दर रूप देखकर महिषासुर उनके प्रति बहुत आकर्षित होने लगा और उसने अपने एक दूत के जरिए देवी के पास विवाह का प्रस्ताव तक पहुंचाया। अहंकारी महिषासुर की इस ओच्छी हरकत ने देवी भगवती को अत्याधिक क्रोधित कर दिया, जिसके बाद ही मां ने महिषासुर को युद्ध के लिए ललकारा।

मां दुर्गा से युद्ध की ललकार सुनकर ब्रह्मा जी से मिले वरदान के अहंकार में अंधा महिषासुर उनसें युद्ध करने के लिए तैयार भी हो गया। इस युद्ध में एक-एक करके महिषासुर की संपूर्ण सेना का मां दुर्गा ने सर्वनाश कर दिया। इस दौरान माना ये भी जाता है कि ये युद्ध पूरे नौ दिनों तक चला जिस दौरान असुरों के सम्राट महिषासुर ने विभिन्न रूप धककर देवी को छलने की कई बार कोशिश की, लेकिन उसकी सभी कोशिश आखिरकार नाकाम रही और देवी भगवती ने अपने चक्र से इस युद्ध में महिषासुर का सिर काटते हुए उसका वध कर दिया। अंत: इस तरह देवी भगवती के हाथों महिषासुर की मृत्यु संभव हो पाई।

माना जाता है कि जिस दिन मां भगवती ने स्वर्ग लोक, पृथ्वी लोक और पाताल लोक को महिषासुर के पापों से मुक्ति दिलाई उस दिन से ही दुर्गा अष्टमी का पर्व प्रारम्भ हुआ।

भोपाल। देवी दुर्गा के नौ रूपों को समर्पित नवरात्र में जो अष्टमी आती है उसे महाष्टमी कहते हैं. लेकिन इनके अलावा भी वर्ष के हर मास में मां आदिशक्ति की उपासना विधिवत अष्टमी तिथि को होती है. भक्तगण हर महीने की अष्टमी तिथि को दुर्गाष्टमी का व्रत रखते हैं और मां दुर्गा की विधि-विधान से पूजा करते हैं. इससे मां दुर्गा भक्तों पर प्रसन्न होकर उन्हें सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति दिलाती है. उनको शत्रुओं पर विजय दिलाती है. मान्यता है कि सच्चे मन से मां दुर्गा की आराधना करने वालों पर वे अपनी कृपा बरसाती हैं.हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को दुर्गाष्टमी मनाई जाती है. इस बार ज्येष्ठ माह की दुर्गाष्टमी 18 जून 2021 को है. आज आपको बताते हैं वो सरल पूजा विधि और महत्त्व जिससे जगत जननी को आप प्रसन्न कर सकते हैं.

मासिक दुर्गाष्टमी शुभ मुहूर्त (masik durgashtami muhurat)

ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि आरंभ- 17 जून 2021 बृहस्पतिवार रात 09 बजकर 52 मिनट से

ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि समाप्त – 18 जून 2021 दिन शुक्रवार रात 08 बजकर 39 मिनट तक

हाथ नहीं, मुंह थाली से लगाकर मौन व्रत तोड़ते हैं ये लोग, महिला लिबास में नजर आते हैं पुरुष

मासिक दुर्गाष्टमी सरल पूजा विधि (simple puja vidhi)

  • अष्टमी तिथि के दिन भक्त प्रातःकाल उठकर स्नान कर साफ कपड़े पहनें.
  • घर में पूजा स्थल साफ-सफाई के बाद गंगाजल से शुद्ध करें.
  • अब पूजा स्थल पर पूजा चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं और माता दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करें.
  • मां के समक्ष धूप- दीप जलाएं तथा लाल चुनरी चढ़ाएं.
  • इसके बाद अक्षत, लाल पुष्प, फल और मिष्ठान भी अर्पित करें.
  • श्री दुर्गा सप्तशती में सात सौ श्लोकों में महिषासुर पर माँ दुर्गा की विजय का वर्णन किया गया है संभव हो तो इनका जाप करें
  • अब मां दुर्गा की चालीसा करें और आरती उतारें.

दुर्गाष्टमी व्रत का महत्त्व (Masik Durga Ashtami significance )

धार्मिक मान्यता है कि जो भक्त दुर्गाष्टमी तिथि पर मां दुर्गा की पूजा सच्चे दिल और पूरे विधि-विधान से करते हैं. उन्हें शुभ फल की प्राप्ति होती है. इस दिन भक्त मां दुर्गा मंत्रों का पाठ करते हैं. कहा जाता है कि ऐसा करने से व्यक्ति को स्वास्थ्य, धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है. जो भक्त प्रत्येक मासिक दुर्गाअष्टमी को व्रत और पूजन करते हैं, मां आदिशक्ति जगदंबे उनके सारे कष्टों का हरण कर लेती है। उन्हें स्वास्थ्य, धन, समृद्धि और खुशहाली की प्राप्ति होती है।

दुर्गाष्टमी की कथा (मासिक दुर्गाष्टमी कथा) : Masik Durga Ashtami Katha पौराणिक मान्यताओं अनुसार, प्राचीन काल में असुर दंभ को महिषासुर नाम के एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी, जिसके भीतर बचपन से ही अमर होने की प्रबल इच्छा थीं। अपनी इसी इच्छा की पूर्ति के लिए उसने अमर होने का वरदान हासिल करने के लिए ब्रह्मा जी की घोर तपस्या आरंभ की। महिषासुर द्वारा की गई इस कठोर तपस्या से ब्रह्मा जी प्रसन्न भी हुए और उन्होंने वैसा ही किया जैसा महिषासुर चाहता था। ब्रह्मा जी ने खुश होकर उसे मनचाहा वरदान मांगने को कहा, ऐसे में महिषासुर, जो सिर्फ अमर होना चाहता था, उसने ब्रह्मा जी से वरदान मांगते हुए खुद को अमर करने के लिए उन्हें बाध्य कर दिया।

परन्तु ब्रह्मा जी ने महिषासुर को अमरता का वरदान देने की बात ये कहते हुए टाल दी कि जन्म के बाद मृत्यु और मृत्यु के बाद जन्म निश्चित है, इसलिए अमरता जैसी किसी बात का कोई अस्तित्व नहीं है। जिसके बाद ब्रह्मा जी की बात सुनकर महिषासुर ने उनसे एक अन्य वरदान मानने की इच्छा जताते हुए कहा कि ठीक है स्वामी, यदि मृत्यु होना तय है तो मुझे ऐसा वरदान दे दीजिये कि मेरी मृत्यु किसी स्त्री के हाथ से ही हो, इसके अलावा अन्य कोई दैत्य, मानव या देवता, कोई भी मेरा वध ना कर पाए।

जिसके बाद ब्रह्मा जी ने महिषासुर को दूसरा वरदान दे दिया। ब्रह्मा जी द्वारा वरदान प्राप्त करते ही महिषासुर अहंकार से अंधा हो गया और इसके साथ ही बढ़ गया उसका अन्याय। मौत के भय से मुक्त होकर उसने अपनी सेना के साथ पृथ्वी लोक पर आक्रमण कर दिया, जिससे धरती चारों तरफ से त्राहिमाम-त्राहिमाम होने लगी। उसके बल के आगे समस्त जीवों और प्राणियों को नतमस्तक होना ही पड़ा। जिसके बाद पृथ्वी और पाताल को अपने अधीन करने के बाद अहंकारी महिषासुर ने इन्द्रलोक पर भी आक्रमण कर दिया, जिसमें उन्होंने इन्द्र देव को पराजित कर स्वर्ग पर भी कब्ज़ा कर लिया।

महिषासुर से परेशान होकर सभी देवी-देवता त्रिदेवों (महादेव, ब्रह्मा और विष्णु) के पास सहायता मांगने पहुंचे। इस पर विष्णु जी ने उसके अंत के लिए देवी शक्ति के निर्णाम की सलाह दी। जिसके बाद सभी देवताओं ने मिलकर देवी शक्ति को सहायता के लिए पुकारा और इस पुकार को सुनकर सभी देवताओं के शरीर में से निकले तेज ने एक अत्यंत खूबसूरत सुंदरी का निर्माण किया। उसी तेज से निकली मां आदिशक्ति जिसके रूप और तेज से सभी देवता भी आश्चर्यचकित हो गए।

त्रिदेवों की मदद से निर्मित हुई देवी दुर्गा को हिमवान ने सवारी के लिए सिंह दिया और इसी प्रकार वहां मौजूद सभी देवताओं ने भी मां को अपने एक-एक अस्त्र-शस्त्र सौंपे और इस तरह स्वर्ग में देवी दुर्गा को इस समस्या हेतु तैयार किया गया। माना जाता है कि देवी का अत्यंत सुन्दर रूप देखकर महिषासुर उनके प्रति बहुत आकर्षित होने लगा और उसने अपने एक दूत के जरिए देवी के पास विवाह का प्रस्ताव तक पहुंचाया। अहंकारी महिषासुर की इस ओच्छी हरकत ने देवी भगवती को अत्याधिक क्रोधित कर दिया, जिसके बाद ही मां ने महिषासुर को युद्ध के लिए ललकारा।

मां दुर्गा से युद्ध की ललकार सुनकर ब्रह्मा जी से मिले वरदान के अहंकार में अंधा महिषासुर उनसें युद्ध करने के लिए तैयार भी हो गया। इस युद्ध में एक-एक करके महिषासुर की संपूर्ण सेना का मां दुर्गा ने सर्वनाश कर दिया। इस दौरान माना ये भी जाता है कि ये युद्ध पूरे नौ दिनों तक चला जिस दौरान असुरों के सम्राट महिषासुर ने विभिन्न रूप धककर देवी को छलने की कई बार कोशिश की, लेकिन उसकी सभी कोशिश आखिरकार नाकाम रही और देवी भगवती ने अपने चक्र से इस युद्ध में महिषासुर का सिर काटते हुए उसका वध कर दिया। अंत: इस तरह देवी भगवती के हाथों महिषासुर की मृत्यु संभव हो पाई।

माना जाता है कि जिस दिन मां भगवती ने स्वर्ग लोक, पृथ्वी लोक और पाताल लोक को महिषासुर के पापों से मुक्ति दिलाई उस दिन से ही दुर्गा अष्टमी का पर्व प्रारम्भ हुआ।

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