भोपाल। अटल बिहारी वाजपेयी, भारतीय राजनीति की उन शख्सियतों में से एक थे जिनका गुणगान उनके दुश्मन भी करते हैं. हम में से ज्यादातर लोग गर्व से बताते हैं कि हमारी जन्मभूमि कहां है, लेकिन अटल जी वो शख्सियत थे, जिनके लिए उनकी जन्मस्थली के लोग गर्व से कहते हैं कि जहां से हम हैं वहीं से अटल जी भी हैं.
अटल बिहारी वाजपेयी का नाम लेते ही, मध्यप्रदेश के हर नागरिक का सीना चौड़ा हो जाता है. वो गर्वीले अंदाज में कहता है कि अटल बिहारी वाजपेयी मध्यप्रदेश से थे. ग्वालियर वो शहर है जहां प्रदेश के इस अनमोल रत्न का बचपन बीता था. यूं तो अटल बिहारी वाजपेयी पूरे भारत को अपना घर मानते थे, लेकिन जन्मभूमि होने की वजह से मध्यप्रदेश से उन्हें गहरा लगाव था. मालवा के पठारों से लेकर चंम्बल के बीहड़ों तक, मध्यप्रदेश का ऐसा कोई शहर नहीं जिसमें अटलजी की यादें न समाई हों.
इसे मध्यप्रदेश की माटी से मिले मूल्य कहें या उनके खुद के संस्कार लेकिन, जिस वक्त छुटभैयों से लेकर सत्ता के शिखर तक पहुंच रखने वाले नेता भी खुद ही सब कुछ होने का गुमान पालते हों, उस वक्त में अटल बिहारी वाजपेयी जैसा कवि हृदय नेता ही कह सकता है कि-
'मेरे प्रभु! मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना,
गैरों को गले न लगा सकूं, इतनी रुखाई कभी मत देना'
अपने भाषणों से विरोधियों को भी अपना बनाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने दिल से कभी देश के दिल को अलग नहीं होने दिया. मध्यप्रदेश से उनका जुड़ाव इतना था कि खाने-पीने की चीजों से लेकर यहां के अलग-अलग हिस्सों की बोलियां भी उनकी जुबान पर रहती थीं. ये अटल बिहारी वाजपेयी की शख्सियत का ही कमाल है कि उनके दुनिया से चले जाने के बाद भी उनकी यादें यहां के लोगों के दिलों में जिंदा हैं.