भोपाल । मध्यप्रदेश में पुरानी इमारतों और जगहों के नाम बदलने की सियासत लगातार जारी है. बीजेपी नेता और मंत्री सबसे ज्यादा इस मुद्दे को उछाल रहे हैं. अब इसमें पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती भी शामिल हो गई हैं. उमा भारती ने बैरसिया विधानसभा के हलाली डैम का नाम बदलने के लिए बैरसिया विधायक विष्णु खत्री को पत्र लिखा है और इसके पीछे उन्होंने वजह भी बताई है.
'कत्लेआम के बाद पड़ा हलाली डैम का नाम'
उमा भारती ने विधायक विष्णु खत्री को लिखे पत्र में कहा कि आपके विधानसभा क्षेत्र बैरसिया में एक चर्चित स्थल हलाली डैम का नाम बार-बार आता है जबकि मेरी जानकारी के अनुसार उसका नाम बदल चुका है. भोपाल शहर के बाहर प्रचलित हलाली नाम का स्थान एवं नदी विश्वासघात की उस कहानी की याद दिलाती है, जिसमें दोस्त मोहम्मद खां ने भोपाल के आसपास के अपने मित्र राजाओं को बुलाकर उन्हें धोखा देकर उनका सामूहिक कत्ल किया और उनके कत्ल से नदी लाल हो गई थी, हलाली स्थान उसी प्रसंग का स्मरण कराता है. विश्वासघात, धोखाधड़ी, अमानवीयता यह सब एक साथ हलाली शब्द के साथ आते हैं. तो हलाली का इतिहास जानने वालों के अंदर घृणा का संचार होता है.
'विधायक को संस्कृति मंत्री से मिलना चाहिए'
उमा भारती ने विधायक के लिए आगे लिखा कि आपको इस संबंध में पर्यटन मंत्री उषा ठाकुर से मिलकर बात करनी चाहिए, मैं भी इस पत्र की एक कॉपी उनको भेज दूंगी. मैंने सुना है कि उसको एक पर्यटन केंद्र बनाया जा रहा है. क्योंकि वहां डैम है, नदी है, यह बहुत अच्छी बात है लेकिन आप तुरंत संस्कृति एवं पर्यटन विभाग से संपर्क कर घृणा पैदा करने वाले इस नाम का उल्लेख बंद करवा दीजिए.
मध्यप्रदेश में पहले भी नाम बदलने की सियासत
भोपाल और इंदौर का नाम बदलने की हो चुकी है मांग
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल का कालांतर में भोजपाल और भूपाल हुआ करता था. भोपाल का नाम फिर से भोजपाल किए जाने को लेकर पूर्व महापौर आलोक शर्मा नगर निगम में प्रस्ताव लेकर आए थे लेकिन बाद में इसे अनुमति नहीं मिली. भोपाल के उपनगर बैरागढ़ का नाम बदलकर संतहिरदाराम नगर कर दिया गया है. हालांकि बैरागढ़ का नाम संत हरदा राम सर्वसम्मति से रखा गया है, लेकिन भोपाल की तरह इंदौर शहर का नाम बदलने पर सर्वसम्मति नहीं बनी है. इंदौर शहर का नाम इंदूर किए जाने का नगर निगम परिषद में प्रस्ताव आया था, लेकिन विरोध के बाद में मामला ठंडा हो गया. देखा जाए तो 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में ब्रिटिशों ने इंदूर का नाम अंग्रेजी में INDOR था, जिसे बाद में बदल कर INDORE कर दिया गया.
इन जगहों के बदले जा चुके हैं नाम
वैसे देखा जाए तो समय-समय पर शहरों और जगहों के नाम बदले जाते रहे हैं. पिछले सालों के दौरान प्रदेश सरकार ने महू का नाम बदलकर अंबेडकर नगर कर दिया गया. इसी तरह होशंगाबाद संभाग बनने पर इसका नाम नर्मदापुरम किया गया.
ये होती है नाम बदलने की प्रक्रिया
किसी भी जिले और जगह का नाम बदलने के लिए सबसे पहले स्थानीय निकाय परिषद में प्रस्ताव पारित कराती है. इसके बाद प्रस्ताव शासन के पास भेजा जाता है. कैबिनेट से मंजूरी के बाद इसे राज्यपाल को भेजा जाता है. राज्यपाल नाम बदलने के लिए सूचना गृह मंत्रालय को भेजता है. गृह मंत्रालय की मंजूरी के बाद सरकार इसका गजट नोटिफिकेशन जारी करती है. इसके बाद जिले में
पूर्व में इन शहरों के यह थे नाम
कालांतर से देखा जाए तो प्रदेश के अलग-अलग शहरों के नाम बदलते रहे हैं. भोपाल का नाम पूर्व में भोजपाल-भूपाल था.
- शाजापुर जिला पूर्व में शाहजहांपुर कहलाता था. कहा जाता है कि पहले इसे खाखरा खेड़ी के रूप में पहचाना जाता था. बाद में स्थानीय राजा ने शाहजहां के सम्मान में इसका नाम बदलकर शाहजहांपुर कर दिया. हालांकि 1732 में सिंधिया राज्य के दिन आने के बाद इसका नाम शाजापुर किया गया.
- विदिशा के बारे में कहा जाता है कि पूर्व में इसका नाम भेल स्वामिन था, जिसे बाद में भिलसा या भेलसा कहा गया. और फिर बाद में यह विदिशा हो गया.
- खजुराहो को पहले खजूरपूरा और खजूर वाहिका के नाम से जाना जाता था. बाद में इसका नाम खजुराहो हो गया.
- उज्जैन का नाम पहले अवंतिका उज्जैनी था. कालांतर में यह उज्जैन हो गया.
- सीहोर का नाम पूर्व में सिद्रपुर था. इसका यह नाम सीवन नदी की वजह से था. बाद में अंग्रेजी शासन काल में इसका नाम बदलकर सीहोर हो गया.
- इसी तरह सोहागपुर को विराट पुरी कहा जाता था.
- महेश्वर को माहिष्मती नाम से जाना जाता था.
- जबलपुर को त्रिपुरी कहा जाता था.
- मंदसौर को दशपुर कहा जाता था.
- अमरकंटक को रिक्षा पर्वत नाम से जाना जाता था.