भोपाल। इंदौर के सांवेर से विधायक तुलसी सिलावट आज दूसरी बार शिवराज कैबिनेट में शामिल हो गए हैं. तुलसी सिलावट ज्योतिरादित्य सिंधिया के सबसे खास माने जाते हैं. तुलसीराम सिलावट ज्योतिरादित्य सिंधिया के ही नहीं उनके पिता माधवराव सिंधिया के सबसे खास लोगों में गिने जाते थे. तुलसी सिलावट ने अपना राजनीतिक जीवन की सियासत छात्र राजनीति से शुरू किया था.
छात्र राजनीति से शुरू हुआ था सियासी सफर
2018 से पहले तक तुलसी सिलावट मालवा के कांग्रेसी दिग्गज नेताओं में गिने जाते थे, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ तुलसी सिलावट ने भी कांग्रेस का हाथ छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया था. दलबदल कानून के तहत सिलावट की सदस्यता चली. इसके बाद हुए उपचुनाव में धमाकेदार जीत हासिल की. तुलसी सिलावट का जन्म 5 नवंबर 1954 को इंदौर के पास ही ग्राम पिवडाय में किसान परिवार स्वर्गीय ठाकुरदीन सिलावट के घर हुआ था. शुरुआत से ही तुलसी सिलावट को सियासत में रुचि थी. तुलसी सिलावट ने राजनीतिक शास्त्र में एमए किया. सिलावट शासकीय कला एवं वाणिज्य कॉलेज इंदौर के छात्र रहे. 1977 से 1979 तक वे छात्र संघ के अध्यक्ष भी रहे. इसके बाद देवी अहिल्या विश्वविद्यालय में उन्हें 1979 से 1981 तक छात्र संघ के अध्यक्ष रहे.
1982 में पहली बार बने थे पार्षद
तुलसी सिलावट पहली बार 1982 में इंदौर नगर निगम पार्षद बने. इसके बाद 1985 में विधायक बन गए. वो संसदीय सचिव भी रहे 1995 में नेहरू युवा केंद्र के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी बखूबी निभाई. 1998 से 2003 तक मध्य प्रदेश ऊर्जा विकास निगम के अध्यक्ष रहे. कांग्रेस पार्टी ने भी उन्हें कई जिम्मेदारियां दी. पार्टी में वो उपाध्यक्ष भी बनाए गए. तुलसी सिलावट को सांवेर से 1990, 1993, 2013 में हार का भी सामना करना पड़ा. 1985, 2007 उपचुनाव,2008 और 2018 में जीत हासिल की.
कमलनाथ सरकार में भी बनाए गए थे मंत्री
2018 में चुनाव जीतने के बाद तुझे सिलावट चौथी बार विधायक बने और उन्हें कमलनाथ कैबिनेट में जगह भी दी गई. कमलनाथ सरकार में स्वास्थ्य मंत्री बनाए गए थे. लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने के बाद तुलसी सिलावट ने भी कांग्रेस का साथ छोड़ दिया. कांग्रेस की सरकार गिराने में ज्योतिरादित्य सिंधिया और गोविंद सिंह राजपूत की अहम भूमिका रही थी. सिलावट शिवराज कैबिनेट में दूसरी बार शामिल हो रहे हैं. इससे पहले विधायक नहीं होने के कारण उन्हें 6 महीने बाद मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था. अब विधायक चुने जाने के 53 दिन बाद फिर से मंत्रिमंडल में शामिल किया गया.