भोपाल। कोरोना काल के बीच मध्यप्रदेश में इस वक्त बारिश ने तबाही मचा रखी है. चारों तरफ सिर्फ पानी-पानी नजर आ रहा है भारी बारिश के कारण बड़ी तादाद में खेतों में लगी फसल और सब्जियां खराब हो गई है, लेकिन थाली का स्वाद बढ़ाने वाली प्याज की कीमत अभी तो 20 से 25 रुपए है, लेकिन आने वाले 2 से 3 महीने में यही प्याज की कीमत एक बार फिर आसमान छू सकती है. हालांकि अभी किसानों का कहना है कि उनकी लागत तक नहीं निकल रही है.
दिसंबर-जनवरी में क्यों 'रुलाती' है प्याज ?
बता दें कि मध्य प्रदेश में प्याज के दाम इस वक्त स्थिर है लेकिन आने वाले 2 से 3 महीने में प्याज एक बार फिर आम जनता को रुलाती नजर आ सकती है. हर साल दिसंबर और जनवरी महीने में प्याज के दाम आसमान छूते हैं, ईटीवी भारत की एक स्पेशल रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि बड़े व्यापारी बारिश के समय बड़ी मात्रा में प्याज का स्टॉक कर लेते हैं, और यह भ्रम फैलाया जाता है कि बारिश के कारण प्याज खराब हो गई है और इसी को आधार बनाते हुए पहले प्याज की आवक कम किया जाता है, और इसके बाद दाम बढ़ाने का खेल शुरू होता है.
पिछले साल बिकी थी 100 रुपए किलो प्याज
पिछले साल नवंबर, दिसंबर और जनवरी महीने में भोपाल में प्याज की कीमतों में जबरदस्त उछाल देखने को मिला था. अगर कीमतों पर नजर डाले तो दिसंबर और जनवरी महीने में बाजार में प्याज करीब 80 से 100 किलो तक बिकी थी. इतना ही नहीं सरकार को घेरने के बाद जिला स्तर पर प्रशासन ने खुद स्टॉल लगाकर 50 रूपये किलो प्याज बेचा था. और उस समय भी यही भ्रम फैलाया गया था कि नासिक से आने वाला प्याज बारिश के कारण खराब हो गया है, जिसके कारण कीमत बढ़ी है.
किसानों को नहीं मिलते उचित दाम
देश से लेकर प्रदेश तक प्याज की कीमत में भले ही कितनी भी बढ़ोतरी देखने को मिल जाए, लेकिन रात दिन मेहनत करने के बाद भी फसल उगाने वाले किसानों के हाथ कुछ नहीं लगता है. अप्रैल-मई के महीने में प्याज की नई फसल बाजार में आती है. हालात ये है कि बंपर पैदावार होने के कारण कई बार किसानों को 1 से 2 किलो प्याज बेचना पड़ता है. लागत मूल्य तक किसानों का नहीं निकल पाता है, जिसके चलते तो कई किसान आक्रोशित होकर कई बार अपनी फसलों को सड़क पर फेंक देते हैं. बता दे कि अभी भोपाल में प्याज की कीमत 20 से 25 रूपये किलो है. वहीं मंडी में व्यापारी किसानों से 10 से 13 रूपये के बीच खरीद रहे हैं.
एमपी के इन जिलों में होती है प्याज की खेती
मध्य प्रदेश के कई जिलों में वैसे तो प्यास होती है, लेकिन आगर मालवा, शाजापुर, खंडवा, उज्जैन, देवास,रतलाम, शिवपुरी, आगर मालवा,राजगढ़,धार, सतना,खरगोन और छिंदवाड़ा में प्याज की पैदावार जून से अक्टूबर के दौरान होती है.
कौन हैं जिम्मेदार ?
वहीं किसानों के हितों की बात हर राजनीतिक पार्टी करती है. लेकिन पार्टी जब सत्ता में आती है तो किसानों को भूल जाती है. क्योंकि सत्ता में कांग्रेस रहे या बीजेपी के किसान हमेशा फसल की कीमतों को लेकर ही परेशान नजर आते हैं. इधर किसान नेता का कहना है कि प्याज को लेकर सरकार और बड़े व्यापारियों की मिली भगत रहती है.