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कोरोना काल में ऐसा रहा अनाथालयों का हाल, बुनियादी संसाधन जुटाने में करनी पड़ी मशक्कत

देश में कोरोना महामारी ने देश की आर्थिक स्थिति को बेपटरी कर दिया है. तो स्वाभाविक है कि आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने से सामाजिक संस्थाओं को मिलने वाले आर्थिक सहायता पर भी इसका असर पड़ा है. अनाथाश्रम, निशक्त जन बालक बालिकाओं और ऐसे ही अन्य संस्थानों की गाड़ी लोगों की आर्थिक सहायता से पटरी पर दौड़ती है. लोगों की नौकरियां जाने और कारोबार ठप्प हो जाने के बाद कोरोना काल में कैसे अनाथाश्रमों की व्यवस्था चली. देखें हमारी खास रिपोर्ट...

The condition of the orphanages in the Corona period
कोरोना काल में अनाथालयों का हाल
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Published : Sep 25, 2020, 12:36 AM IST

भोपाल। राजधानी भोपाल में 13 के करीब ऐसे संस्थान हैं, जहां पर जन्म से लेकर 18 साल तक के बच्चों को रखा जाता है और उनकी देख-रेख, उनका स्वास्थ्य, उनकी शिक्षा, उनके भोजन से लेकर अन्य खर्चे यह संस्थान उठाते हैं. जिनमें बाल निकेतन, नित्यसेवा, बालिका गृह, एसओएस, स्पेशल चाइल्ड केयर, मदर टेरेसा, घरौंदा, आफ्टर केयर, निर्भया, किलकारी ,मातृछाया लोक उत्थान, और ज्ञानपथ जैसे संस्थान शामिल हैं.

कोरोना काल में अनाथालयों का हाल

जहां पर जन्म से लेकर 18 साल तक की उम्र के बालक और बालिकाओं को रखा जाता है और उनकी सभी जरूरतों को पूरा भी किया जाता है. जिसमें भोजन कपड़े स्वास्थ्य शिक्षा शामिल हैं. मातृछाया के संयोजक करण सिंह का कहना है कि कोरोना काल में खासतौर से छोटे-छोटे बच्चों को संक्रमण से बचाने के लिए विशेष व्यवस्थाएं की गई थीं. साथ ही संक्रमण को देखते हुए कई ऐसे दानदाता जो फिजिकली रूप से संस्थान आकर कई बार राशन, कपड़े, खिलौने, दवाइयां उपलब्ध कराते हैं, कोरोना काल के दौरान सभी ने ऑनलाइन माध्यम से सहायता राशि देकर सहायता की थी.

इस दौरान सभी दानदाताओं से बैंक अकाउंट और ऑनलाइन पेमेंट के माध्यम से सभी लोगों से सहायता मिली थी. शायद यही वजह है कि कोरोना काल के दौरान मातृछाया में किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं हो पाई. साथी ही कोरोना काल के मातृछाया में बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश प्रतिबंधित किया गया था क्योंकि मातृछाया में जन्म से लेकर 6 साल तक के छोटे बच्चे रहते हैं और वर्तमान में यहां पर 15 बच्चे हैं. जिसमें 4 बालक और 11 बालिकाएं हैं. ऐसे में संक्रमण का खतरा ज्यादा रहता है इसी कारण कोरोना काल के दौरान मात्र छाया में बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश प्रतिबंधित किया गया था.

मध्य प्रदेश CWC के मेंबर डॉक्टर कृपाशंकर चौबे का कहना है कि कोरोना काल के दौरान सबसे पहले संक्रमण से बचने के लिए बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश वर्जित किया गया था और अलग-अलग संस्थान जिनमें अलग-अलग उम्र भर के लोग रहते हैं. वहां पर प्रबंधन द्वारा अलग-अलग अवस्थाएं की गई थी. जिसमें बाल निकेतन में जन्म से 6 साल तक के बच्चे नित्यसेवा में 6 से 18 साल, बालिका गृह में 6 से 18 साल, एसओएस में 6 से 18 साल के अलावा, घरौंदा, आफ्टर केयर ,निर्भया किलकारी ,ज्ञानपथ , जैसे अन्य संस्थायों में अलग-अलग उम्र के बच्चे रहते हैं.

ऐसे में खासतौर से संक्रमण से बचाने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी. हालांकि इस दौरान इन संस्थाओं में भोजन सामग्री के साथ ही दवाइयों की सुचारू रूप से पूर्ति हो सके इसको लेकर विशेष व्यवस्थाएं करनी पड़ी थीं क्योंकि कई दानदाता जो प्रत्यक्ष रुप से राशन दवाइयां कपड़े या अन्य सामान जो दान करते थे, वह कोरोना काल में फिजिकली तौर से नहीं कर पाए. ऐसे में ऑनलाइन पेमेंट के माध्यम से सहायता राशि जमा कर इन संस्थाओं में मूलभूत संसाधन उपलब्ध कराए थे.

भोपाल में अनाथालय और उनमें रहने वाले बच्चों की संख्या

अनाथालय बच्चों की संख्या
बाल निकेतन70
नित्यसेव 170
बालिका गृह50
SOS बाल ग्राम140
स्पेशल चाइल्ड100
मदर टेरेसा35
घरौंदा15
ऑफ्टर केयर 25
निर्भया 15
किलकारी 25
लोक उत्थान 25
ज्ञानपथ 35

यानी भोपाल के इन सभी संस्थाओं की बात करें तो कुल 645 बच्चे इन संस्थाओं में रहते हैं. जिनकी जिम्मेदारी यह सामाजिक संस्थाएं निभा रही हैं और कोरोना महामारी के दौरान भी इन बच्चों को किसी चीज की कमी ना हो इसको लेकर हमेशा अपनी कोशिश के माध्यम से इनकी जरूरतों को पूरा करती है.

राजधानी भोपाल में सबसे कम उम्र के बच्चों के लिए मातृछाया अधिकारी जैसे संस्थान हैं. जहां पर जन्म से 6 साल तक के बच्चों को रखा जाता है और कई बार जब बच्चे छोटे होते हैं, उस दौरान उन्हें संभालना बहुत मुश्किल होता है. लेकिन ऐसे समय विभिन्न संस्थाओं में काम करने वाली महिलाएं उन्हें अपने परिवार जैसा माहौल देकर, उनकी मां से भी बड़ा दायित्व निभाती हैं. जो इन बच्चों को पैदा होने के बाद उन संस्थाओं में सो जाती है.

भोपाल। राजधानी भोपाल में 13 के करीब ऐसे संस्थान हैं, जहां पर जन्म से लेकर 18 साल तक के बच्चों को रखा जाता है और उनकी देख-रेख, उनका स्वास्थ्य, उनकी शिक्षा, उनके भोजन से लेकर अन्य खर्चे यह संस्थान उठाते हैं. जिनमें बाल निकेतन, नित्यसेवा, बालिका गृह, एसओएस, स्पेशल चाइल्ड केयर, मदर टेरेसा, घरौंदा, आफ्टर केयर, निर्भया, किलकारी ,मातृछाया लोक उत्थान, और ज्ञानपथ जैसे संस्थान शामिल हैं.

कोरोना काल में अनाथालयों का हाल

जहां पर जन्म से लेकर 18 साल तक की उम्र के बालक और बालिकाओं को रखा जाता है और उनकी सभी जरूरतों को पूरा भी किया जाता है. जिसमें भोजन कपड़े स्वास्थ्य शिक्षा शामिल हैं. मातृछाया के संयोजक करण सिंह का कहना है कि कोरोना काल में खासतौर से छोटे-छोटे बच्चों को संक्रमण से बचाने के लिए विशेष व्यवस्थाएं की गई थीं. साथ ही संक्रमण को देखते हुए कई ऐसे दानदाता जो फिजिकली रूप से संस्थान आकर कई बार राशन, कपड़े, खिलौने, दवाइयां उपलब्ध कराते हैं, कोरोना काल के दौरान सभी ने ऑनलाइन माध्यम से सहायता राशि देकर सहायता की थी.

इस दौरान सभी दानदाताओं से बैंक अकाउंट और ऑनलाइन पेमेंट के माध्यम से सभी लोगों से सहायता मिली थी. शायद यही वजह है कि कोरोना काल के दौरान मातृछाया में किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं हो पाई. साथी ही कोरोना काल के मातृछाया में बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश प्रतिबंधित किया गया था क्योंकि मातृछाया में जन्म से लेकर 6 साल तक के छोटे बच्चे रहते हैं और वर्तमान में यहां पर 15 बच्चे हैं. जिसमें 4 बालक और 11 बालिकाएं हैं. ऐसे में संक्रमण का खतरा ज्यादा रहता है इसी कारण कोरोना काल के दौरान मात्र छाया में बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश प्रतिबंधित किया गया था.

मध्य प्रदेश CWC के मेंबर डॉक्टर कृपाशंकर चौबे का कहना है कि कोरोना काल के दौरान सबसे पहले संक्रमण से बचने के लिए बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश वर्जित किया गया था और अलग-अलग संस्थान जिनमें अलग-अलग उम्र भर के लोग रहते हैं. वहां पर प्रबंधन द्वारा अलग-अलग अवस्थाएं की गई थी. जिसमें बाल निकेतन में जन्म से 6 साल तक के बच्चे नित्यसेवा में 6 से 18 साल, बालिका गृह में 6 से 18 साल, एसओएस में 6 से 18 साल के अलावा, घरौंदा, आफ्टर केयर ,निर्भया किलकारी ,ज्ञानपथ , जैसे अन्य संस्थायों में अलग-अलग उम्र के बच्चे रहते हैं.

ऐसे में खासतौर से संक्रमण से बचाने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी. हालांकि इस दौरान इन संस्थाओं में भोजन सामग्री के साथ ही दवाइयों की सुचारू रूप से पूर्ति हो सके इसको लेकर विशेष व्यवस्थाएं करनी पड़ी थीं क्योंकि कई दानदाता जो प्रत्यक्ष रुप से राशन दवाइयां कपड़े या अन्य सामान जो दान करते थे, वह कोरोना काल में फिजिकली तौर से नहीं कर पाए. ऐसे में ऑनलाइन पेमेंट के माध्यम से सहायता राशि जमा कर इन संस्थाओं में मूलभूत संसाधन उपलब्ध कराए थे.

भोपाल में अनाथालय और उनमें रहने वाले बच्चों की संख्या

अनाथालय बच्चों की संख्या
बाल निकेतन70
नित्यसेव 170
बालिका गृह50
SOS बाल ग्राम140
स्पेशल चाइल्ड100
मदर टेरेसा35
घरौंदा15
ऑफ्टर केयर 25
निर्भया 15
किलकारी 25
लोक उत्थान 25
ज्ञानपथ 35

यानी भोपाल के इन सभी संस्थाओं की बात करें तो कुल 645 बच्चे इन संस्थाओं में रहते हैं. जिनकी जिम्मेदारी यह सामाजिक संस्थाएं निभा रही हैं और कोरोना महामारी के दौरान भी इन बच्चों को किसी चीज की कमी ना हो इसको लेकर हमेशा अपनी कोशिश के माध्यम से इनकी जरूरतों को पूरा करती है.

राजधानी भोपाल में सबसे कम उम्र के बच्चों के लिए मातृछाया अधिकारी जैसे संस्थान हैं. जहां पर जन्म से 6 साल तक के बच्चों को रखा जाता है और कई बार जब बच्चे छोटे होते हैं, उस दौरान उन्हें संभालना बहुत मुश्किल होता है. लेकिन ऐसे समय विभिन्न संस्थाओं में काम करने वाली महिलाएं उन्हें अपने परिवार जैसा माहौल देकर, उनकी मां से भी बड़ा दायित्व निभाती हैं. जो इन बच्चों को पैदा होने के बाद उन संस्थाओं में सो जाती है.

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