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'किल कोरोना' अभियान के तहत कराए जा रहे सर्वे नाकाफी, ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग पर जोर

1 जुलाई से प्रदेशव्यापी सर्वे अभियान 'किल कोरोना' की शुरुआत की गई. इस अभियान के तहत स्वास्थ्य विभाग की टीम और आशा, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता घर-घर जाकर सर्वे कर रही हैं और जरूरत पड़ने पर हाईरिस्क के लोगों की स्क्रीनिंग और सैंपलिंग भी की जा रही है.

'Kill Corona' campaign
'किल कोरोना' अभियान
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Published : Jul 6, 2020, 8:03 PM IST

Updated : Aug 1, 2020, 4:06 PM IST

भोपाल। मध्यप्रदेश में कोरोना वायरस संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए 1 जुलाई से प्रदेशव्यापी सर्वे अभियान 'किल कोरोना' की शुरुआत की गई. इस अभियान के तहत स्वास्थ्य विभाग की टीम ,आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता घर-घर जाकर सर्वे कर रही हैं और जरूरत पड़ने पर हाईरिस्क के लोगों की स्क्रीनिंग और सैंपलिंग भी की जा रही है. भोपाल में भी यह अभियान चलाया जा रहा है. इसी अभियान के तहत भोपाल की करीब 36 गैस पीड़ित बस्तियों में जाकर सर्वे, सेंपलिंग और स्क्रीनिंग का काम किया गया.

'किल कोरोना' अभियान के तहत कराए जा रहे सर्वे नाकाफी

कोरोना वायरस की शुरुआत से ही भोपाल में रह रहे गैस पीड़ितों पर सबसे ज्यादा खतरा इस संक्रमण का रहा है. भोपाल में अब तक जितनी मौत हुई हैं उनमें 70% मृतक ऐसे हैं जो कि गैस पीड़ित थे और किसी न किसी बीमारी से जूझ रहे थे. गैस पीड़ित संगठन लगातार गैस पीड़ितों पर बढ़ते खतरे को देखते हुए सरकार और स्वास्थ्य विभाग से इस बारे में ध्यान देने पर जोर दे रहे थे. जिसे देखते हुए 'किल कोरोना' अभियान के तहत ही गैस पीड़ित बस्तियों में सर्वे, सैंपलिंग और टेस्टिंग की गई. वहीं गैस पीड़ितों पर किए गए सर्वे से गैस पीड़ित संगठन संतुष्ट नहीं है.

'Kill Corona' campaign
'किल कोरोना' अभियान

सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि केवल सर्वे और स्क्रीनिंग करने से कुछ नहीं होगा तब तक हम ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग नहीं करेंगे गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता रचना ढींगरा इस बारे में कहती हैं कि इस शहर में गैस पीड़ितों की आबादी मात्र एक चौथाई है. वहीं कोरोना संक्रमण से अब तक जो मौतें हुई हैं उससे यह बात सामने आई है कि इस वायरस ने गैस पीड़ितों को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है. कम हो रही टेस्टिंग को लेकर ही सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि सिर्फ सर्वे करने से कुछ नहीं होगा जब तक ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग का काम तेजी से नहीं किया जा सकता है.

Testing team
टेस्टिंग करने वाली टीम

सरकार उठाए कारगर कदम

सरकार द्वारा गैस पीड़ितों बस्तियों में सर्वे करवाना एक अच्छा कदम है लेकिन महज सर्वे और स्क्रीनिंग से कुछ नहीं होगा. सर्वे करने से वह परिणाम कभी नहीं मिलेंगे. जो इस बीमारी से होने वाली मौतों को रोकने में सहायक हो ही नहीं सकती हैं. अभी भी टेस्टिंग लक्षणों के आधार पर की जा रही है और गैस पीड़ितों में जब तक लक्षण आते हैं तब तक बहुत देर हो जाती है. मौत की दर को कम करने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि लोगों की ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग की जाए.

दो दिन में 1 लाख 84 हजार सर्वे

बता दें कि शनिवार, रविवार के चले इस सर्वे अभियान में गैस पीड़ित बस्तियों के करीब 38 हज़ार घरों में 1,84,000 से ज्यादा लोगों का सर्वे किया गया है. जिसमें केवल 1557 लोगों के ही कोविड सैंपल लिए गए हैं. जबकि विशेषज्ञ भी लगातार इस बात पर जोर दे रहे हैं कोरोना वायरस के नियंत्रण के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि ज्यादा से ज्यादा टेस्ट किए जाएं पर अब भी ना केवल गैस पीड़ित बस्तियों में बल्कि पूरे मध्यप्रदेश में ही टेस्टिंग की संख्या 6 से 7000 के बीच ही अटकी है.

भोपाल। मध्यप्रदेश में कोरोना वायरस संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए 1 जुलाई से प्रदेशव्यापी सर्वे अभियान 'किल कोरोना' की शुरुआत की गई. इस अभियान के तहत स्वास्थ्य विभाग की टीम ,आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता घर-घर जाकर सर्वे कर रही हैं और जरूरत पड़ने पर हाईरिस्क के लोगों की स्क्रीनिंग और सैंपलिंग भी की जा रही है. भोपाल में भी यह अभियान चलाया जा रहा है. इसी अभियान के तहत भोपाल की करीब 36 गैस पीड़ित बस्तियों में जाकर सर्वे, सेंपलिंग और स्क्रीनिंग का काम किया गया.

'किल कोरोना' अभियान के तहत कराए जा रहे सर्वे नाकाफी

कोरोना वायरस की शुरुआत से ही भोपाल में रह रहे गैस पीड़ितों पर सबसे ज्यादा खतरा इस संक्रमण का रहा है. भोपाल में अब तक जितनी मौत हुई हैं उनमें 70% मृतक ऐसे हैं जो कि गैस पीड़ित थे और किसी न किसी बीमारी से जूझ रहे थे. गैस पीड़ित संगठन लगातार गैस पीड़ितों पर बढ़ते खतरे को देखते हुए सरकार और स्वास्थ्य विभाग से इस बारे में ध्यान देने पर जोर दे रहे थे. जिसे देखते हुए 'किल कोरोना' अभियान के तहत ही गैस पीड़ित बस्तियों में सर्वे, सैंपलिंग और टेस्टिंग की गई. वहीं गैस पीड़ितों पर किए गए सर्वे से गैस पीड़ित संगठन संतुष्ट नहीं है.

'Kill Corona' campaign
'किल कोरोना' अभियान

सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि केवल सर्वे और स्क्रीनिंग करने से कुछ नहीं होगा तब तक हम ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग नहीं करेंगे गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता रचना ढींगरा इस बारे में कहती हैं कि इस शहर में गैस पीड़ितों की आबादी मात्र एक चौथाई है. वहीं कोरोना संक्रमण से अब तक जो मौतें हुई हैं उससे यह बात सामने आई है कि इस वायरस ने गैस पीड़ितों को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है. कम हो रही टेस्टिंग को लेकर ही सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि सिर्फ सर्वे करने से कुछ नहीं होगा जब तक ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग का काम तेजी से नहीं किया जा सकता है.

Testing team
टेस्टिंग करने वाली टीम

सरकार उठाए कारगर कदम

सरकार द्वारा गैस पीड़ितों बस्तियों में सर्वे करवाना एक अच्छा कदम है लेकिन महज सर्वे और स्क्रीनिंग से कुछ नहीं होगा. सर्वे करने से वह परिणाम कभी नहीं मिलेंगे. जो इस बीमारी से होने वाली मौतों को रोकने में सहायक हो ही नहीं सकती हैं. अभी भी टेस्टिंग लक्षणों के आधार पर की जा रही है और गैस पीड़ितों में जब तक लक्षण आते हैं तब तक बहुत देर हो जाती है. मौत की दर को कम करने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि लोगों की ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग की जाए.

दो दिन में 1 लाख 84 हजार सर्वे

बता दें कि शनिवार, रविवार के चले इस सर्वे अभियान में गैस पीड़ित बस्तियों के करीब 38 हज़ार घरों में 1,84,000 से ज्यादा लोगों का सर्वे किया गया है. जिसमें केवल 1557 लोगों के ही कोविड सैंपल लिए गए हैं. जबकि विशेषज्ञ भी लगातार इस बात पर जोर दे रहे हैं कोरोना वायरस के नियंत्रण के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि ज्यादा से ज्यादा टेस्ट किए जाएं पर अब भी ना केवल गैस पीड़ित बस्तियों में बल्कि पूरे मध्यप्रदेश में ही टेस्टिंग की संख्या 6 से 7000 के बीच ही अटकी है.

Last Updated : Aug 1, 2020, 4:06 PM IST
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