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कॉलेज की फीस भरने के लिए लगाई मूर्तियों की दुकान

अटल बिहारी वाजपेई हिंदी विश्वविद्यालय के सृजल शुक्ला ने कॉलेज की फीस जमा करने के लिए मूर्ति बेचने का काम शुरू किया है. सृजल साधारण मूर्तियों को कम दामों में खरीदकर उन्हें सजाकर मार्केट में ज्यादा दाम में बेच रहा है.

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कॉलेज की फीस भरने के लिए लगाई मूर्तियों की दुकान
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Published : Nov 14, 2020, 12:38 AM IST

Updated : Nov 14, 2020, 1:58 AM IST

भोपाल। कोरोना काल में हर कोई आर्थिक संकट से गुजर रहा है. लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार द्वारा कई तरह की योजनाएं भी चलाई जा रही है. वहीं अभी भी ऐसे कई लोग है जो कोरोना के संकट से उभरे नहीं है. राजधानी के हिंदी विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले सृजल शुक्ला के पास कॉलेज की फीस जमा करने के लिए पैसे नहीं हैं, जिसके चलते दिवाली के त्योहार में सृजल ने मूर्तियां बेचने का काम शुरू कर दिया है.

अटल बिहारी वाजपेई हिंदी विश्वविद्यालय का छात्र सृजल शुक्ला कॉलेज की फीस जमा करने के लिए दिवाली के त्योहार में कमाई के अवसर ढूंढ रहा है. न्यू मार्केट की एक दुकान के बाहर छोटी सी टेबल लगाकर सृजल लक्ष्मी जी की मूर्तियां बेच रहा है. सृजल के पिताजी को कुछ माह पहले हार्ट पेशेंट हैं और वे काम पर नहीं जा पा रहे हैं. पिता के घर पर रहने की वजह से घर में आर्थिक स्थिति बेहद खराब हो चुकी है, जिसके चलते सृजल कॉलेज की फीस जमा नहीं कर पा रहा है.

सृजल ने बताया कॉलेज से फीस के लिए लगातार नोटिस मिल रहे थे. फीस नहीं भरने पर अगली कक्षा में प्रवेश नहीं मिल रहा था. जिसके लिए पहले उसने सोचा कि जॉब की जाए लेकिन जॉब करने में एक माह के बाद सैलरी मिलती और फीस भरने के लिए इतना समय नहीं बचा है. इसलिए खुद का बिजनेस करने का सोचा. जिसके लिए पैसे नहीं थे ऐसे में सृजल ने मार्केट में बिक रही साधारण मूर्तियों को खरीदा और उन्हें सजाकर ज्यादा दामों में बेचना शुरू कर दिया. जिससे सृजल ने इतने पैसे कमा लिए हैं कि वो कॉलेज की आधी से ज्यादा फीस जमा कर पाएगा.

दुकान मालिक ने की सृजल की मदद

न्यू मार्केट के हॉकिंस कुकर की दुकान पर सृजल मूर्ति बेच रहा है. दुकानदार ने बताया कि पांच दिन पहले सृजल उनके पास आया और दुकान के बाहर थोड़ी जगह मांगी. पहले तो दुकानदार ने मना कर दिया, लेकिन भावुक सृजल ने जब अपनी कहानी दुकानदार को बताई तो दुकान की मालकिन बृंदा ने उसे अपनी दुकान के बाहर टेबल लगाने की अनुमति दे दी. बृंदा ने बताया कि सृजल की मेहनत और लगन देख उसकी मदद करने का मन किया. हमें खुशी है कि हमारी एक छोटी सी मदद सृजल के भविष्य के लिए काम आई.

दिवाली के त्योहार को बनाया अवसर

सृजल ने बताया कि वह अटल बिहारी वाजपेई हिंदी विश्वविद्यालय से एमए कर रहा है. उसने बताया पिता के हार्ट में ब्लॉकेज निकला है, जिसका इलाज चल रहा है और उनके इलाज में बहुत पैसे खर्च हो गए. जिस वजह से घर में आर्थिक स्थिति बेहद खराब हो गई. सरकार ने कॉलेज में प्रवेश के लिए हजार रुपए फीस के साथ फिलहाल प्रवेश दे दिया है. लेकिन आगे की पहली इंस्टॉलमेंट जमा करनी है, जिसके लिए 1 माह का समय मिला है. ऐसे में कॉलेज की फीस जमा करने के लिए पैसे नहीं थे. जिसके लिए पहले जॉब करने का सोचा लेकिन जॉब करने से इतनी जल्दी पैसे नहीं मिल पाते. ऐसे में दिवाली के त्यौहार को देखते हुए साधारण मूर्तियां खरीदी और फिर उन मूर्तियों को सजाकर मार्केट में ज्यादा दामों में बेचा. जिससे सृजल की आधी से ज्यादा फीस निकल चुकी है, कुछ मूर्तियां बची है जो भी कल तक बिकने की उम्मीद है.

भोपाल। कोरोना काल में हर कोई आर्थिक संकट से गुजर रहा है. लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार द्वारा कई तरह की योजनाएं भी चलाई जा रही है. वहीं अभी भी ऐसे कई लोग है जो कोरोना के संकट से उभरे नहीं है. राजधानी के हिंदी विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले सृजल शुक्ला के पास कॉलेज की फीस जमा करने के लिए पैसे नहीं हैं, जिसके चलते दिवाली के त्योहार में सृजल ने मूर्तियां बेचने का काम शुरू कर दिया है.

अटल बिहारी वाजपेई हिंदी विश्वविद्यालय का छात्र सृजल शुक्ला कॉलेज की फीस जमा करने के लिए दिवाली के त्योहार में कमाई के अवसर ढूंढ रहा है. न्यू मार्केट की एक दुकान के बाहर छोटी सी टेबल लगाकर सृजल लक्ष्मी जी की मूर्तियां बेच रहा है. सृजल के पिताजी को कुछ माह पहले हार्ट पेशेंट हैं और वे काम पर नहीं जा पा रहे हैं. पिता के घर पर रहने की वजह से घर में आर्थिक स्थिति बेहद खराब हो चुकी है, जिसके चलते सृजल कॉलेज की फीस जमा नहीं कर पा रहा है.

सृजल ने बताया कॉलेज से फीस के लिए लगातार नोटिस मिल रहे थे. फीस नहीं भरने पर अगली कक्षा में प्रवेश नहीं मिल रहा था. जिसके लिए पहले उसने सोचा कि जॉब की जाए लेकिन जॉब करने में एक माह के बाद सैलरी मिलती और फीस भरने के लिए इतना समय नहीं बचा है. इसलिए खुद का बिजनेस करने का सोचा. जिसके लिए पैसे नहीं थे ऐसे में सृजल ने मार्केट में बिक रही साधारण मूर्तियों को खरीदा और उन्हें सजाकर ज्यादा दामों में बेचना शुरू कर दिया. जिससे सृजल ने इतने पैसे कमा लिए हैं कि वो कॉलेज की आधी से ज्यादा फीस जमा कर पाएगा.

दुकान मालिक ने की सृजल की मदद

न्यू मार्केट के हॉकिंस कुकर की दुकान पर सृजल मूर्ति बेच रहा है. दुकानदार ने बताया कि पांच दिन पहले सृजल उनके पास आया और दुकान के बाहर थोड़ी जगह मांगी. पहले तो दुकानदार ने मना कर दिया, लेकिन भावुक सृजल ने जब अपनी कहानी दुकानदार को बताई तो दुकान की मालकिन बृंदा ने उसे अपनी दुकान के बाहर टेबल लगाने की अनुमति दे दी. बृंदा ने बताया कि सृजल की मेहनत और लगन देख उसकी मदद करने का मन किया. हमें खुशी है कि हमारी एक छोटी सी मदद सृजल के भविष्य के लिए काम आई.

दिवाली के त्योहार को बनाया अवसर

सृजल ने बताया कि वह अटल बिहारी वाजपेई हिंदी विश्वविद्यालय से एमए कर रहा है. उसने बताया पिता के हार्ट में ब्लॉकेज निकला है, जिसका इलाज चल रहा है और उनके इलाज में बहुत पैसे खर्च हो गए. जिस वजह से घर में आर्थिक स्थिति बेहद खराब हो गई. सरकार ने कॉलेज में प्रवेश के लिए हजार रुपए फीस के साथ फिलहाल प्रवेश दे दिया है. लेकिन आगे की पहली इंस्टॉलमेंट जमा करनी है, जिसके लिए 1 माह का समय मिला है. ऐसे में कॉलेज की फीस जमा करने के लिए पैसे नहीं थे. जिसके लिए पहले जॉब करने का सोचा लेकिन जॉब करने से इतनी जल्दी पैसे नहीं मिल पाते. ऐसे में दिवाली के त्यौहार को देखते हुए साधारण मूर्तियां खरीदी और फिर उन मूर्तियों को सजाकर मार्केट में ज्यादा दामों में बेचा. जिससे सृजल की आधी से ज्यादा फीस निकल चुकी है, कुछ मूर्तियां बची है जो भी कल तक बिकने की उम्मीद है.

Last Updated : Nov 14, 2020, 1:58 AM IST
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