लखनऊ/भोपाल। मध्य प्रदेश के इंदौर में खासगी ट्रस्ट की ऐतिहासिक जमीनों को खुर्द बुर्द कर दिया गया. ट्रस्ट के प्रबंधकों की मिलीभगत से हरिद्वार के कुशावर्त घाट और इससे सटे होल्कर बाड़े की जमीनों को फर्जी तरह से बेच दिया गया है. हालांकि 5 अक्टूबर को हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ की डबल बैंच ने निर्णय दिया है कि संपत्ति हेरफेर कर गलत तरीके से बेची गई है. हाईकोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार को इसके जांच के आदेश भी दिए है, जिसके बाद प्रशासन ने ट्रस्ट से जमीनों का हिसाब-किताब मांगा है.
ऐसे हुआ जमीनों का खेल
अखिल भारतीय होल्कर महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष विजय पाल सिंह ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. उन्होंने बताया कि खासगी (देवी अहिल्याबाई होलकर चैरिटेबल) ट्रस्ट की देशभर में संपत्तियां है. हालांकि इसकी देखभाल के लिए मध्य प्रदेश सरकार ने ट्रस्ट बनाए थे. उन्होंने बताया कि हरिद्वार में साल 2007 में ट्रस्टी सतीश चंद्र मल्होत्रा ने कुशावर्त घाट और होल्कर बाड़े की जमीन की पावर ऑफ अटॉर्नी उद्योगपति राघवेंद्र सिखौला को दे दी,जबकि उनको यह अधिकार नहीं था. इसके दो साल बाद उक्त जमीन की रजिस्ट्री राघवेंद्र ने अपनी पत्नी निकिता सिखौला और भाई अनिरुद्ध सिखौला के नाम कर दी.
तत्कालीन गढ़वाल आयुक्त ने सीबीआई से की जांच कराने की सिफारिश
इसके बाद घाट और होल्कर बाड़े की जमीन पर बना प्राचीन शिव मंदिर को यहां आने वाले भक्तों के लिए बंद कर दिया गया. फिर दर्शन करने आने वाले श्रद्धालुओं के लिए मंदिर बंद होने की शिकायत विजय पाल ने तत्कालीन गढ़वाल आयुक्त कुणाल शर्मा से की. उन्होंने मामले की जांच करने के बाद 24 मई 2012 को अपनी रिपोर्ट उत्तराखंड सरकार को सौंपते हुए मामले की सीबीआई से जांच कराने की सिफारिश की थी. इसके बाद विजय पाल सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी. होल्कर की अन्य संपत्तियों को लेकर इंदौर हाईकोर्ट में भी कुछ मामले चल रहे थे.इसलिए इस मामले को भी वहीं भेजा गया.
सालों ठंडे बस्ते में पड़ी रही जांच रिपोर्ट
साल 2012 में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अपर प्रमुख सचिव मनोज श्रीवास्तव की जांच रिपोर्ट में बड़े स्तर पर खासगी ट्रस्ट की संपत्ति के गोलमाल का खुलासा हुआ, लेकिन यह रिपोर्ट साल 2017 साल तक दबी रही. याचिकाकर्ता विजय सिंह पाल ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद नैनीताल हाईकोर्ट में यह रिपोर्ट रखी,जबकि मनोज श्रीवास्तव ने अपनी जांच रिपोर्ट तत्कालीन मुख्य सचिव को 2 नवंबर 2012 को ही दे दी थी,लेकिन इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. इसी बीच इंदौर की सांसद रहीं सुमित्रा महाजन ने तत्कालीन इंदौर कलेक्टर आकाश त्रिपाठी को शिकायती पत्र लिखा कि हरिद्वार का कुशावर्त घाट अवैध रूप से बेच दिया गया. इसके बाद ही 5 नवंबर 2012 को तत्कालीन आकाश त्रिपाठी ने देशभर के कलेक्टरों को पत्र लिखकर कहा कि खासगी ट्रस्ट की संपत्तियां मध्य प्रदेश सरकार की है.
फरियादी पर ही गंभीर धाराओं में दर्ज कराया केस
विजय पाल बताते हैं कि कोर्ट के माध्यम से साल 2016 में हरिद्वार कोतवाली में एफआईआर दर्ज कराई थी. इसमें ट्रस्टी सतीश चंद्र मल्होत्रा, राघवेंद्र सिखौली उनकी पत्नी निकिता और भाई अनिरुद्ध के खिलाफ धारा 420, 120 बी, 427, 468, 471 और 506 में मुकदमा दर्ज हुआ था, लेकिन दिसंबर 2019 में हरिद्वार पुलिस ने फाइनल रिपोर्ट लगा दी और केस खत्म कर दिया, जिसके बाद आरोपियों ने फरियादी विजय पर ही राष्टद्रोह, 151ए, 182, 340 धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया था.
ट्रस्टियों ने उपलब्ध नहीं कराए दस्तावेज
पाल के मुकाबिक, चैकाने वाली बात यह है कि ईओडब्ल्यू के खासगी ट्रस्ट के दफ्तर पर छापे के बाद भी ट्रस्टियों ने कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं करवाए हैं. हालांकि अफसरों ने संभागायुक्त और कलेक्टर कार्यालय से संपत्तियों से जुड़े दस्तावेज हासिल किए हैं. जिसमें सामने आया है, कि संपत्ति को बेचने में ट्रस्ट ने कुछ बिचौलियों की मदद ली थी. विजय पाल सिंह का कहना है कि पांच अक्टूबर को हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने अवैध खरीद फरोख्त करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने और पूर्व की स्थिति बनाए रखने के आदेश दिए हैं.
खासगी ट्रस्ट की जमीनों पर कब्जा
विजय पाल का मानना है कि पुष्कर,वृंदावन, कर्नाटक के गोकर्ण,रामेश्वरम,बनारस समेत देशभर में खासगी ट्रस्ट की जमीनों पर कब्जा हो चुका है,जबकि हरिद्वार में होल्कर बाड़ा,कुशावर्त घाट समेत ऋषिकेश के होल्कर बाड़ा में भी अवैध निर्माण कराया गया है.
होल्कर की संपत्ति को खासगी कहा
अहिल्याबाई होल्कर इंदौर की शासक रही हैं. आजादी से पहले उन्होंने देशभर में कई जगह मंदिरों का निर्माण कराया था. हरिद्वार में भी कुशावर्त घाट और होल्कर बाड़ा उनके समय ही बना था. आजादी के बाद इंदौर को भारत में शामिल कर लिया गया और उसकी संपत्तियां भी सरकार के अधीन आ गई. रियासतों के विलय के समय होल्कर की संपत्ति को खासगी कहा गया. महाराष्ट्रीयन भाषा में इसे राजा की संपत्ति कहते हैं. इसीलिए जब संपत्ति के रखरखाव और संधारण की बात आई, तो खासगी ट्रस्ट सामने आया.