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गैस त्रासदी से पहले पत्रकार राजकुमार केसवानी ने सरकार को किया था आगाह, फिर भी बरती गई लापरवाही

भोपाल गैस त्रासदी से पहले ही वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार केसवानी ने अपने आर्टिकल के जरिए सरकार और समाज को चेताया था. इसके बावजूद भी यूनियन कार्बाइड को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए और आखिरकार गैस रिसाव के चलते हजारों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी.

Special conversation with senior journalist on Bhopal gas tragedy
भोपाल गैस त्रासदी को लेकर वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार केसवानी से खास बातचीत
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Published : Dec 2, 2019, 11:19 AM IST

Updated : Dec 2, 2019, 11:52 AM IST

भोपाल। भोपाल गैस त्रासदी दुनिया की सबसे भयावह और दर्दनाक औद्योगिक त्रासदी में से एक है. त्रासदी के पीड़ितों के लिए ये एक ऐसा जख्म है जो 35 साल बाद भी ताजा है. त्रासदी के तीन दशक से ज्यादा बीत जाने के बाद भी यूनियन कार्बाइड में दफ्न जहरीले कचरे के निष्पादन के लिए न तो केंद्र सरकार और न ही मध्य प्रदेश सरकार ने कोई नीति बनाई है, जबकि त्रासदी से पहले ही वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार केसवानी ने अपने आर्टिकल से सरकार को चेताया था, इसके बावजूद भी यूनियन कार्बाइड को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए और गैस रिसाव के चलते हजारों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी.

भोपाल गैस त्रासदी को लेकर वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार केसवानी से खास बातचीत

चेताने पर भी नहीं जागे हुक्मरान

त्रासदी के ढाई साल पहले से पत्रकार राजकुमार केसवानी ने यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री को लेकर आर्टिकल लिखने शुरू कर दिए थे. ईटीवी भारत से खास बातचीत में राजकुमार केसवानी ने बताया कि त्रासदी के कुछ साल पहले उनके एक मित्र जो इसी फैक्ट्री में काम करते थे, उनकी जहरीली गैस रिसाव के चलते मौत हो गई थी. इसके बाद लगातार केसवानी ने आर्टिकल लिखे. उन आर्टिकल के जरिए सरकार को चेताया कि भोपाल शहर किस तरह से मौत के मुहाने पर बैठा हुआ है, लेकिन ना तो यूनियन कार्बाइड प्रबंधन ने और ना ही तत्कालीन सरकार ने इस और कोई ध्यान दिया. इस भयावह घटना से ठीक 6 महीने पहले पत्रकार राजकुमार केसवानी ने एक आर्टिकल लिखा था, जिसकी हेडिंग भी साफ तौर पर यही दी गई थी कि ''मौत के मुहाने पर बैठा भोपाल''. लेकिन किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया, जिसका नतीजा सबके सामने है और 2 और 3 दिसंबर 1984 की दरम्यानी रात बड़ी मात्रा में गैस रिसाव हुआ और हर तरफ मौत का मंजर दिखाई दिया.

गौरतलब है कि भोपाल में यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से निकली कम से कम 30 टन अत्यधिक जहरीले गैस मिथाइल आइसोसाइनाइट ने हजारों लोगों की जान ले ली थी. इस घटना में कुछ ही घंटों के अंदर करीब 3 हजार लोग मारे गए थे, हालांकि मध्यप्रदेश की तत्कालीन सरकार ने 3,787 की गैस से मरने वालों के रूप में पुष्टि की थी. जबकि अनुमान के मुताबिक, 8000 लोगों की मौत तो घटना के 2 हफ्ते के अंदर ही हो गई थी और बाद में भी हजारों लोग बीमारियों से मारे गए.

भोपाल। भोपाल गैस त्रासदी दुनिया की सबसे भयावह और दर्दनाक औद्योगिक त्रासदी में से एक है. त्रासदी के पीड़ितों के लिए ये एक ऐसा जख्म है जो 35 साल बाद भी ताजा है. त्रासदी के तीन दशक से ज्यादा बीत जाने के बाद भी यूनियन कार्बाइड में दफ्न जहरीले कचरे के निष्पादन के लिए न तो केंद्र सरकार और न ही मध्य प्रदेश सरकार ने कोई नीति बनाई है, जबकि त्रासदी से पहले ही वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार केसवानी ने अपने आर्टिकल से सरकार को चेताया था, इसके बावजूद भी यूनियन कार्बाइड को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए और गैस रिसाव के चलते हजारों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी.

भोपाल गैस त्रासदी को लेकर वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार केसवानी से खास बातचीत

चेताने पर भी नहीं जागे हुक्मरान

त्रासदी के ढाई साल पहले से पत्रकार राजकुमार केसवानी ने यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री को लेकर आर्टिकल लिखने शुरू कर दिए थे. ईटीवी भारत से खास बातचीत में राजकुमार केसवानी ने बताया कि त्रासदी के कुछ साल पहले उनके एक मित्र जो इसी फैक्ट्री में काम करते थे, उनकी जहरीली गैस रिसाव के चलते मौत हो गई थी. इसके बाद लगातार केसवानी ने आर्टिकल लिखे. उन आर्टिकल के जरिए सरकार को चेताया कि भोपाल शहर किस तरह से मौत के मुहाने पर बैठा हुआ है, लेकिन ना तो यूनियन कार्बाइड प्रबंधन ने और ना ही तत्कालीन सरकार ने इस और कोई ध्यान दिया. इस भयावह घटना से ठीक 6 महीने पहले पत्रकार राजकुमार केसवानी ने एक आर्टिकल लिखा था, जिसकी हेडिंग भी साफ तौर पर यही दी गई थी कि ''मौत के मुहाने पर बैठा भोपाल''. लेकिन किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया, जिसका नतीजा सबके सामने है और 2 और 3 दिसंबर 1984 की दरम्यानी रात बड़ी मात्रा में गैस रिसाव हुआ और हर तरफ मौत का मंजर दिखाई दिया.

गौरतलब है कि भोपाल में यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से निकली कम से कम 30 टन अत्यधिक जहरीले गैस मिथाइल आइसोसाइनाइट ने हजारों लोगों की जान ले ली थी. इस घटना में कुछ ही घंटों के अंदर करीब 3 हजार लोग मारे गए थे, हालांकि मध्यप्रदेश की तत्कालीन सरकार ने 3,787 की गैस से मरने वालों के रूप में पुष्टि की थी. जबकि अनुमान के मुताबिक, 8000 लोगों की मौत तो घटना के 2 हफ्ते के अंदर ही हो गई थी और बाद में भी हजारों लोग बीमारियों से मारे गए.

Intro:नोट- फीड गैस त्रासदी स्पेशल इंटरव्यू स्लग से कैमरा लाइव व्यू से इंजस्ट की गई है।

भोपाल- राजधानी भोपाल में विश्व की सबसे भीषण तम औद्योगिक त्रासदी से पहले ही वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार केसवानी ने अपने आर्टिकल से समाज, लोग और सरकार को चेताया था। इसके बावजूद भी यूनियन कार्बाईड को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाये गए। और गैस रिसाव के चलते हजारों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी।


Body:त्रासदी के ढाई साल पहले से पत्रकार राजकुमार केसवानी ने यूनियन कार्बाईड फैक्ट्री को लेकर आर्टिकल लिखने शुरू कर दिए थे। राजकुमार केसवानी ने बताया कि त्रासदी के कुछ साल पहले उनके एक मित्र की इसी फैक्ट्री में काम करते थे। जिनकी जहरीली गैस के चलते मौत हो गई थी। इसके बाद लगातार केसवानी ने आर्टिकल लिखें इसमें बताया गया कि किस तरह से भोपाल शहर एक बारूद के ढेर पर बैठा हुआ है लेकिन ना तो यूनियन कार्बाईड प्रबंधन ने और ना ही तत्कालीन सरकार ने इस और कोई ध्यान दिया। इस भयावह घटना से ठीक 6 महीने पहले पत्रकार राजकुमार केसवानी ने एक आर्टिकल लिखा था जिसकी हेडिंग भी साफ तौर पर यही दी गई थी कि मौत के मुहाने पर बैठा भोपाल। इसके बाद भी आखिरकार 2 और 3 दिसंबर की दरमियानी रात बड़ी मात्रा में यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के टैंक नंबर 610 से मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव हुआ और हर तरफ मौत का मंजर नजर आने लगा।


Conclusion:साल 1981 में यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में फासजीन गैस कर साफ हो गया था जिसमें एक वर्कर की मौत हो गई थी। इसके बाद जनवरी 1982 मैं एक बार फिर फासजीन गैस करिश्मा हुआ जिसमें 24 वर्ष की हालत खराब हुई थी उनको अस्पताल में भर्ती कराया गया था। फरवरी 1982 में एक बार फिर कैसा हुआ लेकिन इस बार एमआईसी का रिसाव हुआ था उस वक्त घटना में 18 कर्मचारी प्रभावित हुए थे उन वर्कर्स का क्या हुआ अब तक पता नहीं चल पाया है। अगस्त 1982 में एक केमिकल इंजीनियर लिक्विड एम आई सी के संपर्क में आने के कारण 30 फ़ीसदी जल गया था उसी साल अक्टूबर में एक बार फिर एमआईसी का रिसाव हुआ उस रिसाव को रोकने के लिए एक व्यक्ति बुरी तरह जल गया। साल 1983 और 84 के दौरान कई बार फासजीन, क्लोरीन, मोनोमेथलमिन, और एमआईसी का रिसाव हुआ।

121- राजकुमार केसवानी, वरिष्ठ पत्रकार।

Last Updated : Dec 2, 2019, 11:52 AM IST
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