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फर्जी आईडी बनाकर तस्कर करते हैं नाबालिग बच्चियों से दोस्ती, MP में 700 से ज्यादा बच्चियां हर महीने गायब - fake ID

जाहिर तौर पर मानव तस्करी के सबसे बड़े शिकार बच्चे होते हैं. बच्चों को तस्कर आसानी से अपने जाल में फंसा लेते हैं.कोरोना के चलते मानव तस्करी (human trafficking )की घटनाएं बढ़ी है. अकेले मध्य प्रदेश में हर महीने लगभग मानव तस्करी के 70 से 80 मामले सामने आ रहे हैं. प्रदेश में 700 से ज्यादा बच्चियां हर महीने गायब हो रही है. देखिए ये खास रिपोर्ट...

human trafficking
मानव तस्करी
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Published : Dec 6, 2020, 7:53 PM IST

भोपाल। पहले ही मध्य प्रदेश महिला अपराध और नाबालिगों के लापता होने के मामले में पहले पायदान पर है. अब प्रदेश में मानव तस्करी के मामले भी सामने आ रहे हैं. चौंकाने वाली बात तो यह है कि मानव तस्करी (human trafficking )से जुड़े गिरोह अब सोशल मीडिया (social media) का सहारा ले रहे हैं. सोशल मीडिया पर फर्जी आईडी से तस्कर पहले नाबालिग बच्चियों से दोस्ती करते हैं और फिर बहला-फुसलाकर उनके साथ वारदातों को अंजाम देते हैं. आलम यह है कि प्रदेश में हर महीने लगभग मानव तस्करी के 70 से 80 मामले सामने आ रहे हैं. वही प्रदेश में 700 से ज्यादा बच्चियां हर महीने गायब हो रही है

सोशल मीडिया से मानव तस्करी

फर्जी आईडी बनाकर करते हैं नाबालिग बच्चियों से दोस्ती

कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन के चलते स्कूल-कॉलेज और सभी शिक्षण संस्थान लंबे समय से बंद हैं. लेकिन इन संस्थानों में ऑनलाइन पढ़ाई जारी है. लिहाजा पढ़ाई के नाम पर बच्चों का ज्यादातर समय कंप्यूटर या मोबाइल पर गुजर रहा है. जिसके चलते बच्चे इंटरनेट का इस्तेमाल कर सोशल मीडिया पर भी ज्यादा सक्रिय रहते हैं.इसी का फायदा अब मानव तस्कर गिरोह उठा रहे हैं. तस्कर सोशल मीडिया पर फर्जी आईडी बना कर नाबालिग बच्चियों को निशाना बना रहे हैं. फर्जी आईडी के जरिए बच्चियों को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी जाती है. जिसके बाद बच्चे बिना जान पहचान के ऐसे लोगों से दोस्ती कर लेते हैं और बात करने लगते हैं. धीरे-धीरे तस्कर बच्चों का विश्वास जीत लेते हैं और उन्हें बहला-फुसलाकर किसी अन्य शहर या राज्य में बुलाते हैं और फिर बच्चों को देह व्यापार या बंधुआ मजदूरी में धकेलने का काम करते हैं.

human trafficking
ऐसे बनाते है नाबालिक बच्चियों को शिकार

हाल ही में सामने आए हैं कुछ मामले

पहला मामला राजधानी भोपाल से सामने आया है. जहां पहले सोशल मीडिया पर फर्जी आईडी के जरिए तस्करों ने एक नाबालिग से दोस्ती की. उससे कई महीनों तक चैटिंग की और फिर उसे बहला-फुसलाकर इंदौर ले जाने की योजना बनाई. नाबालिक बच्ची युवक के कहने पर रात 12 बजे अपने साथ दो और बहनों को भी घर से लेकर भाग निकली. दो युवकों ने तीनों बच्चियों को सुबह 4 बजे तक हथाईखेड़ा डेम के पास एक सुनसान इलाके में रखा और कार की व्यवस्था कर तीनों को इंदौर ले जाने का प्लान तैयार किया. परिजनों की शिकायत पर पुलिस ने तीनों बच्चियों को बरामद कर आरोपियों को गिरफ्तार किया गया. पूछताछ में आरोपियों ने स्वीकार किया कि वह बच्चियों को इंदौर के बाद भी किसी और राज्य में ले जाने की तैयारी में थे.

ये भी पढे़ं : टोल फ्री नंबर, मोबाइल सिम साइबर ठगों का हथियार, पल भर में हो सकते हैं कंगाल

दूसरा मामला झांसी से सामने आया

जहां तस्कर ने पहले झांसी की रहने वाली एक नाबालिग बच्ची से दोस्ती की और सोशल मीडिया पर चैटिंग कर उसे विश्वास में लेकर भोपाल बुलाया. इसके बाद बच्ची ट्रेन के जरिए झांसी से भोपाल पहुंची. हबीबगंज स्टेशन पर उतरने के बाद वह ऑटो में बैठी और ऑटो चालक को मेल स्टेशन ले जाने को कहा. इस बीच ऑटो चालक को मामला कुछ गड़बड़ लगा और उसने अपनी सूझबूझ से गोविंदपुरा थाना पुलिस को इसकी सूचना दी. जब पुलिस ने मौके पर पहुंच कर उससे पूछताछ की तो नाबालिग ने किसी दोस्त के कहने पर झांसी से भोपाल आने की जानकारी पुलिस को दी. इसके बाद पुलिस ने आरोपी को धर दबोचा और उससे शुरुआती पूछताछ में पता चला कि वह बच्ची को राजस्थान ले जाने की तैयारी में था.

file photo
सांकेतिक तस्वीर

हर महीने लापता होती है बच्चियां

मध्यप्रदेश में हर महीने 700 से ज्यादा बच्चियां लापता होती हैं. उनकी गुमशुदगी दर्ज की जाती है. साल 2019 की बात करें तो महज 11 महीनों में प्रदेश से 7891 बच्चियां लापता हुई है. इस लिहाज से 700 से ज्यादा बच्चियां हर महीने प्रदेश में लापता हो रही है. साल 2020 में अब तक 2968 बच्चियां लापता हुई है. बताया जा रहा है कि प्रदेश में हजारों मामले मानव तस्करी से जुड़े हुए हैं.लेकिन पुलिस मानव तस्करी की जगह है उन्हें गुमशुदा मानती है. एफ आई आर भी मानव तस्करी की जगह गुमशुदगी की दर्ज की जाती है. जबकि प्रदेश के मंडला डिंडोरी बालाघाट खंडवा मंदसौर नीमच और बैतूल जिले से लगातार बच्चों के लापता होने के मामले सामने आ रहे हैं.

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कई बार अपने ही बेच देते हैं

कई मामलों में देखा गया है कि जब पुलिस या सामाजिक संस्था इन बच्चों को मुक्त कराते हैं तो पता चलता है कि इन बच्चों को आर्थिक तंगी या फिर किसी मजबूरी के चलते इनके माता-पिता ने ही बेचा है. ज्यादातर मामलों में करीबी रिश्तेदार बच्चों के माता-पिता को गलत जानकारी देकर बच्चों को अपने साथ ले जाते हैं. उन्हें बंधुआ मजदूरी या फिर देह व्यापार में धकेल देते हैं. इसी तरह महिलाओं और वयस्कों को भी देह व्यापार और मजदूरी के लिए मजबूर किया जाता है. मध्य प्रदेश बाल आयोग के सदस्य का कहना है कि बाल संरक्षण के लिए बाल आयोग लगातार काम कर रहा है और इस तरीके के मामले लगातार देखने को मिल रहे हैं.

file photo
फाइल फोटो

कई जिलों में फैला है तस्करों का नेटवर्क

मध्यप्रदेश में मानव तस्करों के जाल की बात करें तो इस गिरोह ने प्रदेश के कई जिलों में अपना नेटवर्क फैला रखा है. खास तौर पर तस्कर आदिवासी और गरीब परिवारों के बच्चों को ही निशाना बनाते हैं. पिछले कुछ सालों में कई जिलों में इस तरह के मामले सामने आए हैं. लेकिन अब बदलते जमाने के साथ-साथ मानव तस्करों ने भी तरीका ए वारदात को बदला है. अब इस तरह के गिरोह सोशल मीडिया पर भी एक्टिव हैं. गरीब परिवार या आदिवासी ही नहीं बल्कि संभ्रांत परिवार के बच्चों को भी अपना शिकार बना रहे हैं.

भोपाल। पहले ही मध्य प्रदेश महिला अपराध और नाबालिगों के लापता होने के मामले में पहले पायदान पर है. अब प्रदेश में मानव तस्करी के मामले भी सामने आ रहे हैं. चौंकाने वाली बात तो यह है कि मानव तस्करी (human trafficking )से जुड़े गिरोह अब सोशल मीडिया (social media) का सहारा ले रहे हैं. सोशल मीडिया पर फर्जी आईडी से तस्कर पहले नाबालिग बच्चियों से दोस्ती करते हैं और फिर बहला-फुसलाकर उनके साथ वारदातों को अंजाम देते हैं. आलम यह है कि प्रदेश में हर महीने लगभग मानव तस्करी के 70 से 80 मामले सामने आ रहे हैं. वही प्रदेश में 700 से ज्यादा बच्चियां हर महीने गायब हो रही है

सोशल मीडिया से मानव तस्करी

फर्जी आईडी बनाकर करते हैं नाबालिग बच्चियों से दोस्ती

कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन के चलते स्कूल-कॉलेज और सभी शिक्षण संस्थान लंबे समय से बंद हैं. लेकिन इन संस्थानों में ऑनलाइन पढ़ाई जारी है. लिहाजा पढ़ाई के नाम पर बच्चों का ज्यादातर समय कंप्यूटर या मोबाइल पर गुजर रहा है. जिसके चलते बच्चे इंटरनेट का इस्तेमाल कर सोशल मीडिया पर भी ज्यादा सक्रिय रहते हैं.इसी का फायदा अब मानव तस्कर गिरोह उठा रहे हैं. तस्कर सोशल मीडिया पर फर्जी आईडी बना कर नाबालिग बच्चियों को निशाना बना रहे हैं. फर्जी आईडी के जरिए बच्चियों को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी जाती है. जिसके बाद बच्चे बिना जान पहचान के ऐसे लोगों से दोस्ती कर लेते हैं और बात करने लगते हैं. धीरे-धीरे तस्कर बच्चों का विश्वास जीत लेते हैं और उन्हें बहला-फुसलाकर किसी अन्य शहर या राज्य में बुलाते हैं और फिर बच्चों को देह व्यापार या बंधुआ मजदूरी में धकेलने का काम करते हैं.

human trafficking
ऐसे बनाते है नाबालिक बच्चियों को शिकार

हाल ही में सामने आए हैं कुछ मामले

पहला मामला राजधानी भोपाल से सामने आया है. जहां पहले सोशल मीडिया पर फर्जी आईडी के जरिए तस्करों ने एक नाबालिग से दोस्ती की. उससे कई महीनों तक चैटिंग की और फिर उसे बहला-फुसलाकर इंदौर ले जाने की योजना बनाई. नाबालिक बच्ची युवक के कहने पर रात 12 बजे अपने साथ दो और बहनों को भी घर से लेकर भाग निकली. दो युवकों ने तीनों बच्चियों को सुबह 4 बजे तक हथाईखेड़ा डेम के पास एक सुनसान इलाके में रखा और कार की व्यवस्था कर तीनों को इंदौर ले जाने का प्लान तैयार किया. परिजनों की शिकायत पर पुलिस ने तीनों बच्चियों को बरामद कर आरोपियों को गिरफ्तार किया गया. पूछताछ में आरोपियों ने स्वीकार किया कि वह बच्चियों को इंदौर के बाद भी किसी और राज्य में ले जाने की तैयारी में थे.

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दूसरा मामला झांसी से सामने आया

जहां तस्कर ने पहले झांसी की रहने वाली एक नाबालिग बच्ची से दोस्ती की और सोशल मीडिया पर चैटिंग कर उसे विश्वास में लेकर भोपाल बुलाया. इसके बाद बच्ची ट्रेन के जरिए झांसी से भोपाल पहुंची. हबीबगंज स्टेशन पर उतरने के बाद वह ऑटो में बैठी और ऑटो चालक को मेल स्टेशन ले जाने को कहा. इस बीच ऑटो चालक को मामला कुछ गड़बड़ लगा और उसने अपनी सूझबूझ से गोविंदपुरा थाना पुलिस को इसकी सूचना दी. जब पुलिस ने मौके पर पहुंच कर उससे पूछताछ की तो नाबालिग ने किसी दोस्त के कहने पर झांसी से भोपाल आने की जानकारी पुलिस को दी. इसके बाद पुलिस ने आरोपी को धर दबोचा और उससे शुरुआती पूछताछ में पता चला कि वह बच्ची को राजस्थान ले जाने की तैयारी में था.

file photo
सांकेतिक तस्वीर

हर महीने लापता होती है बच्चियां

मध्यप्रदेश में हर महीने 700 से ज्यादा बच्चियां लापता होती हैं. उनकी गुमशुदगी दर्ज की जाती है. साल 2019 की बात करें तो महज 11 महीनों में प्रदेश से 7891 बच्चियां लापता हुई है. इस लिहाज से 700 से ज्यादा बच्चियां हर महीने प्रदेश में लापता हो रही है. साल 2020 में अब तक 2968 बच्चियां लापता हुई है. बताया जा रहा है कि प्रदेश में हजारों मामले मानव तस्करी से जुड़े हुए हैं.लेकिन पुलिस मानव तस्करी की जगह है उन्हें गुमशुदा मानती है. एफ आई आर भी मानव तस्करी की जगह गुमशुदगी की दर्ज की जाती है. जबकि प्रदेश के मंडला डिंडोरी बालाघाट खंडवा मंदसौर नीमच और बैतूल जिले से लगातार बच्चों के लापता होने के मामले सामने आ रहे हैं.

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कई बार अपने ही बेच देते हैं

कई मामलों में देखा गया है कि जब पुलिस या सामाजिक संस्था इन बच्चों को मुक्त कराते हैं तो पता चलता है कि इन बच्चों को आर्थिक तंगी या फिर किसी मजबूरी के चलते इनके माता-पिता ने ही बेचा है. ज्यादातर मामलों में करीबी रिश्तेदार बच्चों के माता-पिता को गलत जानकारी देकर बच्चों को अपने साथ ले जाते हैं. उन्हें बंधुआ मजदूरी या फिर देह व्यापार में धकेल देते हैं. इसी तरह महिलाओं और वयस्कों को भी देह व्यापार और मजदूरी के लिए मजबूर किया जाता है. मध्य प्रदेश बाल आयोग के सदस्य का कहना है कि बाल संरक्षण के लिए बाल आयोग लगातार काम कर रहा है और इस तरीके के मामले लगातार देखने को मिल रहे हैं.

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फाइल फोटो

कई जिलों में फैला है तस्करों का नेटवर्क

मध्यप्रदेश में मानव तस्करों के जाल की बात करें तो इस गिरोह ने प्रदेश के कई जिलों में अपना नेटवर्क फैला रखा है. खास तौर पर तस्कर आदिवासी और गरीब परिवारों के बच्चों को ही निशाना बनाते हैं. पिछले कुछ सालों में कई जिलों में इस तरह के मामले सामने आए हैं. लेकिन अब बदलते जमाने के साथ-साथ मानव तस्करों ने भी तरीका ए वारदात को बदला है. अब इस तरह के गिरोह सोशल मीडिया पर भी एक्टिव हैं. गरीब परिवार या आदिवासी ही नहीं बल्कि संभ्रांत परिवार के बच्चों को भी अपना शिकार बना रहे हैं.

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