भोपाल। भाद्रपद मास की अष्टमी को भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव (Shri Krishna Janmashtami 2021) धूमधाम से मनाया जाता है, सभी मंदिरों सहित तमाम घरों में भी यह उत्सव बड़े उत्साह से मनाया जाता है. हालांकि, कोरोना महामारी के चलते इस बार उत्सव का रंग कुछ फीका जरूर है क्योंकि गली-मोहल्ले व चौक-चौराहे पर होने वाला मटकी फोड़ आयोजन कोरोना गाइडलाइन की वजह से नहीं हो पा रहा है. जन्मोत्सव मनाने की सभी मंदिरों और समाज-संस्था-संगठनों की अपनी-अपनी परंपरा है. तलैया चौबदापुरा स्थित करीब 700 वर्ष से अधिक पुराने श्री बांके बिहारी मार्कण्डेय मंदिर की भी अपनी परंपरा है, जहां भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के बाद भगवान की जन्म कुंडली बनाई जाती है, ये परंपरा करीब 100 सालों से चली आ रही है और प्रभु का हर बार नामकरण संस्कार होता है, जहां प्रभु के हर बार नक्षत्र के अनुसार नए-नए नाम रखे जाते हैं.
नक्षत्र-कुंडली के अनुसार होता है नामाकरण
बांके बिहारी मंदिर में लड्डू गोपाल का हर साल जन्मोत्सव (Shri Krishna Janmashtami 2021) बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, यहां पिछले 100 सालों से परंपरा चली आ रही है, जहां प्रभु के जन्म होते ही हर साल मंदिर में कुंडली बनाई जाती है. कहा जाता है कि हर साल नक्षत्र और लगन बदल जाते हैं, इसलिए जन्म कुंडली में भी परिवर्तन देखने को मिलता है, जिसे भक्तों को जन्माष्टमी के अगले दिन सुनाया जाता है, जन्म कुंडली में गृह इत्यादि की भी जानकारी दी जाती है.
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नामकरण के बाद होता है बधाई संगीत
मंदिर में सालों से पूजा करते आ रहे पंडित राम नारायण आचार्य ने बताया कि जन्मोत्सव के तहत श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (Shri Krishna Janmashtami 2021) पर रात को 11:30 बजे अभिषेक, 12 बजे जन्म आरती होती है. दूसरे दिन सभी भक्त मिलकर नामकरण संस्कार करते हैं, इस अवसर पर जन्म कुंडली बनाई जाती है, जो नक्षत्र-लग्न के अनुसार बनती है. भगवान का नाम नक्षत्र और लग्न के अनुसार निकाला जाता है और भक्तों को सुनाया जाता है. नामकरण संस्कार के दौरान भगवान श्रीकृष्ण के जो नाम आते हैं, वह सभी भक्तों को बताए जाते हैं, ऐसे में हर बार प्रभु का नया नाम निकल कर आता है, जिसके बाद बधाई गीत गाया जाता है.
इस बार जन्माष्टमी पर बना दुर्लभ संयोग
भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय द्वापर युग में जैसा संयोग बना था, वैसा ही संयोग इस बार भी जन्माष्टमी (Shri Krishna Janmashtami 2021) पर बना है, वे सभी दुर्लभ संयोग एक साथ होने से खासा उत्साह है, पंडित राम नारायण आचार्य के अनुसार श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि बुधवार रोहिणी नक्षत्र में हुआ था, उस वक्त चंद्रमा वृष राशि में था, इस बार बस बुधवार की जगह सोमवार है, लेकिन शेष सभी योग उपस्थित रहेंगे. अष्टमी तिथि पर रोहिणी नक्षत्र सुबह 6 बजकर 34 मिनट से प्रारंभ हो जाएगा. चंद्रमा 1 दिन पहले से ही वृषभ राशि में मौजूद रहेगा, जोकि इसके अगले दिन तक रहेगा. अष्टमी भी रात 2 बजकर 2 मिनट तक रहेगी. सोमवार का दिन भी शुभ है, चंद्रमा और शिव के आधिपत्य वाला दिन है, अष्टमी की शुभदा में व्यतिकरण रहेगा.