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शहीद भवन में शाह शंकर रघुनाथ का हुआ नाट्य मंचन, कलाकारों ने अभिनय से जीता सबका दिल

भोपाल के शहीद भवन में शाह शंकर रघुनाथ का नाट्य मंचन किया गया, जिसमें आजादी के नायकों के जीवन व संघर्षों को बखूबी पेश किया गया.

शहीद भवन में शाह शंकर रघुनाथ का हुआ नाट्य मंचन
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Published : Sep 19, 2019, 10:51 AM IST

भोपाल | राजधानी के शहीद भवन में शाह शंकर रघुनाथ का नाट्य मंचन किया गया. पहली बार मंचित हो रहे इस नाटक में आजादी के नायकों के जीवन और संघर्षों को बखूबी पेश किया गया. राजा शंकर शाह और रघुनाथ के बलिदान दिवस पर प्रस्तुत नाटक का निर्देशन के जी त्रिवेदी ने किया, नाटक का लेखन सुनील मिश्र और संगीत सुनील वानखेड़े ने दिया. जिसमें त्रिकर्षी संस्था के कलाकारों ने अभिनय के साथ शौर्य गाथा को भी बखूबी पेश किया. प्रस्तुति के अंत में सकारात्मक संदेश देने का प्रयास भी कलाकारों ने किया है, क्योंकि राजा के शहादत के बाद अंग्रेजी हुकूमत का विरोध करने के लिए वहां की महिलाओं ने मोर्चा संभाला था.

शहीद भवन में शाह शंकर रघुनाथ का नाट्य मंचन किया गया

इस नाटक में शाह शंकर गोंडवाना के राजा थे, जिन्हें अंग्रेजों ने उनके पुत्र सहित 18 सितंबर 1858 को क्रांति भड़काने के आरोप में तोप के मुंह में बांधकर उड़ा दिया था. उनके पुत्र थे रघुनाथ शाह 1857 में विद्रोह की ज्वाला पूरे भारत में धधक रही थी, तब उन्होंने अपनी मातृभूमि को अंग्रेजों से छुड़ाने के लिए अपने प्रांत वासियों को युद्ध के लिए एकत्रित किया था.

भोपाल | राजधानी के शहीद भवन में शाह शंकर रघुनाथ का नाट्य मंचन किया गया. पहली बार मंचित हो रहे इस नाटक में आजादी के नायकों के जीवन और संघर्षों को बखूबी पेश किया गया. राजा शंकर शाह और रघुनाथ के बलिदान दिवस पर प्रस्तुत नाटक का निर्देशन के जी त्रिवेदी ने किया, नाटक का लेखन सुनील मिश्र और संगीत सुनील वानखेड़े ने दिया. जिसमें त्रिकर्षी संस्था के कलाकारों ने अभिनय के साथ शौर्य गाथा को भी बखूबी पेश किया. प्रस्तुति के अंत में सकारात्मक संदेश देने का प्रयास भी कलाकारों ने किया है, क्योंकि राजा के शहादत के बाद अंग्रेजी हुकूमत का विरोध करने के लिए वहां की महिलाओं ने मोर्चा संभाला था.

शहीद भवन में शाह शंकर रघुनाथ का नाट्य मंचन किया गया

इस नाटक में शाह शंकर गोंडवाना के राजा थे, जिन्हें अंग्रेजों ने उनके पुत्र सहित 18 सितंबर 1858 को क्रांति भड़काने के आरोप में तोप के मुंह में बांधकर उड़ा दिया था. उनके पुत्र थे रघुनाथ शाह 1857 में विद्रोह की ज्वाला पूरे भारत में धधक रही थी, तब उन्होंने अपनी मातृभूमि को अंग्रेजों से छुड़ाने के लिए अपने प्रांत वासियों को युद्ध के लिए एकत्रित किया था.

Intro:50 से ज्यादा कलाकारों ने अपने अभिनय से सजाया शाह शंकर रघुनाथ का मंच


भोपाल | राजधानी के शहीद भवन में शाह शंकर रघुनाथ का नाट्य मंचन किया गया पहली बार मंचित हो रहे इस नाटक में आजादी के नायकों के जीवन व संघर्षों को बखूबी पेश किया गया है राजा शंकर शाह और रघुनाथ के बलिदान दिवस पर प्रस्तुत नाटक का निर्देशन के जी त्रिवेदी ने किया है नाटक का लेखन सुनील मिश्र और संगीत सुनील वानखेड़े ने दिया है नाटक की अवधि लगभग एक घंटा 30 मिनट रखी गई है जिसमें त्रिकर्षी संस्था के कलाकारों ने अभिनय के साथ शौर्य गाथा को भी बखूबी पेश किया है कलाकारों ने नाटक की जानकारी देते हुए बताया कि इस नाटक के लिए मंच की सजावट को विशेष महत्व दिया गया है इस नाटक के मंच को तैयार करने के लिए संस्था के 50 से ज्यादा लोगों ने सहयोग दिया है जिसमें राजा रजवाड़ों का हूबहू लुक दिया गया है प्रस्तुति के अंत में एक सकारात्मक संदेश देने का प्रयास भी कलाकारों ने किया है क्योंकि राजा के शहादत के बाद अंग्रेजी हुकूमत का विरोध करने के लिए वहां की महिलाओं ने मोर्चा संभाला थाBody: शाह शंकर गोंडवाना के राजा थे जिन्हें अंग्रेजों ने उनके पुत्र सहित 18 सितंबर वर्ष 1858 को क्रांति भड़काने के आरोप में तोप के मुंह में बांधकर उड़ा दिया था उनके पुत्र थे रघुनाथ शाह 1857 में विद्रोह की ज्वाला पूरे भारत में धधक रही थी तब उन्होंने अपनी मातृभूमि को अंग्रेजों से छुड़ाने के लिए अपने प्रांत वासियों को युद्ध के लिए एकत्रित किया थाConclusion:पिता पुत्र दोनों ही जनता और जमींदारों के बीच बेहद लोकप्रिय हुआ करते थे जबलपुर में तैनात अंग्रेजों की 52 रेजीमेंट का कमांडर लो क्लार्क काफी अत्याचारी और दुराचारी हुआ करता था उसने छोटे-छोटे ला जाओ और वहां की जनता को बेहद परेशान करके रखा था राजा शंकर शाह ने जनता और जमीदारों से मिलकर युद्ध का ऐलान कर दिया था पिता के इस साहसिक निर्णय में उनके पुत्र रघुनाथ शाह ने भी पूरा साथ दिया था लेकिन कायर अंग्रेज ने साधु का भेष रखकर खुफिया तरीके से सारी जानकारियां जुटाकर दोनों पिता-पुत्र को तोप से मरवा दिया था शंकर शाह रघुनाथ शाह की शहादत आदिवासी अंचल गड़ा मंडल वासियों के लिए किसी गहरे जख्म से कम नहीं थी जिससे उबरना इतना आसान भी नहीं था राजा की शहादत के बाद वहां की महिलाओं ने अंग्रेजी हुकूमत का विरोध करने के लिए मोर्चा संभाला था जो आज भी इतिहास में दर्ज है .
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