भोपाल। भारतीय जनता पार्टी को सीनियर लीडर्स की बेरुखी भारी पड़ेगी. मप्र में कांग्रेस कमजोर नहीं है, उनकी जड़ें अभी भी गहरी हैं. त्याग, तपस्या और बलिदान भारतीय जनता पार्टी की निशानी है. इसको वर्तमान नेतृत्व कितना अपनाता है. यदि नहीं अपनाया तो इससे पार्टी को नुकसान होगा. ये बात वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व राज्यसभा सांसद रघुनंदन शर्मा ने ईटीवी भारत के ब्यूरो चीफ विनोद तिवारी से खास बातचीत में कहीं. शर्मा ने कहा कि कार्यकर्ताओं के साथ वर्चुअल मीटिंग के साथ ही फिजिकली मुलाकात भी जरूरी है. (ex mp raghunadan sharma exclusive interview)
सवाल: हाईटेक हो गई है पार्टी, पूरी तरह डिजिटल हो गई है पार्टी, हर एक चीज डिजिटल हो रही है पार्टी में ?
जवाब: समय के साथ चलना पड़ता है. यदि आप समय के साथ नहीं चले और पिछड़ गए तो लोग उंगली उठाएंगे कि ये अभी भी 18वीं शताब्दी में जी रहे हैं. दुनिया 21वीं शताब्दी में जी रही हैं. ये कोई अपनाने को तैयार नहीं है, जो टेक्निकल डेवलपमेंट हुआ है सभी क्षेत्रों में. इस टेक्निकल डेवलपमेंट में लोगों ने अपनी दुनिया को बहुत ही छोटा कर लिया है. संसार छोटा हो गया है. छोटे से छोटा समाचार 10 मिनट में देश के किसी भी कोने में पहुंच जाता है. ऐसी स्थिति में कदमताल करते हुए भारतीय जनता पार्टी को भी हाइटेक होने की आवश्यकता थी. ये कोई गलत नहीं है. (madhya pradesh assembly election 2023)
सवाल: मेरा कहना ये है कि हम फिजिकल से वर्चुअल पर आ गए हैं, तो मिलना कम होता. सब चीजें वर्चुअल हो गई हैं. ऐसे में नहीं लगता कि संगठन कहीं कमजोर होगा ?
जवाब: संगठन का मूलमंत्र तो प्रवास है. प्रवास में भी कार्यकर्ताओं के घरों में रुकना, ठहरना, एक-एक गांव में रात बिताना. बड़े शहरों में दो-तीन दिन ठहरना. इसी आधार पर भारतीय जनता पार्टी का इतना बड़ा और व्यापक संगठन खड़ा हुआ है. आत्मीयता और पारिवारिक भाव को लेकर ये संगठन सत्ता में आ गया है. उसके पीछे फिजिकली भौतिक रूप से कार्यकर्ताओं के बीच जाना. उनसे घुलना-मिलना और समय देना है. अब समयाभाव हो गया है. आपका कहना बिल्कुल ठीक है. इसमें हम ये कहेंगे कि ये ठीक नहीं है. दोनों चीजें होना चाहिए. डिजिटलाइजेशन भी आवश्यक है. (raghunandan sharma view on party)
सवाल: हमने देखा है कि जिस समय आप लोग प्रवास करते थे, तो कार्यकर्ता आपकी व्यवस्था करते थे- सोने की, रहने की और आगे के बस के किराए की. अब वो चीजें बदल गई हैं. ऐसे में कार्यकर्ता का भाव और समर्पण का भाव कम हो गया है ?
जवाब: कभी-कभी मुझे ठाकरे जी और प्यारेलाल जी के साथ प्रवास पर जाने का अवसर मिलता था, तो हम जैसे यहां से निकले तो देवास गए. देवास के कार्यकर्ता गाड़ी में उज्जैन तक का डीजल भरवाते थे. उज्जैन से निकलकर शाजापुर जाते थे, तो शाजापुर के कार्यकर्ता आगे की व्यवस्था करते थे. इस प्रकार से संगठन चलता था. अब वो जमाना बदल गया है. लोगों के पास पैसा भी है, देने की क्षमता भी हो गई है, दे भी रहे हैं, इसलिए खर्चा को तो इग्नोर करके चलना ही ठीक है. इसकी तो चर्चा भी अब उचित नहीं मानी जाती है.
सवाल: अभी बूथ विस्तारक कार्यक्रम चला और लगातार 15 दिन चला. 65 हजार बूथ पर जाने का कार्यक्रम रहा. उस कार्यक्रम के बाद समीक्षा हुई, तो ये बात सामने आई कि कई दर्जन विधायकों ने ठीक ढंग से काम नहीं किया. संगठन प्रभारी ने उनको चेतावनी भी दी. ये जो स्थिति एक तरह से भाजपा में जो अनुशासन और कैडर की पार्टी मानी जाती है, उसमें इस तरह विधायकों को लापरवाही बरतना और इग्नोर करना कहां तक उचित लगता है आपको ?
जवाब: यदि वो पार्टी द्वारा निर्धारित कार्यक्रम और दिए हुए कार्यक्रम को नहीं करेंगे, तो आगे जाकर नुकसान उन्हीं का है. हमें मिलकर ये सोचकर बैठ जाना मप्र में गलत होगा. भारतीय जनता पार्टी यहां ताकतवर है. संगठन बहुत अच्छा है, लेकिन कांग्रेस भी कमजोर नहीं है. कांग्रेस बराबरी की ताकत बनी हुई है. आज भी बनी हुई है. यद्यपि उसके पास कार्यकर्ता नहीं है. सब बातें उनके अगेन्स्ट हैं. उनके विरुद्ध हैं. इसके बावजूद भी उनकी जड़ें अभी गहरी हैं. भारतीय जनता पार्टी को पुराने नेताओं की त्याग, तपस्या से तैयार किए गए संगठन की रक्षा करना चाहिए, समय देना चाहिए अन्यथा खतरे में वे ही पड़ेंगे जो आलस्य करेंगे.
सवाल: प्रदेश प्रभारी ने तो यहां तक कह दिया है कि आपसे नहीं बनता है तो आप विश्राम ले लें.
जवाब: उन्होंने उचित कहा. इसी भाषा में ऐसे लोगों को समझ आने की आवश्यकता है. वो इसी भाषा को समझेंगे. पुराने नेता भी इसी प्रकार की भाषा उनको समझाने के लिए उपयोग में लेते थे. पुराने समय में इतना कहने की आवश्यकता नहीं पड़ती थी. आजकल लोग अपने काम से हटने लगे हैं. लापरवाही उनके भीतर आ गई है. इससे उन्हीं का नुकसान है. उनका नुकसान है, तो संगठन का नुकसान है. यह सरकार पर प्रश्नचिन्ह लगाने का उपक्रम है. सावधान रहने की आवश्यकता है. मैं आपके माध्यम से कार्यकर्ताओं को कहना चाहता हूं कि मप्र की जनता का दिल जीतना है तो कार्यकर्ताओं का दिल जीतो. कार्यकर्ताओं के दिल जीतने का मतलब है कि दिए हुए काम को तत्परता से समय पर पूरा करना.
सवाल: बूथ विस्तारक कार्यक्रम हुआ. उसका जो फीडबैक आया, उसमें कई तरह की शिकायतें आईं. लोगों में अलग तरह का अंसतोष है.
जवाब: आपका कहना सही है. मुझे भी कई कार्यकर्ता आकर कहते हैं कि ऐसा लगता है कि मप्र में अफसरशाही हावी हो गई है. अधिकारी जो चाहते हैं कर डालते हैं. मंत्री, कार्यकर्ता और वरिष्ठ लोग जो चाहते हैं वो रह जाता है. इस स्थिति को बदलना पड़ेगा. बैठकर चर्चा करना पड़ेगी. वरिष्ठों को इसकी चिंता करना पड़ेगी.
सवाल: भारतीय जनता पार्टी की परिभाषा ये थी कि पार्टी विद डिफरेंस. अभी लोग ये कह रहे हैं कि पार्टी विद डिफरेंट. इसके क्या मायने हैं ?
जवाब: ऐसा तो अभी नहीं है. राजनीतिक क्षेत्र में जितनी भी पार्टी हैं, जितने भी राजनैतिक दल हैं, उनमें आज भी भारतीय जनता पार्टी आदर्श मूल्य की राजनीति और सिद्धांतों के प्रति निष्ठा में ज्यादा ठीक है. हां, कुछ न कुछ दोष और कुछ न कुछ विकृतियां हमारे यहां भी आई हैं, लेकिन बाकी दलों से हम आज भी अच्छे हैं.
सवाल: भारतीय जनता पार्टी में दलबदल और दूसरी विचारधारा के लोगों को शामिल करने में परहेज किया जाता था. दो -तीन साल में स्थितियां ऐसी बन गई हैं कि ऐसा लग रहा है कि भारतीय जनता पार्टी ने कोई कार्यक्रम चला रखा है कि- आओ हमारे पाले में , आप चाहे किसी भी विचारधारा के हो. ऐसा क्यों ?
जवाब: देखिए, इस बारे में मेरी वरिष्ठों से भी चर्चा हुई है. उनका कहना है कि पार्टी को और विचारधारा को विस्तार देने के लिए बाहर से पहले भी लोग आते रहे हैं. पहले सीमित मात्रा में आते थे, लेकिन अब शक्ति को देखकर, ताकत को देखकर लोग ज्यादा आने लगे हैं. उसके लिए एक ही रास्ता है कि उनको सैद्धांतिक और हमारे तत्व, दर्शन और फिलॉसफी का अध्ययन कराया जाए. प्रशिक्षण वर्ग आयोजित किए जाएं. ये प्रक्रिया प्रारंभ हो गई है. जो चिंता आपकी है, जो चिंता मेरी है वो चिंता वरिष्ठ नेतृत्व की भी है. नेतृत्व ने इस स्थिति को ठीक करने के लिए प्रशिक्षण वर्ग का आयोजन करके विचारधारा को ठोस रूप में उनके दिलों में उतारने का अभियान चला दिया है.
सवाल: ऐसा तो नहीं लग रहा कि कहीं सत्ता के कारण सिद्धांतों की बलि चढ़ जाए.
जवाब: अभी ऐसा तो नहीं लगता है, लेकिन यदि प्रशिक्षण वर्गों में हमने लापरवाही की, कोताही की और जिनको लिया जा रहा है, उनको प्रशिक्षित नहीं किया तो उससे आगे परेशानी हो सकती है. पार्टी को जिनको नहीं लेना है उनको दृढ़ता से मना करना चाहिए. जिनको लेना है उनका स्वागत करना चाहिए. छंटनी करने का काम, परखने का काम, व्यक्ति और उसके व्यक्तित्व को परखने का जो पारखी बनने का काम है नेतृत्व के आज के लोगों को ही करना है. वे अब कितने सफल होते हैं, ये उनके ऊपर ही निर्भर है.
सवाल: दरअसल, हो ये रहा है कि अनुभव को दरकिनार करके उम्र के आधार पर लोगों की छंटनी का सिलसिला शुरू हो गया है. संरक्षक मंडल में बिठाने की प्रक्रिया चालू है. ऐसे में मूल कार्यकर्ता जिसकी निष्ठा व्यक्ति के साथ जुड़ी हुई है. पार्टी के सिद्धांत अपनी जगह हैं, लेकिन किसी न किसी नेता के साथ कार्यकर्ता जरूर जुड़ा रहता है. जब उस कार्यकर्ता के नेता की ही उपेक्षा हो जाए तब क्या होगा ?
जवाब: कुशाभाऊ ठाकरे, सुंदरसिंह भंडारी जैसे संगठक थे, जिन्होंने अपना जीवन लगाकर पार्टी को खड़ा किया. वो हमें एक सूत्र बताते थे कि पार्टी में बुजुर्गों को, वयोवृद्धों को जोड़ना और युवाओं को भी एकत्रित करना दोनों बहुत आवश्यक है. प्रौढ़ लोगों से पार्टी की प्रतिष्ठा बढ़ती है कि अच्छा ये भी पार्टी से जुड़ा है. ये भी हैं इसमें. उनके अनुभव, उनका ज्ञान और उनके प्रति समाज जो आदर करता है. उससे पार्टी का भी सम्मान बढ़ता है. प्रौढ़ों से प्रतिष्ठा बढ़ती है. युवाओं से शक्ति बढ़ती है. यदि हमने किसी एक भी पलड़े को खाली छोड़ दिया तो बैलेंस बिगड़ जाएगा. राजनीति में संतुलन रखना बहुत आवश्यक है. प्रौढ़ भी आवश्यक है. उनको इग्नोर करना प्रतिष्ठा पर आघात करना है. युवाओं को यदि हम छोड़ देंगे तो ताकत में कमी आ जाएगी.
सवाल: रघुजी, बहुत पुरानी बात है. आपने एक फार्मूला दिया था कि जो एक बार विधायक बन जाए तो उसको दोबारा टिकट न दिया जाए. एक बार सांसद बन जाए तो दूसरी बार सांसद न बनें. पार्टी में रहकर काम करें. ऐसे में अधिक से अधिक कार्यकर्ताओं को सत्ता और संगठन में काम करने का मौका मिलेगा. आपका वो फॉर्मूला कहां गया पार्टी में. मुझे आज भी याद है कि आपने कहा था कि मैं खुद इसे अपने ऊपर लागू कर रहा हूं.
जवाब: आपको मालूम है कि मैं एक बार विधायक बना. उसके बाद मैंने संगठन का काम करना शुरू कर दिया. दूसरी बार संसद के लिए अवसर आया तो एक बार राज्यसभा का सांसद बना. दूसरी बार अवसर आने पर भी मैंने कहा कि नहीं किसी दूसरे को अवसर दो. त्याग, तपस्या और बलिदान की बात आचरण में भी आना चाहिए. अब वरिष्ठों के ऊपर, काम करने वालों पर, कार्यकर्ताओं पर, पार्टी के प्रति निष्ठा रखने वालों पर निर्भर करता है कि वो त्याग, तपस्या और बलिदान का अपने आचरण में, अपने व्यवहार में कितना लाते हैं.