भोपाल। देश में सबसे ज्यादा बाल अपराध (child crime) के मामले मध्यप्रदेश (MP) से सामने आ रहे हैं. नाबालिग (Minor) से दुष्कर्म (Rape) के मामलों में एमपी (MP) देश में सबसे ऊपर है. हालांकि, ऐसे मामलों में पुलिस कार्रवाई तो हो रही, लेकिन अधिकांश मामले कोर्ट (Court) लंबित (Pending) हैं. पिछले साल बच्चियों (Girls) से ज्यादती और पॉस्को (POCSO) के 14 फीसदी मामलों का ही कोर्ट में निराकरण हो पाया.
714 केस पेंडिंग
भोपाल कोर्ट में 2020 की स्थिति में 714 केस पेंडिंग हैं. बच्चियों से दुराचार के मामलों में प्रदेश में फांसी तक का प्रावधान है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर ऐसे मामलों में कमी कैसे आएगी.
बाल अपराधों में एमपी की स्थिति
एनसीआरबी (NCRB) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, देश भर में बच्चों के साथ अपराधों (Crime) के मामले में प्रदेश पहले पायदान पर है. देश में सबसे ज्यादा असुरक्षित बच्चे भी एमपी में हैं. नाबालिग (Minor) के साथ दुष्कर्म (Rape) के मामले में भी प्रदेश शीर्ष पर है. साल 2020 में प्रदेश में 17008 बाल अपराध (child crime) रिकाॅर्ड किए गए. हालांकि 2019 में बाल अपराधों (child crime) का आंकड़ा 19028 और 2018 में 18892 था.
बाल अपराध में किस राज्य का कौन सा नंबर
पिछले दो सालों में अपराध भले ही कम हुए हों, लेकिन इसके बाद भी यह देश में सबसे ज्यादा हैं. बाल अपराधों (child crime) के मामले में उत्तर प्रदेश (UP) दूसरे, महाराष्ट्र (maharashtra) तीसरे स्थान और पश्चिम बंगाल (West bengal) चैथे स्थान पर है. प्रदेश में बच्चियों से दुष्कर्म के मामले में भले ही फांसी तक की सजा का प्रावधान किया गया हो, लेकिन इसके बाद भी मध्यप्रदेश बच्चों से रेप के मामले में सबसे ऊपर है. एनसीआरबी के 2020 के आंकड़ों के मुताबिक साल 2020 में प्रदेश में ऐसे 3262 मामले सामने आए हैं, जो सभी राज्यों से कहीं ज्यादा हैं. महाराष्ट्र में ऐसे 2800 मामले और उत्तर प्रदेश में 2533 मामले सामने आए हैं.
कोरोना से न्याय में देरी
मध्यप्रदेश (MP) में ज्यादती की शिकार नाबालिग बच्चियों (Minor girl) को समय पर न्याय नहीं मिल पा रहा है. कोरोना के चलते ऐसे मामलों की पेंडेंसी और बढ़ती जा रही है. पिछले साल बच्चियों से ज्यादती और पोक्सो के 14 फीसदी मामलों में ही कोर्ट से निराकरण हो सका. भोपाल कोर्ट में साल 2019 में 555 केस पेंडिंग थे. साल 2020 में पुलिस द्वारा 288 नए चालान कोर्ट में प्रस्तुत किए गए. इस तरह 2020 में 832 मामले सुनवाई में थे इनमें से 118 का ही निराकरण हो सका.
बच्चियों से दुराचार के मामले पेंडिंग
साल 2020 यानी पिछले साल के 714 मामले पोक्सो और बच्चियों से दुराचार के मामले पेंडिंग हैं. भोपाल कोर्ट में 2020 की स्थिति देखी जाए तो पूर्व लंबित 555 मामले थे. वहीं 288 नए मामले प्रस्तुत किए गए. इस तरह कुल केस 832 थे. इनमें से 118 मामले सुलझाए गए जिसमें 34 लोगों को सजा हुई 68 बरी हो गए.
इन मामलों की हो रही सुनवाई
साल 2021 में मई माह तक के आंकड़ों को देखा जाए तो पिछले साल के कुल 714 मामले पेंडिंग थे. नए 120 मामले प्रस्तुत किए गए इस तरह कुल केस 834 है. 63 मामले सुलझाए गए जिसमें 22 को सजा हुई 37 बरी हो गए. हालांकि, पेंडेंसी को लेकर लोक अभियोजन अधिकारी राजेंद्र उपाध्याय का कहना है कि लॉकडाउन और कोरोना वायरस के चलते कोर्ट का कामकाज प्रभावित हुआ है. हालांकि संवेदनशील और अति संवेदनशील मामलों में कोर्ट अपना फैसला सुना रही है.
बच्चों से अपराध को लेकर रिटायर्ड अधिकारी चिंतित
उधर, प्रदेश में महिलाओं और बाल अपराध के बड़े हुए आंकड़ों को लेकर रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी ने भी चिंता जाहिर की है. रिटायर्ड डीजी अरुण गुर्टू कहते हैं कि उत्तर प्रदेश और बिहार में भले ही ज्यादा अपराध होते हों, लेकिन मध्यप्रदेश में अपराधों का अलग ही ट्रेंड है. प्रदेश में बाल अपराधियों और महिलाओं से दुराचार के मामलों को लेकर पुलिस मुख्यालय को एक गहन अध्ययन करना चाहिए कि आखिर इस तरह की वारदातें प्रदेश में सबसे ज्यादा क्यों होती है.
इसके बाद ही ऐसी घटनाओं पर लगाम लगाई जा सकती है. वे कहते हैं कि भले ही नाबालिग से दुराचार के मामलों में सरकार ने कड़ी सजा के प्रावधान किए हो, लेकिन सिर्फ सजा के आधार पर अपराधों में कमी नहीं लाई जा सकती.
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गृहमंत्री बोले लगातार उठाए जा रहे कदम
उधर, प्रदेश में महिला और बाल अपराधों को लेकर गृहमत्री नरोत्तम मिश्रा (Narottam mishra) का कहना है कि महिला अपराधों को रोकने के लिए बहुत ही सशक्त तरीके से कदम उठाए गए हैं. देश में सबसे पहले दुष्कर्मी को सजा देने के लिए मध्यप्रदेश में फांसी का कानून लाया गया है. प्रत्येक जिले में महिला थाना है. प्रत्येक थाने में महिला डेस्क है. यहां घर पर बैठे-बैठे मोबाइल पर E-FIR की जा सकती है. देश में सबसे पहले FIR आपके द्वार मध्य प्रदेश में प्रारंभ की गई. हम कभी भी अपराध छुपाते नहीं है. प्रदेश में बाल अपराधों और महिला अपराधों के ग्राफ में कमी आई है.