हैदराबाद। 13 मार्च 1940 को रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन की कॉक्सटन हॉल में बैठक चल रही थी. बैठक में भारतीय भी मौजूद थे. इन्हीं भारतीयों में एक भारतीय ऐसा था, जो बदले की आग में बैठा था. बैठक खत्म होने के बाद, जब सभी लोग उठे तभी उस शख्स ने मुख्य स्पीकरों में से एक माइकल ओ’ ड्वायर पर गोली चला दी. गोली चलाने वाला शख्स कोई और नहीं उधम सिंह थे. उधम सिंह ने माइकल ओ' ड्वायर को दो गोलियां मारीं, जिससे उसकी मौके पर मौत हो गई.
1919 में रखी गई थी कॉक्सटन हॉल में गोली चलने की नींव
हॉल में गोली चलने के बाद भगदड़ मच गई. सभी लोग इधर-उधर भागने लगे, लेकिन उधम सिंह अपनी जगह से हिले नहीं. ऐसे में गिरफ्तार होना लाजिमी था और वही हुआ. उधम सिंह को अरेस्ट कर लिया गया. दरअसल, गोली चलने के यह बीज 21 साल पहले 1919 में रखे गए थे. तब उधम सिंह 19 साल के थे और मैट्रिक पास ही हुए थे.
डायर ने खून से रंग दिया था जलियांवाला बाग
बैसाखी के दिन 13 अप्रैल 1919 के अमृतसर के जलियांवाला बाग में सभी लोग रॉलेट एक्ट के विरोध में इकट्ठा हुए थे और शांति से प्रोटेस्ट कर रहे थे. इस बीच अंग्रेज जनरल रेजिनाल्ड एडवार्ड हैरी डायर अपनी फौज के साथ पार्क में पहुंच गया और पार्क को घेरकर एकमात्र निकास गेट पर कब्जा कर लिया.
जब डायर के इशारे ने लीलीं 370 जानें
फिर क्या था, रेजिनाल्ड एडवार्ड हैरी डायर ने सिपाहियों को गोली चलाने का आदेश दे दिया. जान बचाने के लिए सभी इधर-उधर भागते रहे. किसी ने दिवार पर चढ़कर जान बचाने की कोशिश की तो कोई कुएं में कूद गया, लेकिन बचना असंभव था. एक-एक गोली हिंदूस्तानियों के सीने को छलनी करती हुई गई और लगभग 370 लोग मारे गए. हादसे में 1200 से ज्यादा लोग घायल भी हुए.
21 साल बाद घर में घुसकर लिया बदला
इतिहास के पन्नों के मुताबिक, उधम सिंह भी बाग में थे और इस भारत की माटी के लाल ने मन ही मन बदला लेने का मन बना लिया. उधम सिंह ने जलियांवाला बाघ में गोली चलवाने वाले रेजिनाल्ड एडवार्ड हैरी डायर और पंजाब के गर्वनर माइकल ओ’ ड्वायर से बदला लेने की ठान ली, लेकिन यह सब इतना आसान नहीं था. उधम सिंह को बदला लेने के लिए 21 साल लग गए.
जनरल डायर को भी गोलियों से भूनना चाहते थे उधम सिंह
सरदार उधम सिंह जलियांवाला बाग नरसंहार के मुख्य आरोपी जनरल डायर को भी गोली से भूनना चाहते थे, लेकिन 1927 में ब्रेन हेमरेज की वजह से मौत हो गई. ऐसे में उधम सिंह का निशाना अब माइकल ओ' ड्वायर था. इसके लिए उन्होंने बाकायदा योजना बनाई. योजना के तहत सरदार ऊधम सिंह ने एक रिवॉल्वर ली और उसे एक मोटी किताब में छिपा दिया.
मोटी किताब में रिवॉल्वर ऐसे छिपा कर ले गए थे सिंह
उधम सिंह ने रिवॉल्वर को छिपाने के लिए एक मोटी किताब के पन्नों को काटकर रिवॉल्वर जैसी ऑकृति का बॉक्स बनाया. उस बॉक्स में रिवॉल्वर को रख दिया और चुपचाप लंदन की कॉक्सटन हॉल में चल रही बैठक में जाकर बैठ गए. बैठक खत्म होने के बाद उन्होंने माइकल ओ' ड्वायर पर गोलियां चला दीं.
उधम सिंह की फांसी के सात साल बाद ही मिल गई आजादी
ड्वायर की हत्या के मामले में 4 जून 1940 को उधम सिंह को दोषी ठहराया और 31 जुलाई पेंटनविले जेल में फांसी दे दी. उधम सिंह द्वारा चलायी गई मात्र दो गोलियों की गूंज पूरे देश में गूंजी और सात साल बाद ही भारत को आजादी मिल गई. भले ही उधम सिंह आजाद भारत में सांस न ले सके हों, लेकिन आज वह भारत के हर दिल में जिंदा हैं.
26 सितंबर 1899 को पंजाब के संगरूर में जन्मे थे उधम सिंह
भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान सैनानी और क्रांतिकारी उधम सिंह का जन्म 26 सितंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में हुआ था. पिता सरदार तेहाल सिंह रेलवे में चौकीदारी की नौकरी करते थे. पापा ने इनका नाम शेर सिंह रखा, लेकिन शेर सिंह के सिर से माता-पिता का साया जल्दी ही उठ गया और अनाथ हो गए. इनका एक भाई भई था मुख्ता सिंह. रेलवे ने दोनों को अमृतसर के सेंट्रल खालसा अनाथालय में भेज दिया गया.