भोपाल। मध्य प्रदेश शासन और संस्कृति विभाग द्वारा मध्य प्रदेश जनजातीय संग्रहालय में बहुविध कलानुशासनों की गतिविधियों एकाग्र 'गमक' श्रृंखला अंतर्गत प्रचलित कठपुतली नृत्य का प्रदर्शन किया गया. इस पुतुल समारोह में विलास जानवे ने उदयपुर का पारंपरिक और आधुनिक पुतली कला पर व्याख्यान किया, तो वहीं दिलीप मासूम ने धागा पुतली शैली में लोककथा एकाग्र की प्रस्तुति दी.
पहली प्रस्तुति
प्रस्तुति की शुरुआत विलास जानवे के व्याख्यान से हुई. उन्होंने अपने गुरु स्वर्गीय डॉक्टर अजय पाल और स्वर्गीय पद्मश्री देवीलाल सामर का स्मरण करते हुए कहा कि, हमारे देश के कई राज्यों में पुतली कला की प्राचीन परंपरा रही है, जहां धागा, छड़, छाया और दस्ताना पुतली देखने को मिलती है. इस कार्यक्रम के मौके पर गायन दिलीप मासूम भाट, सह गायन हेमलता, कोरस विनोद, पुतुल संचालन श्याम भाट, दानिश, ढोलक वादन संतोष भाट सहित कथा वाचन श्यामदास वैरागी ने किया.
दूसरी प्रस्तुति
दूसरी प्रस्तुति दिलीप मासूम द्वारा धागा पुतली शैली में दी गई, जिसमें नौकोटी मारवाड़ के राजा अजमल की कथा को कठपुतली के माध्यम से प्रदर्शित किया गया. प्रदर्शन के बीच कुछ राजस्थानी गीत- 'हो जी रे दीवाना हो जी रे मस्ताना', 'पल्लो लटके', 'चला-चला रे ड्राइवर गाड़ी होले-होले' को समाहित कर किया गया.
धागा पुतली
धागा पुतली राजस्थान भाट कलाकारों की कला है. कठपुतली का खेल तम्बूडी में दिखाया जाता है. आज भी वर्षों पुरानी कथाओं को कठपुतली प्रदर्शन के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है. साथ ही उनमें नवाचार करने का प्रयास करते हैं.
छाया पुतली
पारंपरिक छाया पुतली तमिलनाडू और केरल की कला है. इसमें पारंपरिक वाद्य चेंडा, एज़ुपारा और इलात्तालम के साथ संस्कृत और मलयालम में संवाद किया जाता है.
कठपुतली नृत्य में किए जा रहे नए प्रयोग
इस मौके पर विलास जानवे ने कठपुतली नृत्य में किए गए नए प्रयोगों को दर्शकों के साथ साझा किया. उन्होंने कहा कि, कलाकार को जमाने में आए बदलाव के हिसाब से खुद को बदलना पड़ेगा. दर्शक को बांधे रखने में पुतली कला की विलक्षणता कारगर होती है, लेकिन उस खासियत को बनाए रखना, बड़ा चुनौती पूर्ण होता है.