भोपाल। नए कृषि कानूनों को लेकर चल रहा बवाल अभी शांत भी नहीं हुआ था कि सरकार के बिजली कंपनियों को निजी हाथों में सौंपने के फरमान को चुनौती मिलने लगी है.बिजली कर्मचारी के संगठनों द्वारा इस फैसले का विरोध किया जा रहा है. संगठनों प्रमुखों ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मिलने का वक्त मांगा है. निजीकरण के इस मसौदे में बिजली कंपनियों की भूमि एक रुपए महीने की लीज पर निजी कंपनियों को सौंपी जाएगी. केंद्र सरकार द्वारा बिजली कंपनियों के निजीकरण के मसौदे पर राज्य सरकार गंभीरता से विचार कर रही है.
निजीकरण की सुगबुगाहट के साथ विरोध शुरू
मध्यप्रदेश में बिजली कंपनियों के निजीकरण की सुगबुगाहट के साथ ही कर्मचारियों ने विरोध की रणनीति बनानी शुरू कर दी है.प्रदेश यूनाइटेड फोरम फॉर पावर एम्पलाइज एंड इंजीनियर्स के प्रांतीय संयोजक वीकेएस परिहार के मुताबिक बिजली कंपनियों को निजी हाथों में सौंपने का प्रयोग पहले ही फेल हो चुका है. उज्जैन में वितरण बिल वसूली का काम निजी हाथों में सौंपा गया था, कंपनी काम छोड़ कर भाग गई. बाद में निजी कंपनी को टर्मिनेट कर बिजली विभाग ने व्यवस्था अपने हाथों में ली. इसके अलावा इस फैसले से सबसे बड़ा नुकसान कर्मचारियों का होगा. संविदा आउटसोर्स कर्मचारियों के अलावा रेगुलर कर्मचारियों की सर्विस कंडीशन खराब होगी. उन्होंने बताया कि स्टैंडर्ड बिल्डिंग डॉक्यूमेंट के मुताबिक बिजली कंपनियों की भूमि को एक रुपए माह के हिसाब से लीज पर दिया जाएगा.
क्या है बिजली कंपनियों के निजीकरण का मसौदा
- केंद्र सरकार द्वारा सौंपी गई स्टैंडर्ड बिडिंग डॉक्यूमेंट के मुताबिक मौजूदा बिजली कंपनियों की परिसंपत्तियों को निजी हाथों में सौंपा जाएगा.
- निजी कंपनियां एक रुपए माह के हिसाब से भूमि का उपयोग कर सकेंगी.
- निजी कंपनी पावर परचेज के एग्रीमेंट को यूज करेंगे. रेट ज्यादा होने पर एआरआर, एसयूएस में अंतर आने पर सब्सिडी सरकार को देनी होगी.
- लॉस कंपनी कम करती है तो उसका दो तिहाई हिस्सा निजी कंपनियों को दिया जाएगा.
- बल्क पावर परचेज पर सरकार सब्सिडी देगी. राज्य सरकार अगले 7 सालों तक निजी कंपनी को मदद देगी.
- बिजली कंपनी की पुरानी देन-दारियों का वहन राज्य सरकार ही करेगी.
- सबसे पहले फायदे में चल रही बिजली कंपनियों को निजी हाथों में सौंपा जाएगा. मध्य प्रदेश की पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी बाकी दो कंपनियों के मुकाबले फायदे में चल रही हैं.
घाटे से नहीं उबर पा रहीं बिजली कंपनियां
बिजली कंपनियों का गठन बिजली सेक्टर को घाटे से निकालने के लिए हुआ था. कांग्रेस शासनकाल में राज्य विद्युत मंडल होते थे. मंडल घाटे में चल रहे थे, इसलिए बिजली कंपनियों का गठन किया गया. अब बिजली कंपनियां भी विद्युत मंडल से ज्यादा कर्ज लेने लगीं हैं. यही वजह है कि घाटा नियंत्रण में नहीं आ पाया.15 वे वित्त आयोग ने भी राज्य सरकार को इन घाटों को लेकर चिंता जाहिर की है.
बिजली कंपनियों पर क्यों बढ़ता जा रहा है घाटा
बिजली कंपनियों का घाटा कम करने के लिए 2016 में उदय योजना लांच की गई थी. इसके तहत राज्य सरकार को बिजली सेक्टर का 75 फ़ीसदी कर्ज उठाकर खत्म करना था. प्रदेश सरकार ने बिजली कंपनियों का करीब 26055 करोड रुपए खर्च करने तय किया. राज्य सरकार ने अभी तक 7568 करोड़ की राशि को अंश पूंजी में परिवर्तित किया गया और 5122 करोड़ अनुदान के रूप में परिवर्तित किया गया है. लेकिन बिजली कंपनियों ने इतना ही कर्ज पर ले लिया. बिजली कंपनियों द्वारा लिए जा रहे लगातार कर्जे की गारंटी राज्य सरकार की ओर से दी गई. तेल कंपनियों द्वारा करीब 7000 करोड़ का कर्ज लिया गया है. बिजली कंपनियां लाइन लॉस पर अंकुश नहीं लगा सकीं हैं. लाइव स्कोर 2019-20 तक 15 फ़ीसदी तक लाने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी का लाइन लॉस 36.67 फ़ीसदी तक पहुंच गया. वहीं पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी का लाइन लॉस 30.87 फ़ीसदी है.
कांग्रेस ने साधा निशाना
उधर बिजली कंपनियों के निजीकरण को लेकर कांग्रेस ने बीजेपी पर निशाना साधा है. कांग्रेस प्रवक्ता भूपेंद्र गुप्ता के मुताबिक बीजेपी दशकों से तैयार किए गए संस्थानों को निजी हाथों में सौंपना चाहती है. इसी दिशा में बीजेपी बिजली कंपनियों का भी निजीकरण करने की ओर बढ़ रही है. बीजेपी सिर्फ कॉरपोरेट घरानों को फायदा पहुंचाना चाहती है. ईटीवी भारत ने इस संबंध में ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर से फोन पर बात करने की कोशिश की, लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाया.