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City of lakes: खतरे में भोपाल की 'शान'! अलार्मिंग हालात - झील संरक्षण प्रकोष्ठ

राजधानी भोपाल को 'सिटी ऑफ लेक्स' के नाम से जाना जाता है. मगर अब भोपाल की इसी पहचान पर खतरा है. यहां के तालाब धीरे-धीरे नालों में तब्दील होते जा रहे हैं. इनका गला घुट रहा है मगर किसी को परवाह नहीं. जानिए आखिर कौन हैं जिम्मेदार दम तोड़ते झील और तालाबों के लिए? पढ़िए पूरी खबर...

bhopal lake
तालाब में गंदगी
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Published : Dec 31, 2020, 6:05 PM IST

Updated : Dec 31, 2020, 6:17 PM IST

भोपाल। शहर का दूसरा नाम 'सिटी ऑफ लेक्स' है, यानी झीलों का शहर. भोपाल की देश में पहचान लबालब भरे तालाब हैं जिनकी सुंदरता लोगों को मोह लेती है. बड़ी झील दूर से ही शहर को एक अलग लुक देती है और इसे राजधानी का ताज भी कहते हैं. लेकिन आने वाले समय में तालाब पर ध्यान नहीं दिया गया, तो शहर का ये ताज गुमनाम हो जाएगा, क्योंकि शहर के ज्यादातर तालाबों की स्थिति दिन-प्रतिदिन बद से बदतर होती जा रही है. बड़ा तालाब, छोटा तालाब या फिर हम दूसरे तालाबों की बात करें, इन सभी तालाबों में बड़ी मात्रा में सीवरेज का गंदा पानी जा रहा है, जिसके चलते तालाब नाले में तब्दील होते जा रहे हैं. कमोबेश यही हालत बाकी के तालाबों का भी है.

खतरे में भोपाल की 'शान'!
  • खत्म होती शहर की खूबसूरती

करोड़ों रुपए खर्च होने के बावजूद भी तालाबों में सीवरेज का गंदा पानी जा रहा है. इससे तालाब प्रदूषित होते जा रहे हैं. हालांकि, तालाबों को गंदगी से बचाने के लिए प्लानिंग तो कर ली गई है, लेकिन जमीनी स्तर पर इसका काम ठप पड़ा हुआ है.

  • तालाबों में मिल रहे हैं करीब 50 नाले

शहर के 6 प्रमुख तालाबों में करीब 50 नाले मिल रहे हैं, जिसमें बड़े तालाब में 12, छोटे तलाब में 21, शाहपुरा लेक में तीन, सिद्दीक हसन तालाब में 8, मोतिया तालाब में तीन, बाग मुंशी हुसैन और सारंगपाणी तालाब में एक-एक नाले शामिल हैं. इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि शहर की विरासत कैसे धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है.

  • सीवेज प्लांट से जाता हैं गंदा पानी

रोजाना सीवेज प्लांट से 270 से 300 एमएलडी गंदा पानी जाता है. इसे साफ करने के लिए शहर में 10 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए गए हैं, जिसमें रोज 80 से 100 एमएलडी पानी ही ट्रीट हो पाता है. बाकी पानी तालाब और नाले में मिल जाता है.

  • बड़े तालाब में मिल रहे ये नाले

बड़े तालाब में फतेहगढ़ नाला, सीहोर नाका, बेहटा गांव, राहुल नगर, बोरवन पार्क, राजेंद्र नगर, इंदिरा नगर, संजय नगर से सीवेज का पानी आ रहा है. वहीं छोटे तालाब के पास सीवेज का गंदा पानी तालाब में ना मिले, इसको लेकर एक पंप हाउस बनाया जा रहा है, जो नियम के मुताबिक गलत है. तालाब के 50 मीटर के दायरे में कोई निर्माण नहीं होना चाहिए, लेकिन फिर भी 50 मीटर के दायरे के अंदर पंप हाउस बनाया जा रहा है, जिसको लेकर शिकायत भी की जा चुकी है.

  • तालाब में नहीं मिलेगा सीवेज का गंदा पानी

नगर निगम कमिश्नर वीएस चौधरी कोलसानी का कहना है कि एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) बनाने का काम चल रहा है. शिरीन नदी, शाहजहांनी पार्क, प्रोफेसर कॉलोनी, चार इमली पर एसटीपी को लेकर कार्य चल रहा है. इसके अलावा 6 और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का काम जल्द शुरू होना है. इसका उद्देश्य तालाबों में सीवेज का गंदा पानी नहीं मिलने देना है.

अगले 4 से 5 महीने में 9 एसटीपी प्लांट कंप्लीट होने के बाद सीवेज का पानी तालाब में नहीं मिलेगा. वहीं छोटे तालाब मे नियमों की धज्जियां उड़ाकर पंप हाउस बनाया जा रहा है. इस पर कमिश्नर का कहना है कि उनका मुख्य उद्देश्य सीवेज का पानी तालाब में नहीं मिलने देना है, जहां जगह मिलेगी वहीं एसटीपी प्लांट बनाया जाएगा.

शहर में 1 हजार 873 किमी सिविल लाइन बिछी हुई है, लेकिन 80 फीसदी से अधिक क्षेत्र में व्यवस्थित सीवेज नेटवर्क नहीं है. कॉलोनियों में सीवर चैंबर बनाकर उसे पास के नाले में छोड़ दिया गया है. करीब 15 साल पहले एडीबी प्रोजेक्ट में 130 किमी सीवेज लाइन बिछाई गई थी. इसके पहले भोज वेटलैंड प्रोजेक्ट में 86 किमी नेटवर्क बिछाया गया था, लेकिन दोनों को ही घरों से नहीं जोड़ा जा सका.

  • अलग-अलग योजना के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च

तालाब को साफ रखने के लिए अलग-अलग योजनाओं के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा चुके हैं. झील संरक्षण प्रकोष्ठ ने सीवेज रोकने के नाम पर करीब 60 करोड़ रुपए खर्च कर दिए हैं. इसके अलावा भोज वेटलैंड पर ढाई सौ करोड़ रुपए, सौंदर्यीकरण पर 100 करोड़ रुपये, कैचमेंट बचाने के लिए करीब 5 करोड़ रुपये और विसर्जन घाट बनाने पर लगभग 5 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं.

भोपाल। शहर का दूसरा नाम 'सिटी ऑफ लेक्स' है, यानी झीलों का शहर. भोपाल की देश में पहचान लबालब भरे तालाब हैं जिनकी सुंदरता लोगों को मोह लेती है. बड़ी झील दूर से ही शहर को एक अलग लुक देती है और इसे राजधानी का ताज भी कहते हैं. लेकिन आने वाले समय में तालाब पर ध्यान नहीं दिया गया, तो शहर का ये ताज गुमनाम हो जाएगा, क्योंकि शहर के ज्यादातर तालाबों की स्थिति दिन-प्रतिदिन बद से बदतर होती जा रही है. बड़ा तालाब, छोटा तालाब या फिर हम दूसरे तालाबों की बात करें, इन सभी तालाबों में बड़ी मात्रा में सीवरेज का गंदा पानी जा रहा है, जिसके चलते तालाब नाले में तब्दील होते जा रहे हैं. कमोबेश यही हालत बाकी के तालाबों का भी है.

खतरे में भोपाल की 'शान'!
  • खत्म होती शहर की खूबसूरती

करोड़ों रुपए खर्च होने के बावजूद भी तालाबों में सीवरेज का गंदा पानी जा रहा है. इससे तालाब प्रदूषित होते जा रहे हैं. हालांकि, तालाबों को गंदगी से बचाने के लिए प्लानिंग तो कर ली गई है, लेकिन जमीनी स्तर पर इसका काम ठप पड़ा हुआ है.

  • तालाबों में मिल रहे हैं करीब 50 नाले

शहर के 6 प्रमुख तालाबों में करीब 50 नाले मिल रहे हैं, जिसमें बड़े तालाब में 12, छोटे तलाब में 21, शाहपुरा लेक में तीन, सिद्दीक हसन तालाब में 8, मोतिया तालाब में तीन, बाग मुंशी हुसैन और सारंगपाणी तालाब में एक-एक नाले शामिल हैं. इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि शहर की विरासत कैसे धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है.

  • सीवेज प्लांट से जाता हैं गंदा पानी

रोजाना सीवेज प्लांट से 270 से 300 एमएलडी गंदा पानी जाता है. इसे साफ करने के लिए शहर में 10 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए गए हैं, जिसमें रोज 80 से 100 एमएलडी पानी ही ट्रीट हो पाता है. बाकी पानी तालाब और नाले में मिल जाता है.

  • बड़े तालाब में मिल रहे ये नाले

बड़े तालाब में फतेहगढ़ नाला, सीहोर नाका, बेहटा गांव, राहुल नगर, बोरवन पार्क, राजेंद्र नगर, इंदिरा नगर, संजय नगर से सीवेज का पानी आ रहा है. वहीं छोटे तालाब के पास सीवेज का गंदा पानी तालाब में ना मिले, इसको लेकर एक पंप हाउस बनाया जा रहा है, जो नियम के मुताबिक गलत है. तालाब के 50 मीटर के दायरे में कोई निर्माण नहीं होना चाहिए, लेकिन फिर भी 50 मीटर के दायरे के अंदर पंप हाउस बनाया जा रहा है, जिसको लेकर शिकायत भी की जा चुकी है.

  • तालाब में नहीं मिलेगा सीवेज का गंदा पानी

नगर निगम कमिश्नर वीएस चौधरी कोलसानी का कहना है कि एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) बनाने का काम चल रहा है. शिरीन नदी, शाहजहांनी पार्क, प्रोफेसर कॉलोनी, चार इमली पर एसटीपी को लेकर कार्य चल रहा है. इसके अलावा 6 और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का काम जल्द शुरू होना है. इसका उद्देश्य तालाबों में सीवेज का गंदा पानी नहीं मिलने देना है.

अगले 4 से 5 महीने में 9 एसटीपी प्लांट कंप्लीट होने के बाद सीवेज का पानी तालाब में नहीं मिलेगा. वहीं छोटे तालाब मे नियमों की धज्जियां उड़ाकर पंप हाउस बनाया जा रहा है. इस पर कमिश्नर का कहना है कि उनका मुख्य उद्देश्य सीवेज का पानी तालाब में नहीं मिलने देना है, जहां जगह मिलेगी वहीं एसटीपी प्लांट बनाया जाएगा.

शहर में 1 हजार 873 किमी सिविल लाइन बिछी हुई है, लेकिन 80 फीसदी से अधिक क्षेत्र में व्यवस्थित सीवेज नेटवर्क नहीं है. कॉलोनियों में सीवर चैंबर बनाकर उसे पास के नाले में छोड़ दिया गया है. करीब 15 साल पहले एडीबी प्रोजेक्ट में 130 किमी सीवेज लाइन बिछाई गई थी. इसके पहले भोज वेटलैंड प्रोजेक्ट में 86 किमी नेटवर्क बिछाया गया था, लेकिन दोनों को ही घरों से नहीं जोड़ा जा सका.

  • अलग-अलग योजना के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च

तालाब को साफ रखने के लिए अलग-अलग योजनाओं के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा चुके हैं. झील संरक्षण प्रकोष्ठ ने सीवेज रोकने के नाम पर करीब 60 करोड़ रुपए खर्च कर दिए हैं. इसके अलावा भोज वेटलैंड पर ढाई सौ करोड़ रुपए, सौंदर्यीकरण पर 100 करोड़ रुपये, कैचमेंट बचाने के लिए करीब 5 करोड़ रुपये और विसर्जन घाट बनाने पर लगभग 5 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं.

Last Updated : Dec 31, 2020, 6:17 PM IST
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