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Post Covid मरीजों की परेशानी बढ़ाएगा Pollution , कट चुके हैं 20 हजार से ज्यादा पेड़ - पर्यावरण दिवस पर खास

कोरोना की गंभीर बीमारी के बाद स्वस्थ हो चुके मरीजों के लिए प्रदूषण बड़ी समस्या बन सकता है. स्वस्थ हो चुके ऐसे लोग को प्रदूषण (Pollution) के चलते अस्थमा से जूझना पड़ सकता है. अनलाॅक के साथ के ही पाॅल्युशन का स्तर भी बढ़ने लगा है. तीन जून को एयर क्वालिटी इंडेक्ट माॅडरेट श्रेणी में पहुंच गया है.

Post Covid patient
पोस्ट कोविड पेशेंट
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Published : Jun 4, 2021, 10:25 PM IST

भोपाल। कोरोना की गंभीर बीमारी के बाद स्वस्थ हो चुके मरीजों (post covid patient) के लिए प्रदूषण बड़ी समस्या बन सकता है. स्वस्थ हो चुके ऐसे लोगों को प्रदूषण (Pollution) के चलते अस्थमा से जूझना पड़ सकता है. अनलाॅक के साथ के ही पाॅल्युशन का स्तर भी बढ़ने लगा है. तीन जून को एयर क्वालिटी इंडेक्ट माॅडरेट श्रेणी में पहुंच गया है. पर्यावरण विदों की मानें तो यह स्थिति पिछले सालों में शहर में पेड़ों की बेतहाशा कटाई से हुई है. पिछले वर्षों में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 20 हजार से ज्यादा बड़े पेड़ों को काटा गया है, जबकि वास्तविकता में यह आंकड़ा कई गुना ज्यादा है.

भोपाल में एयर क्वालिटी इंडेक्ट माॅडरेट श्रेणी में पहुंच गया है.

पाॅल्युशन से बचे कोरोना के गंभीर मरीज
कोरोना से प्रदेश भर में सात लाख 82 हजार 945 लोग संक्रमित हो चुके हैं. इसमें से कई पेशेंट को कोरोना से जंग जीतने के लिए लंबा इलाज कराना पड़ा. डाॅक्टर्स की मानें तो गंभीर रूप से कोरोना संक्रमित हो चुके ऐसे लोगों के लिए प्रदूषण से बड़ी समस्या हो सकती है. सीनियर डाॅक्टर जेपी पालीवाल के मुताबिक ऐसे मरीज अस्थमा से पीड़ित हो सकते हैं, लिहाजा ऐसे मरीजों को पाॅल्युशन से बचने के लिए मास्क का उपयोग करना चाहिए. सरकार को भी पाॅल्युशन स्तर में कमी लाने के लिए कदम उठाने चाहिए.

सरकारी रिकाॅर्ड में कटे 20 हजार पेड़
राजधानी भोपाल में निर्माण कार्यों के नाम पर शहर में बड़ी संख्या में पेड़ों को काटा गया है. शहर में स्मार्ट सिटी के नाम पर ही करीब सात हजार पेड़ों की बलि दी गई. इसके पहले नर्मदा जल परियोजना और दूसरे बड़े निर्माण कार्यों के लिए भी बड़ी संख्या में पेड़ों की कटाई हुई है. सामाजिक कार्यकर्ता अजय दुबे के मुताबिक पिछले कई वर्षों में सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक 20 हजार से ज्यादा पुराने पेड़ों को काटा गया, लेकिन वास्तविकता में इससे कई गुना ज्यादा पेड़ अवैध तरीके से काटे जा चुके हैं. प्रदेश में मध्यप्रदेश वृक्ष परिरक्षण अधिनियम 2001 कानून के मुताबिक यदि किसी वृक्ष को काटा जाता है, तो उससे चार गुना पौधा रोपण किया जाएगा, लेकिन यह पौधरोपण भी सिर्फ कागजों पर ही हुआ है. यही वजह है कि अब पिछले सालों के मुकाबले शहर में पाॅल्युशन का स्तर पर भी बढ़ा है.

प्रदूषण बढ़ा रहा कोरोना का खतरा
प्रदूषण का स्तर कोरोना के मरीजों के लिए भी मुसीबत बढ़ा रहा है. लाॅक डाउन खुलने के साथ ही शहर में पाॅल्युशन का स्तर भी एक बार फिर बढ़ने लगा है. 3 जून को शहर का एयर क्वालिटी इंडेक्स माॅडरेट श्रेणी में आ गया है. 3 जून को एक्यूआई स्तर 101 पहुंच गया है. आशंका जताई जा रही है कि आने वाले समय में पाॅल्युशन का स्तर और बढ़ सकता है.

36 साल बाद भी बारूद के ढेर पर भोपाल, आज तक नहीं हट सका जहरीला कचरा

शुद्ध आबोहवा को लेकर बढ़ी लोगों की चिंता
कोरोना की दूसरी लहर ने लोगों को भी शुद्ध आबोहवा को लेकर चिंता बढ़ा दी है. इसको देखते हुए लोगों में अब तुलसी के अलावा एयर प्यूरीफायर पौधों की डिमांड बढ़ गई है. शहर की गुलाब नर्सरी के उद्यान विकास अधिकारी बीएल शर्मा के मुताबिक लोग घरों में एरिका पाम, संसबेरिया, एग्लोनिकोरोना या, क्लोरो फाइटा, रिबन ग्रास, फर्न, स्पाइडर प्लांट जैसे पौधे लगा रहे हैं. हालांकि पर्यावरण विद् डाॅ. सुभाष पांडे के मुताबिक ऐसे पौधे घरों के अंदर की आबोहवा को बेहतर रख सकते हैं, लेकिन जब तक शहर में बड़े स्तर पर प्लांटेशन नहीं होता, तब तक शहर की आबोहवा नहीं सुधरेगी.

भोपाल। कोरोना की गंभीर बीमारी के बाद स्वस्थ हो चुके मरीजों (post covid patient) के लिए प्रदूषण बड़ी समस्या बन सकता है. स्वस्थ हो चुके ऐसे लोगों को प्रदूषण (Pollution) के चलते अस्थमा से जूझना पड़ सकता है. अनलाॅक के साथ के ही पाॅल्युशन का स्तर भी बढ़ने लगा है. तीन जून को एयर क्वालिटी इंडेक्ट माॅडरेट श्रेणी में पहुंच गया है. पर्यावरण विदों की मानें तो यह स्थिति पिछले सालों में शहर में पेड़ों की बेतहाशा कटाई से हुई है. पिछले वर्षों में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 20 हजार से ज्यादा बड़े पेड़ों को काटा गया है, जबकि वास्तविकता में यह आंकड़ा कई गुना ज्यादा है.

भोपाल में एयर क्वालिटी इंडेक्ट माॅडरेट श्रेणी में पहुंच गया है.

पाॅल्युशन से बचे कोरोना के गंभीर मरीज
कोरोना से प्रदेश भर में सात लाख 82 हजार 945 लोग संक्रमित हो चुके हैं. इसमें से कई पेशेंट को कोरोना से जंग जीतने के लिए लंबा इलाज कराना पड़ा. डाॅक्टर्स की मानें तो गंभीर रूप से कोरोना संक्रमित हो चुके ऐसे लोगों के लिए प्रदूषण से बड़ी समस्या हो सकती है. सीनियर डाॅक्टर जेपी पालीवाल के मुताबिक ऐसे मरीज अस्थमा से पीड़ित हो सकते हैं, लिहाजा ऐसे मरीजों को पाॅल्युशन से बचने के लिए मास्क का उपयोग करना चाहिए. सरकार को भी पाॅल्युशन स्तर में कमी लाने के लिए कदम उठाने चाहिए.

सरकारी रिकाॅर्ड में कटे 20 हजार पेड़
राजधानी भोपाल में निर्माण कार्यों के नाम पर शहर में बड़ी संख्या में पेड़ों को काटा गया है. शहर में स्मार्ट सिटी के नाम पर ही करीब सात हजार पेड़ों की बलि दी गई. इसके पहले नर्मदा जल परियोजना और दूसरे बड़े निर्माण कार्यों के लिए भी बड़ी संख्या में पेड़ों की कटाई हुई है. सामाजिक कार्यकर्ता अजय दुबे के मुताबिक पिछले कई वर्षों में सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक 20 हजार से ज्यादा पुराने पेड़ों को काटा गया, लेकिन वास्तविकता में इससे कई गुना ज्यादा पेड़ अवैध तरीके से काटे जा चुके हैं. प्रदेश में मध्यप्रदेश वृक्ष परिरक्षण अधिनियम 2001 कानून के मुताबिक यदि किसी वृक्ष को काटा जाता है, तो उससे चार गुना पौधा रोपण किया जाएगा, लेकिन यह पौधरोपण भी सिर्फ कागजों पर ही हुआ है. यही वजह है कि अब पिछले सालों के मुकाबले शहर में पाॅल्युशन का स्तर पर भी बढ़ा है.

प्रदूषण बढ़ा रहा कोरोना का खतरा
प्रदूषण का स्तर कोरोना के मरीजों के लिए भी मुसीबत बढ़ा रहा है. लाॅक डाउन खुलने के साथ ही शहर में पाॅल्युशन का स्तर भी एक बार फिर बढ़ने लगा है. 3 जून को शहर का एयर क्वालिटी इंडेक्स माॅडरेट श्रेणी में आ गया है. 3 जून को एक्यूआई स्तर 101 पहुंच गया है. आशंका जताई जा रही है कि आने वाले समय में पाॅल्युशन का स्तर और बढ़ सकता है.

36 साल बाद भी बारूद के ढेर पर भोपाल, आज तक नहीं हट सका जहरीला कचरा

शुद्ध आबोहवा को लेकर बढ़ी लोगों की चिंता
कोरोना की दूसरी लहर ने लोगों को भी शुद्ध आबोहवा को लेकर चिंता बढ़ा दी है. इसको देखते हुए लोगों में अब तुलसी के अलावा एयर प्यूरीफायर पौधों की डिमांड बढ़ गई है. शहर की गुलाब नर्सरी के उद्यान विकास अधिकारी बीएल शर्मा के मुताबिक लोग घरों में एरिका पाम, संसबेरिया, एग्लोनिकोरोना या, क्लोरो फाइटा, रिबन ग्रास, फर्न, स्पाइडर प्लांट जैसे पौधे लगा रहे हैं. हालांकि पर्यावरण विद् डाॅ. सुभाष पांडे के मुताबिक ऐसे पौधे घरों के अंदर की आबोहवा को बेहतर रख सकते हैं, लेकिन जब तक शहर में बड़े स्तर पर प्लांटेशन नहीं होता, तब तक शहर की आबोहवा नहीं सुधरेगी.

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