भोपाल। कमलनाथ सरकार ने प्रदेश की जनता को पानी का अधिकार देने का ऐलान किया है, आगामी बजट सत्र में पानी के अधिकार का विधेयक विधानसभा में पेश किया जाएगा. पानी के अधिकार को लेकर शुरू हुई कवायद पर सियासी पारा चढ़ने लगा है. कांग्रेस जहां इसे ऐतिहासिक और जन हितैषी कदम बता रही है, वहीं दूसरी तरफ बीजेपी इसे पब्लिसिटी स्टंट बता रही है. हालांकि सरकार प्रदेश की साढ़े सात करोड़ जनता को पानी का अधिकार देना चाहती है, लेकिन धरातल पर पानी के अधिकार को उतारना बड़ी चुनौती होगी.
पानी के अधिकार पर प्रदेश प्रवक्ता शोभा ओझा का कहना है कि जनता को पानी का अधिकार देने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता सामने आई है. 'राइट टू वाटर' योजना लागू करने के साथ मध्यप्रदेश ऐसा पहला और अकेला राज्य बनने जा रहा है, जोकि अपने नागरिकों के लिए पानी की न्यूनतम उपलब्धता सुनिश्चित कराएगी. इस अधिकार के लागू होने पर प्रदेश के हर नागरिक को न्यूनतम 55 लीटर स्वच्छ जल मिलने लगेगा. इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए दृढ़ संकल्पित कमलनाथ सरकार के प्रयासों की हर तरफ प्रशंसा हो रही है.
शोभा ओझा ने सरकार के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि इसके ठीक विपरीत पिछली सरकार की बलराम तालाब योजना जहां भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई थी, जिसके लिए केंद्र सरकार से बुंदेलखंड के नाम पर मिले पैकेज का बंदरबांट कर दिया गया था, उसी का परिणाम है कि बुंदेलखंड आज भी पानी की समस्या से जूझ रहा है. प्रदेश के नागरिकों को सुरक्षित जल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए सरकार की 'राइट टू वाटर' योजना का अकारण विरोध और उसके विरुद्ध आधारहीन दुष्प्रचार करने की बजाय बीजेपी को चाहिए कि वह प्रदेश की जनता में हित में उठाए गए ऐतिहासिक कदम का समर्थन करे.
वहीं बीजेपी प्रवक्ता नेहा बग्गा का कहना है कि 'राइट टू वाटर' सबका अधिकार है, लेकिन आज से एक साल पहले जहां मध्यदेश की स्थिति स्वर्णिम मध्यप्रदेश वाली थी. जो मुख्यमंत्री कमलनाथ के बाद विपरीत हो गई है. प्रदेश में बिजली की स्थिति देखिए, उनके आते ही बिजली कटौती शुरू हो गई. मुझे नहीं लगता कि ये सरकार हर व्यक्ति को पानी पहुंचाने में सफल होगी. ये नई-नई घोषणाएं और प्रयोग करने का काम सरकार कर रही है जोकि वास्तव में सिर्फ पब्लिसिटी स्टंट है.