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क्या कमलनाथ और दिग्विजय ने पुत्रमोह में चढ़ने दी सरकार की बलि ? - Former Chief Minister Digvijay Singh Jyotiraditya Scindia

सिंधिया पिछले काफी वक्त से कांग्रेस में उपेक्षा का शिकार हो रहे थे. कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जोड़ी उन्हें न तो प्रदेश की राजनीति में घुसने दे रही थी और ना ही राज्यसभा ही भेजने को तैयार थी. ऐसे में सवाल उठता है कि, क्या सिंधिया का बगावत के लिए मजबूर किया गया ?

Former Chief Minister Digvijay Singh
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह
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Published : Mar 11, 2020, 8:20 AM IST

Updated : Mar 11, 2020, 10:12 AM IST

भोपाल| मध्यप्रदेश में सियासी संकट के पीछे क्या भाजपा से ज्यादा असरदार कांग्रेस के अंदरखाने चंद नेताओं के बीच बना 'गेमप्लान' रहा ? क्या यह गेमप्लान राजनीति में बेटों को और ऊंचाइयों पर जाने की राह में खड़े सबसे बड़े कांटे को बाहर निकालने का रहा ?

इस बात से कांग्रेस के सूत्र भी इनकार नहीं करते. उनका कहना है कि, एक रणनीति के तहत सिंधिया को पार्टी से बगावत करने के लिए मजबूर कर दिया गया, नहीं तो सिंधिया ने ऐसी शर्ते नहीं रखी थीं, जिन्हें पूरा नहीं किया जा सकता था.

सूत्रों का कहना है कि, मुख्यमंत्री कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह चाहते तो सरकार पर छाए संकट के बदल को दूर कर सकते थे. सवाल एक राज्यसभा सीट का ही तो था. अगर पहली वरीयता वाली राज्यसभा सीट ज्योतिरादित्य सिंधिया को मिल जाती, तो वे बागी तेवर न अपनाते. मगर इस सीट की राह में एक बार फिर दिग्विजय सिंह रोड़ा बनकर खड़े हो गए, जिन पर आरोप लगते रहे है कि, उन्होंने ही सिंधिया को प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनने दिया.

मध्यप्रदेश के घटनाक्रम को देखते हुए राजनीतिक विश्लेषकों को ऐसा लगता है कि, कमलनाथ ने सरकार को बचाने की उस तरह से कोशिशें नहीं की जिस तरह से कर सकते थे. सिंधिया को सोनिया से भी मिलने नहीं दिया गया.

इससे पहले भी कई मौकों पर ज्योतिरादित्य सिंधिया को जलील करने की कोशिश हुई. उन्हें पार्टी में इतना तंग कर दिया गया कि, कभी गांधी परिवार खासतौर से राहुल के बेहद वफादार रहे सिंधिया को आखिरकार कांग्रेस को ठोकर मारने के लिए मजबूर होना पड़ा.

ज्योतिरादित्य के करीबियों का मानना है कि, कांग्रेस छोड़ने का फैसला इतना आसान नहीं था. दरअसल, कभी राहुल गांधी की टीम के खास सदस्यों में रहे जिस सिंधिया की पूरी कांग्रेस में तूती बोलती थी, वो अपने ही राज्य की राजनीति में बेगाने हो चले थे.

पार्टी सूत्रों का कहना है कि, दिसंबर 2018 में कांग्रेस विधानसभा चुनाव जीती, तो इसके पीछे सिंधिया की जबरदस्त कैंपेनिंग को श्रेय दिया जाने लगा. इसके बाद सिंधिया को मुख्यमंत्री पद का प्रमुख दावेदार माना जा रहा था.

लेकिन पार्टी नेतृत्व ने उन पर अनुभवी कमलनाथ को तरजीह दी. मुख्यमंत्री बनने से चूक जाने के बाद सिंधिया की नजर प्रदेश अध्यक्ष के पद पर टिक गई. 'एक व्यक्ति एक पद' की परंपरा के मुताबिक फिर माना जाने लगा कि मुख्यमंत्री कमलनाथ सिंधिया के लिए प्रदेश अध्यक्ष का पद छोड़ सकते हैं. महीनों इंतजार के बाद भी वह दिन नहीं आया, जब सिंधिया पार्टी में कमजोर पड़े तो उनके समर्थक विधायक और अन्य कार्यकर्ता भी अपनी ही सरकार में उपेक्षित महसूस करने लगे.

सिंधिया समर्थकों को लगा कि ग्वालियर के 'महाराज' के हाथ प्रदेश की बागडोर आ जाने के बाद वह कमलनाथ पर दबाव बनाने में सफल हो सकते थे. दिग्विजय और कमलनाथ भी यह जानते थे कि, सिंधिया के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद उन्हें संगठन के दबाव में सरकार चलानी पड़ेगी. ऐसे में सिंधिया की कोशिश कामयाब नहीं हुई.

सिंधिया न मुख्यमंत्री बन पाए और न ही प्रदेश अध्यक्ष. अब सिंधिया को लगा कि, राज्यसभा के रास्ते जाकर दिल्ली की राजनीत फिर से की जाए. मध्यप्रदेश में कुल तीन राज्य सभा सीटों का 26 मार्च को चुनाव होना है. इसमें प्रथम वरीयता के वोटों से कांग्रेस और भाजपा की एक- एक सीट पर जीत तय है और लड़ाई तीसरी सीट के लिए है.

पार्टी सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस ने सिंधिया को प्रथम वरीयता वाली सुरक्षित सीट देने से इनकार कर दिया. दूसरी सीट पर लड़ाई खतरे से खाली नहीं थी. सूत्रों का ये भी कहना है कि, पार्टी ने उन्हें छत्तीसगढ़ से टिकट ऑफर किया, मगर सिंधिया जाने को तैयार नहीं हुए.

बेटों को आगे बढ़ाने का प्लान :

सूत्रों का कहना है कि, ज्योतिरादित्य की राह में समय-समय पर मुश्किलें खड़ी कर उन्हें पार्टी से बगावत करने को मजबूर कर दिया गया. दरअसल, कमलनाथ और दिग्विजय सिंह दोनों उम्र के कारण सियासत के आखिरी दौर में हैं. दोनों नेताओं ने अपने बेटों को भले ही मध्य प्रदेश की राजनीति में स्थापित कर दिया है, मगर उनमें असुरक्षा का बोध भी है.

कमलनाथ अपने बेटे नकुलनाथ को अपनी परंपरागत छिंदवाड़ा सीट से सांसद बनाकर राजनीतिक वारिस बना चुके हैं. वहीं दिग्विजय के बेटे जयवर्धन सिंह अभी की कमलनाथ सरकार में मंत्री रहे.

कमलनाथ और दिग्विजय के रिटायर होने के बाद सिंधिया का रास्ता मध्यप्रदेश में हमेशा के लिए खुल जाता और इसका असर दोनों नेताओं के बेटों की आगे की महत्वाकांक्षाओं पर पड़ सकता था. इसलिए, दूर तक नजर रखते हुए दिग्विजय और कमलनाथ ने सिंधिया की विदाई की पटकथा रच दी. कांग्रेस के कई सूत्रों और राजनीतिक विश्लेष्कों का मानना है कि, अब आगे की राजनीति में नकुलनाथ और जयवर्धन के लिए मैदान खुला है.

भोपाल| मध्यप्रदेश में सियासी संकट के पीछे क्या भाजपा से ज्यादा असरदार कांग्रेस के अंदरखाने चंद नेताओं के बीच बना 'गेमप्लान' रहा ? क्या यह गेमप्लान राजनीति में बेटों को और ऊंचाइयों पर जाने की राह में खड़े सबसे बड़े कांटे को बाहर निकालने का रहा ?

इस बात से कांग्रेस के सूत्र भी इनकार नहीं करते. उनका कहना है कि, एक रणनीति के तहत सिंधिया को पार्टी से बगावत करने के लिए मजबूर कर दिया गया, नहीं तो सिंधिया ने ऐसी शर्ते नहीं रखी थीं, जिन्हें पूरा नहीं किया जा सकता था.

सूत्रों का कहना है कि, मुख्यमंत्री कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह चाहते तो सरकार पर छाए संकट के बदल को दूर कर सकते थे. सवाल एक राज्यसभा सीट का ही तो था. अगर पहली वरीयता वाली राज्यसभा सीट ज्योतिरादित्य सिंधिया को मिल जाती, तो वे बागी तेवर न अपनाते. मगर इस सीट की राह में एक बार फिर दिग्विजय सिंह रोड़ा बनकर खड़े हो गए, जिन पर आरोप लगते रहे है कि, उन्होंने ही सिंधिया को प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनने दिया.

मध्यप्रदेश के घटनाक्रम को देखते हुए राजनीतिक विश्लेषकों को ऐसा लगता है कि, कमलनाथ ने सरकार को बचाने की उस तरह से कोशिशें नहीं की जिस तरह से कर सकते थे. सिंधिया को सोनिया से भी मिलने नहीं दिया गया.

इससे पहले भी कई मौकों पर ज्योतिरादित्य सिंधिया को जलील करने की कोशिश हुई. उन्हें पार्टी में इतना तंग कर दिया गया कि, कभी गांधी परिवार खासतौर से राहुल के बेहद वफादार रहे सिंधिया को आखिरकार कांग्रेस को ठोकर मारने के लिए मजबूर होना पड़ा.

ज्योतिरादित्य के करीबियों का मानना है कि, कांग्रेस छोड़ने का फैसला इतना आसान नहीं था. दरअसल, कभी राहुल गांधी की टीम के खास सदस्यों में रहे जिस सिंधिया की पूरी कांग्रेस में तूती बोलती थी, वो अपने ही राज्य की राजनीति में बेगाने हो चले थे.

पार्टी सूत्रों का कहना है कि, दिसंबर 2018 में कांग्रेस विधानसभा चुनाव जीती, तो इसके पीछे सिंधिया की जबरदस्त कैंपेनिंग को श्रेय दिया जाने लगा. इसके बाद सिंधिया को मुख्यमंत्री पद का प्रमुख दावेदार माना जा रहा था.

लेकिन पार्टी नेतृत्व ने उन पर अनुभवी कमलनाथ को तरजीह दी. मुख्यमंत्री बनने से चूक जाने के बाद सिंधिया की नजर प्रदेश अध्यक्ष के पद पर टिक गई. 'एक व्यक्ति एक पद' की परंपरा के मुताबिक फिर माना जाने लगा कि मुख्यमंत्री कमलनाथ सिंधिया के लिए प्रदेश अध्यक्ष का पद छोड़ सकते हैं. महीनों इंतजार के बाद भी वह दिन नहीं आया, जब सिंधिया पार्टी में कमजोर पड़े तो उनके समर्थक विधायक और अन्य कार्यकर्ता भी अपनी ही सरकार में उपेक्षित महसूस करने लगे.

सिंधिया समर्थकों को लगा कि ग्वालियर के 'महाराज' के हाथ प्रदेश की बागडोर आ जाने के बाद वह कमलनाथ पर दबाव बनाने में सफल हो सकते थे. दिग्विजय और कमलनाथ भी यह जानते थे कि, सिंधिया के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद उन्हें संगठन के दबाव में सरकार चलानी पड़ेगी. ऐसे में सिंधिया की कोशिश कामयाब नहीं हुई.

सिंधिया न मुख्यमंत्री बन पाए और न ही प्रदेश अध्यक्ष. अब सिंधिया को लगा कि, राज्यसभा के रास्ते जाकर दिल्ली की राजनीत फिर से की जाए. मध्यप्रदेश में कुल तीन राज्य सभा सीटों का 26 मार्च को चुनाव होना है. इसमें प्रथम वरीयता के वोटों से कांग्रेस और भाजपा की एक- एक सीट पर जीत तय है और लड़ाई तीसरी सीट के लिए है.

पार्टी सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस ने सिंधिया को प्रथम वरीयता वाली सुरक्षित सीट देने से इनकार कर दिया. दूसरी सीट पर लड़ाई खतरे से खाली नहीं थी. सूत्रों का ये भी कहना है कि, पार्टी ने उन्हें छत्तीसगढ़ से टिकट ऑफर किया, मगर सिंधिया जाने को तैयार नहीं हुए.

बेटों को आगे बढ़ाने का प्लान :

सूत्रों का कहना है कि, ज्योतिरादित्य की राह में समय-समय पर मुश्किलें खड़ी कर उन्हें पार्टी से बगावत करने को मजबूर कर दिया गया. दरअसल, कमलनाथ और दिग्विजय सिंह दोनों उम्र के कारण सियासत के आखिरी दौर में हैं. दोनों नेताओं ने अपने बेटों को भले ही मध्य प्रदेश की राजनीति में स्थापित कर दिया है, मगर उनमें असुरक्षा का बोध भी है.

कमलनाथ अपने बेटे नकुलनाथ को अपनी परंपरागत छिंदवाड़ा सीट से सांसद बनाकर राजनीतिक वारिस बना चुके हैं. वहीं दिग्विजय के बेटे जयवर्धन सिंह अभी की कमलनाथ सरकार में मंत्री रहे.

कमलनाथ और दिग्विजय के रिटायर होने के बाद सिंधिया का रास्ता मध्यप्रदेश में हमेशा के लिए खुल जाता और इसका असर दोनों नेताओं के बेटों की आगे की महत्वाकांक्षाओं पर पड़ सकता था. इसलिए, दूर तक नजर रखते हुए दिग्विजय और कमलनाथ ने सिंधिया की विदाई की पटकथा रच दी. कांग्रेस के कई सूत्रों और राजनीतिक विश्लेष्कों का मानना है कि, अब आगे की राजनीति में नकुलनाथ और जयवर्धन के लिए मैदान खुला है.

Last Updated : Mar 11, 2020, 10:12 AM IST
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