भोपाल। मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले की रहने वाली भूरी बाई को हाल ही में पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया है. भूरी बाई मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के पिटोल गांव में जन्मी थी लेकिन शादी के बाद 17 साल की उम्र में भोपाल आ गई और भारत भवन से मजदूरी के साथ चित्रकला की शुरुआत की. आज उनकी कला के लिए उन्हें देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी जाना जाता है. कला प्रेमी भूरी बाई ने ईटीवी भारत से अपने जीवन के संघर्ष को साझा किया.
संघर्ष से भरा रहा बचपन
पद्मश्री भूरी बाई ने बताया कि उन्हें बचपन से ही चित्रकला का शौक था. वह अपने घर की दिवारों पर भी चित्र बनाती थी. लेकिन कभी पुरस्कार की अपेक्षा नहीं की थी. भूरी बाई ने बताया कि उन्होंने बचपन से ही जीवन में संघर्ष देखा है. उन्होंने बताया जब वह दस साल की थी जब वह अपने परिवार के साथ मजदूरी करने बाहर गांव में जाया करती थी. एक दिन उनके घर में आग लग गई थी. उन्होंने बताया आग में सब कुछ जल गया था. गाय, बकरी भी आग में झुलस गई थी. जिसके बाद घर में खाने के भी लाले पड़ गए थे. भूरी बाई ने बताया वह जीवन का सबसे कठिन दौर था जब हम भूखे सो जाया करते थे. लेकिन माता-पिता ने हिम्मत बंधाई और हम भाई बहनों ने मजदूरी कर एक दूसरे को सहारा दिया.
17 वर्ष की थी जब शादी हुई
भूरी बाई ने बताया था वे 17 साल की थी जब उनकी शादी हुई. शादी के बाद वे भोपाल आई. उन्होंने बताया उनके पति उन्हें मजदूरी करने के लिए भोपाल लेकर आए थे. भोपाल के भारत भवन में मजदूरी के दौरान उनके गुरु जय स्वामीनाथन से उनकी मुलाकात हुई और उन्होंने भूरी बाई को चित्र बनाने को कहा भूरी बाई बताती हैं कि उस दौरान वे बेहद घबरा गई थी. क्योंकि उन्होंने आज तक कागज पर ही चित्र बनाया था. दीवार पर चित्र बनाना उनके लिए मुश्किल था. दीवार पर किस तरह के कलर इस्तेमाल होते हैं. यह भी नहीं पता था ब्रश चलाना भी नहीं आता था लेकिन उस दौरान भूरी बाई की बहन उनके साथ थी. जिन्होंने उन्हें चित्र बनाने के लिए प्रेरित किया और भूरी बाई ने गांव में जो संघर्ष देखा. उसे चित्र में उतार दिया और वह उनके गुरु जय स्वामीनाथन को बेहद पसंद आया और उन्होंने भूरी बाई को भारत भवन में चित्रकारी करने के लिए कलर और कैनवास दिए उन चित्र के माध्यम से भूरी बाई ने पैसे कमाना शुरू किया.
एक वक्त ऐसा आया जब जीने की उम्मीद खत्म हो गई थी - भूरी बाई
पद्मश्री भूरी बाई ने बताया कि उन्होंने बचपन से ही जीवन में संघर्ष देखे हैं. शादी के बाद भी वह मजदूरी करती थी और एक वक्त ऐसा आया कि जब वह मजदूरी के दौरान बीमार पड़ गई और उनके शरीर ने काम करना बंद कर दिया. चार माह तक भूरी बाई उठ नहीं पाई. उन्होंने बताया कि उस दौरान दवाई और इलाज के पैसे भी नहीं थे ऐसे में वह भारत भवन में तत्कालीन निदेशक कपिल तिवारी के पास गई और उनसे उन्होंने मदद मांगी तब कपिल तिवारी ने भूरी बाई का इलाज कराया और उनको कलाकार के रूप में जनजातीय संग्रहालय में नौकरी दी. साल 2000 से भूरी बाई जनजातीय संग्रहालय में कलाकार के रूप में काम कर रही है. वह अपने जीवन का श्रेय कपिल तिवारी को देती है. बता दे कपिल तिवारी को भी भूरी बाई के साथ पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया है.
अपनी जीवन शैली को चित्रो में उकेरा
जनजातीय संग्रहालय में 17 फीट की दीवाल पर भूरी बाई ने अपने जीवन की कहानी को उकेरा है. इस दीवार पर भूरी बाई ने अपने जन्म से लेकर शिखर सम्मान तक की तस्वीरों को बनाया है. भूरी बाई ने बताया जब जनजातीय संग्रहालय में उनकी नौकरी लगी. तब उन्होंने चित्रों में गांव से लेकर भारत भवन तक की यात्रा को उकेरा जो पहली तस्वीर, उन्होंने भारत भवन में बनाई थी उस तस्वीर को भी जनजातीय संग्रहालय में अपनी जीवन शैली के चित्रों के साथ. भूरी बाई ने बनाया है यह दीवार जनजातीय संग्रहालय में आकर्षण का केंद्र है और लोग इसे बेहद पसंद करते हैं.
भारत भवन में होगी मुख्य अतिथि
जिस भारत भवन से भूरी बाई ने अपने जीवन की एक नई शुरुआत की थी. जहां से मजदूरी कर अपनी कला को निखारा था. आज उसी भारत भवन में भूरी बाई को मुख्य अतिथि के रुप में निमंत्रण दिया गया है. दरअसल 13 फरवरी को भारत भवन का स्थापना दिवस है. भारत भवन की स्थापना दिवस पर इस वर्ष मुख्य अतिथि के रुप में भूरी बाई को निमंत्रण दिया गया है. भूरी बाई ने कहा यह उनके लिए गौरव की बात है और यह सब एक सपने जैसा है.
पिथौरा की खासियत
पद्मश्री भूरी बाई अपनी चित्रकारी के लिए कागज और कैनवास का इस्तेमाल करने वाली पहली महिला भील कलाकार है. भूरी बाई ने अपना सफर एक समकालीन भील कलाकार के रूप में ही शुरू किया. उनके चित्रों में जंगल में जानवर वन और इसके वृक्षों की शांति तथा गाटला भील देवी देवता पोशाक गहने और टूटे झोपड़िया होती है, बुरी भाई बताती है या चित्रकला भील व नायक जनजाति के लोगों द्वारा दीवारों पर बनाई जाती है. ऐसा माना जाता है कि यह शांति और खुशहाली का प्रतीक है. इन चित्रों में भील जनजाति के रोजमर्रा के जीवन पशु, पक्षी, पेड़ और त्योहार के प्रसंग अंकित किए जाते हैं. इसमें चित्र के बीच में एक छोटा आयताकार जानवर बनाया जाता है. जिसमें उंगलियों से छोटी छोटी बिंदी लगाई जाती है. उन्होंने बताया इनके लिए पिथोरा बाबा अति विशिष्ट वह पूजनीय होते हैं जो अपने घरों में अधिकाधिक सुरक्षित रखते हैं वह समाज में अति सम्मानीय होते हैं.
कला के लिए पहला सम्मान 1986 में मिला
पद्मश्री भूरी बाई बताती है कि कला के क्षेत्र में उन्हें पहला शिखर सम्मान 1986 में मिला. उसके बाद 1998 में मध्य प्रदेश सरकार ने उन्हें देवी अहिल्या सम्मान दिया और यह सम्मान मिलने के बाद उन्हें विदेश में पेंटिंग बनाने का मौका मिला. भूरी बाई 2018 में अपने चित्र कला का प्रदर्शन करने अमेरिका गई उसके बाद कई सम्मान जिला स्तर और राज्य स्तर पर मिलते रहे, लेकिन पद्मश्री मिलेगा इसकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी. भूरी बाई ने कहा मैं बहुत खुश हूं कि सरकार ने मेरी इस कला को पहचान दी आगे आने वाली पीढ़ी को भी मौका मिले. उन्होंने कहा कला को सम्मान मिलना चाहिए.