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HINDI नवजागरण के चिंतक माधवराव सप्रे की जीवन यात्रा और साहित्य की प्रदर्शनी का आयोजन

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Published : Jun 19, 2021, 3:09 PM IST

Updated : Jun 19, 2021, 4:39 PM IST

हिंदी नवजागरण के पुरोधा माधवराव सप्रे की जीवन यात्रा और साहित्य की प्रदर्शनी में कई शहरों में आयोजित की गई.

madhavrao sapre
माधवराव सप्रे

भोपाल। राजद्रोह का मुकदमा झेलने वाले हिंदी के पहले पत्रकार पंडित माधवराव सप्रे की 150 वी जंयती आज है। मराठी होकर भी हिंदी भाषा पर उनकी अच्छी पकड़ ने हिंदी को समृद्ध किया. माधवराव सप्रे ने लेखन, समाज सुधार और आजादी की अलख जगाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. हिन्दी नवजागरण के पुरोधा पं. माधवराव सप्रे के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केन्द्रित चित्र प्रदर्शनी, शनिवार से भोपाल स्थित सप्रे संग्रहालय में आरंभ हो गई है. इसके साथ ही समूचा सप्रे साहित्य भी प्रदर्शनी में रखा गया है. यह प्रदर्शनी पूरे वर्ष भर खुली रहेगी.

पंडित माधवराव सप्रे की जीवनी पर प्रदर्शनी
चित्र प्रदर्शनी से बताए सप्रेजी के 150 साल

पं. माधवराव सप्रे के कालजयी कृतित्व को समर्पित एकमात्र स्मारक सप्रे संग्रहालय की. इस प्रदर्शनी में 15 चित्रों के माध्यम से ‘छत्तीसगढ़ मित्र’, ‘हिन्दी केसरी’, ‘हिन्दी ग्रन्थमाला’, ‘कर्मवीर’ के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को प्रस्तुत किया गया. ‘दासबोध’, ‘गीता रहस्य’ और ‘महाभारत मीमांसा’ के अनुवाद और हिन्दी में अर्थशास्त्र के चिंतन की परंपरा, समालोचना शास्त्र के विकास और हिन्दी के उन्नयन में सप्रेजी की भूमिका पर आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, एक भारतीय आत्मा माखनलाल चतुर्वेदी और राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन की संदर्भ टिप्पणियों को उकेरा गया. सप्रे संग्रहालय की निदेशक डॉ. मंगला अनुजा के मुताबिक, 19 जून को सप्रे के तपस्वी जीवन के 150 साल पूरे हो रहे हैं.

Pandit Madhavrao Sapre
पंडित माधवराव सप्रे

शहीद साधु-संतों का स्मारक बनाने की मांग हुई तेज, संतों ने सरकार के खिलाफ खोला मोर्चा

लेखक के साथ भी थे पत्रकार

पं. माधवराव सप्रे लेखक होने के साथ पत्रकार भी थे. वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के दौरान उस पत्रकारिता के पुरोधा थे, जो साहित्य और संवेदना के साथ जन हितैषी साबित हुई. माधवराव सप्रे को तहसीलदार के रूप में सरकारी नौकरी मिली लेकिन देशभक्ति के कारण उन्होंने यह नौकरी छोड़ दी.

Pandit Madhavrao Sapre
पंडित माधवराव सप्रे

दमोह के पथरिया में हुआ था जन्म

सन 1900 में जब छत्तीसगढ़ में प्रिंटिंग प्रेस नहीं थे. तब बिलासपुर जिले के पेंड्रा से छत्तीसगढ़ मित्र नामक मासिक पत्रिका निकाली. सप्रे संग्रहालय भोपाल में माधव राव सप्रे के पोते अशोक सप्रे ने दो साल पहले उनकी लिखी पांडुलिपियों को भेंट किया था. निष्काम कर्मयोगी पं. माधवराव सप्रे की जन्मभूमि, दमोह के पथरिया में 19 जून 1871 में हुआ था. इसी सिलसिले में भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय की ओर से सार्द्ध शती समारोह का आयोजन किया जा रहा है. भारत की आजादी के 75 वर्ष उत्सव की श्रृंखला में माधवराव सप्रे सार्द्ध शती कार्यक्रम भोपाल, दिल्ली, पेण्ड्रा, रायपुर, नागपुर और जबलपुर में भी आयोजित किए जाएंगे.

भोपाल। राजद्रोह का मुकदमा झेलने वाले हिंदी के पहले पत्रकार पंडित माधवराव सप्रे की 150 वी जंयती आज है। मराठी होकर भी हिंदी भाषा पर उनकी अच्छी पकड़ ने हिंदी को समृद्ध किया. माधवराव सप्रे ने लेखन, समाज सुधार और आजादी की अलख जगाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. हिन्दी नवजागरण के पुरोधा पं. माधवराव सप्रे के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केन्द्रित चित्र प्रदर्शनी, शनिवार से भोपाल स्थित सप्रे संग्रहालय में आरंभ हो गई है. इसके साथ ही समूचा सप्रे साहित्य भी प्रदर्शनी में रखा गया है. यह प्रदर्शनी पूरे वर्ष भर खुली रहेगी.

पंडित माधवराव सप्रे की जीवनी पर प्रदर्शनी
चित्र प्रदर्शनी से बताए सप्रेजी के 150 साल

पं. माधवराव सप्रे के कालजयी कृतित्व को समर्पित एकमात्र स्मारक सप्रे संग्रहालय की. इस प्रदर्शनी में 15 चित्रों के माध्यम से ‘छत्तीसगढ़ मित्र’, ‘हिन्दी केसरी’, ‘हिन्दी ग्रन्थमाला’, ‘कर्मवीर’ के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को प्रस्तुत किया गया. ‘दासबोध’, ‘गीता रहस्य’ और ‘महाभारत मीमांसा’ के अनुवाद और हिन्दी में अर्थशास्त्र के चिंतन की परंपरा, समालोचना शास्त्र के विकास और हिन्दी के उन्नयन में सप्रेजी की भूमिका पर आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, एक भारतीय आत्मा माखनलाल चतुर्वेदी और राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन की संदर्भ टिप्पणियों को उकेरा गया. सप्रे संग्रहालय की निदेशक डॉ. मंगला अनुजा के मुताबिक, 19 जून को सप्रे के तपस्वी जीवन के 150 साल पूरे हो रहे हैं.

Pandit Madhavrao Sapre
पंडित माधवराव सप्रे

शहीद साधु-संतों का स्मारक बनाने की मांग हुई तेज, संतों ने सरकार के खिलाफ खोला मोर्चा

लेखक के साथ भी थे पत्रकार

पं. माधवराव सप्रे लेखक होने के साथ पत्रकार भी थे. वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के दौरान उस पत्रकारिता के पुरोधा थे, जो साहित्य और संवेदना के साथ जन हितैषी साबित हुई. माधवराव सप्रे को तहसीलदार के रूप में सरकारी नौकरी मिली लेकिन देशभक्ति के कारण उन्होंने यह नौकरी छोड़ दी.

Pandit Madhavrao Sapre
पंडित माधवराव सप्रे

दमोह के पथरिया में हुआ था जन्म

सन 1900 में जब छत्तीसगढ़ में प्रिंटिंग प्रेस नहीं थे. तब बिलासपुर जिले के पेंड्रा से छत्तीसगढ़ मित्र नामक मासिक पत्रिका निकाली. सप्रे संग्रहालय भोपाल में माधव राव सप्रे के पोते अशोक सप्रे ने दो साल पहले उनकी लिखी पांडुलिपियों को भेंट किया था. निष्काम कर्मयोगी पं. माधवराव सप्रे की जन्मभूमि, दमोह के पथरिया में 19 जून 1871 में हुआ था. इसी सिलसिले में भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय की ओर से सार्द्ध शती समारोह का आयोजन किया जा रहा है. भारत की आजादी के 75 वर्ष उत्सव की श्रृंखला में माधवराव सप्रे सार्द्ध शती कार्यक्रम भोपाल, दिल्ली, पेण्ड्रा, रायपुर, नागपुर और जबलपुर में भी आयोजित किए जाएंगे.

Last Updated : Jun 19, 2021, 4:39 PM IST
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