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जनजातीय संग्रहालय में निवाड़ी गायन, भगोरिया- डोहा नृत्य की शानदार प्रस्तुति

मध्य प्रदेश जनजातीय संग्रहालय में आयोजित एकाग्र 'गमक' श्रृंखला के अंतर्गत निवाड़ी गायन, भील जनजाति के भगोरिया और डोहा नृत्य की शानदार प्रस्तुति दी गई.

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Published : Dec 2, 2020, 7:27 AM IST

Niwari song and Doha dance performance
निवाड़ी गायन और डोहा नृत्य की प्रस्तुति

भोपाल। मध्य प्रदेश शासन और संस्कृति विभाग द्वारा जनजातीय संग्रहालय में आयोजित एकाग्र 'गमक' श्रृंखला के अंतर्गत कई नृत्य और संगीत कार्यक्रमों की प्रस्तुति दी गई. इस मौके पर निवाड़ी गायन, भील जनजाति के भगोरिया और डोहा नृत्य के खूबसूरत रंग देखने को मिले.

Niwari song and Doha dance performance
निवाड़ी गायन और डोहा नृत्य की प्रस्तुति

पहली प्रस्तुति

प्रस्तुति की शुरुआत पूर्णिमा चतुर्वेदी द्वारा निमाड़ी गायन से हुई, जिसमें गणेश वंदना, नर्मदा भजन, संस्कार गीत, चौमासा ॠतु गीत, बन्नी गीत और नृत्य गीत शामिल थे. पूर्णिमा चतुर्वेदी विगत 23 वर्षों से लोकसंगीत से जुड़ी हैं. देश के कई प्रतिष्ठित मंचों पर अपने गायन की प्रस्तुति दे चुकी हैं. यहीं नहीं अखिल भारतीय नार्मदीय ब्राम्हण समाज द्वारा नार्मदीय गौरव सम्मान, मालवा लोक कला और संस्कृति संस्थान उज्जैन द्वारा बतौर निमाड़ी लोक कलाकार सहित अन्य कई सम्मान प्राप्त कर चुकी हैं.

दूसरी प्रस्तुति

दूसरी प्रस्तुति इन्दर सिंह द्वारा भील जनजाति के भगोरिया और डोहा नृत्य की हुई. भील झाबुआ, अलीराजपुर, धार और बड़वानी क्षेत्र में निवास करने वाली प्रमुख जनजाति है. फागुन मास में होली के 7 दिन पहले से आयोजित होने वाले हाटों में पूरे उत्साह और उमंग के साथ भील युवक और युवतियां इसमें हिस्सा लेती हैं. पारंपरिक रंग-बिरंगे कपड़े और आभूषण के साथ ये नृत्य किया जाता है, जिसे भगोरिया नृत्य कहते हैं.

डोहा का महत्व

डोहा मान्यता से संबंधित उत्सव है. मनोकामना पूर्ण होने पर दिवाली के समय 5 दिन तक घर-घर जाकर डोहा खेला जाता है. गांव के युवक-युवतियां रात में घर-घर जाकर ढोल, थाली और पावली की धुन पर नृत्य और गान करते हैं.

भोपाल। मध्य प्रदेश शासन और संस्कृति विभाग द्वारा जनजातीय संग्रहालय में आयोजित एकाग्र 'गमक' श्रृंखला के अंतर्गत कई नृत्य और संगीत कार्यक्रमों की प्रस्तुति दी गई. इस मौके पर निवाड़ी गायन, भील जनजाति के भगोरिया और डोहा नृत्य के खूबसूरत रंग देखने को मिले.

Niwari song and Doha dance performance
निवाड़ी गायन और डोहा नृत्य की प्रस्तुति

पहली प्रस्तुति

प्रस्तुति की शुरुआत पूर्णिमा चतुर्वेदी द्वारा निमाड़ी गायन से हुई, जिसमें गणेश वंदना, नर्मदा भजन, संस्कार गीत, चौमासा ॠतु गीत, बन्नी गीत और नृत्य गीत शामिल थे. पूर्णिमा चतुर्वेदी विगत 23 वर्षों से लोकसंगीत से जुड़ी हैं. देश के कई प्रतिष्ठित मंचों पर अपने गायन की प्रस्तुति दे चुकी हैं. यहीं नहीं अखिल भारतीय नार्मदीय ब्राम्हण समाज द्वारा नार्मदीय गौरव सम्मान, मालवा लोक कला और संस्कृति संस्थान उज्जैन द्वारा बतौर निमाड़ी लोक कलाकार सहित अन्य कई सम्मान प्राप्त कर चुकी हैं.

दूसरी प्रस्तुति

दूसरी प्रस्तुति इन्दर सिंह द्वारा भील जनजाति के भगोरिया और डोहा नृत्य की हुई. भील झाबुआ, अलीराजपुर, धार और बड़वानी क्षेत्र में निवास करने वाली प्रमुख जनजाति है. फागुन मास में होली के 7 दिन पहले से आयोजित होने वाले हाटों में पूरे उत्साह और उमंग के साथ भील युवक और युवतियां इसमें हिस्सा लेती हैं. पारंपरिक रंग-बिरंगे कपड़े और आभूषण के साथ ये नृत्य किया जाता है, जिसे भगोरिया नृत्य कहते हैं.

डोहा का महत्व

डोहा मान्यता से संबंधित उत्सव है. मनोकामना पूर्ण होने पर दिवाली के समय 5 दिन तक घर-घर जाकर डोहा खेला जाता है. गांव के युवक-युवतियां रात में घर-घर जाकर ढोल, थाली और पावली की धुन पर नृत्य और गान करते हैं.

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