भोपाल। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के 2022 के आंकड़ें सामने आए हैं. इन आंकड़ों में पता चला है कि देशभर में हुई आत्महत्या के मामले में एमपी तीसरे नंबर पर व हिंदी राज्यों में पहले नंबर है. देश में हुई 1,70,924 में से 15,386 आत्महत्या मध्यप्रदेश में हुईं है. एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, जहां राष्ट्रीय औसत प्रतिदिन 468 आत्महत्या का है, वहीं प्रदेश में प्रतिदिन 42 लोग या प्रति घंटे लगभग दो लोगों का है. गृह मंत्रालय के अधीन आने वाले एनसीआरबी ने हाल ही में रिपोर्ट जारी की है.
एमपी में हुई 9 प्रतिशत आत्महत्याएं: NCRB डाटा से पता चला है कि महाराष्ट्र में 22,746 आत्महत्या (कुल संख्या का 13.3 प्रतिशत) हुई. इसके बाद तमिलनाडु में 19,834 (11.6 प्रतिशत), मध्यप्रदेश में 15,386 (9 प्रतिशत) आत्महत्या हुईं है. रिपोर्ट के अनुसार कर्नाटक में यह आंकड़ा 13,606 (8 प्रतिशत) और पश्चिम बंगाल में 12,669 (7.4 प्रतिशत) है. वहीं, देश की 17 प्रतिशत आबादी वाले उत्तर प्रदेश में 2022 में हुई आत्महत्याओं से केवल 4.8 प्रतिशत मौतें हुईं हैं. जबकि इन राज्यों में सभी आत्महत्याओं का 49.3 प्रतिशत हिस्सा था, शेष 23 राज्यों और आठ केंद्र शासित प्रदेशों में थे.
सुसाइड में युवा ज्यादा : इससे यह भी पता चला कि देश में अपना जीवन समाप्त करने वाले 59,087 लोग 18-30 आयु वर्ग के थे. इनमें 38,259 पुरुष और 20,828 महिलाएं शामिल थीं. इनमें से 31.7 प्रतिशत लोगों ने पारिवारिक समस्याओं के कारण जबकि 18.4 प्रतिशत लोगों ने बीमारी के कारण आत्महत्या की. पिछले साल एमपी में इंदौर में 746 आत्महत्याएं हुईं. इसके बाद भोपाल में 527, ग्वालियर में 307 और जबलपुर में 213 आत्महत्याएं हुईं.
परामर्श और संचार की कमी: भोपाल के पुलिस आयुक्त एचसी मिश्रा ने बताया कि यह मुख्य रूप से संयुक्त परिवार प्रणाली के कमजोर होने, भावनात्मक बंधन और संचार की कमी के कारण इस तरह आत्महत्या के मामले होते हैं. एचसी मिश्रा ने बताया कि युवा, विशेषकर छात्र उचित परामर्श की कमी के साथ-साथ समाज में संचार की कमी के कारण अपना जीवन समाप्त कर रहे हैं. एचसी मिश्रा ने कहा कि उन्होंने पाया कि मानसिक स्वास्थ्य की उपेक्षा शहर में आत्महत्याओं की उच्च संख्या के कारणों में से एक थी, जिसके बाद विशेषज्ञों को परामर्श और सलाह प्रदान करने के लिए कहा गया था. जो लोग हेल्पलाइन से संपर्क करते हैं. उन्होंने दावा किया कि संवेदनशीलता के मुद्दों पर पुलिस कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने और हेल्पलाइन कॉल का सही ढंग से जवाब देने के परिणामस्वरूप आत्महत्या की संख्या में कमी आई है.
मीडिया कवरेज का भी होता है असर: वहीं मनोचिकित्सक डॉ. वैभव दुबे ने कहा कि परिवार के भीतर संवादहीनता के साथ-साथ कभी-कभी मीडिया में आत्महत्याओं का महिमामंडन और सोशल मीडिया पर लाइव प्रसारित होने वाली घटनाओं के कारण भी संख्या बढ़ रही है. उन्होंने अभिनेता सुशांत सिंह की आत्महत्या का भी जिक्र किया है. जहां मीडिया कवरेज का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि ऐसी कवरेज कभी-कभी लोगों को सोचने पर मजबूर कर देता है कि अपनी जिंदगी खत्म करना ही सबसे आसान समाधान है.