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गजब के मूडी थे मुनव्वर, बड़ी महफिल में ठुकराकर चांदी का ताज कहीं और मुफ्त में पढ़ आए थे मुशायरा

Munnawar Rana Unheard Stories : राहत इंदौरी के बेटे युवा शायर सतलज ने मुनव्वर राणा और राहत इंदौरी की दोस्ती के साथ मुनव्वर राणा के अनसुने किस्से ईटीवी भारत से साझा किए.

Munnawar Rana Unheard Stories
गजब के मूडी थे मुनव्वर
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Jan 15, 2024, 8:07 PM IST

Updated : Jan 15, 2024, 9:04 PM IST

भोपाल. आप जिन्हें मां पर शायरी करने वाले शायर के बतौर जानते हैं, वो मुनव्वर राणा (Munnawar Rana) मनमौजी भी थे. इस दर्जे के मनमौजी कि मुशायरों में पहुंचना उनकी मजबूरी कभी नहीं रहा. गए तो मौज में, छोड़ा तो मर्जी से. ईनाम इकराम को किनारे कर देने का हौसला रखने वाले राणा इस कदर मूडी थे कि जिस इंदौर में उन्हें चांदी का ताज पहनाया जाना था, मूड में आकर उस मुशायरे में नहीं पहुंचे. और मन हुआ तो उस इंदौर की ही एक छोटी सी नशिस्त में शायरी पढ़ने पहुंच गए.

गजब के मूडी थे मुनव्वर

राहत इंदौरी के बेटे युवा शायर सतलज, मुनव्वर राणा और राहत इंदौरी की दोस्ती ही नहीं साथ-साथ पढ़े गए देश विदेश के मुशायरों के भी गवाह रहे हैं. सतलज के साथ ईटीवी भारत ने राणा साहब और राहत इंदौरी की दोस्ती के साथ उस दौर को याद किया. सतलज बताते हैं, 'मुनव्वर राणा साहब इस कदर मूडी शख्सियत थे कि वो किस मुशायरे में आएंगे ये एंकर को मुशायरा शुरु होने तक भी कंफर्म नहीं हो पाता था. उनके लिए मुशायरों में कहा जाता था कि जब आ जाएं तब जानिए कि राणा साहब मुशायरे पढ़ेंगे.'

क्यों चांदी का ताज ठुकरा दिया मुनव्वर ने?

सतलज इंदौर (Indore) के दो किस्सों को जोड़कर सुनाते हैं. राणा साहब किस कदर मूडी थे इसकी मिसाल हैं इंदौर में ही हुआ एक मुशायरा और दूसरी नशिस्त. मुशायरा खजराना में हो रहा था और आयोजन करने वाले चांदी का ताज तैयार किए बैठे थे. मुनव्वर राणा साहब को चांदी का ताज पहनाने की तैयारी थी. लेकिन राणा साहब इस मुशायरे में आए ही नहीं. इसी इंदौर में फिर वो एक नशिस्त में शामिल हुए, मुफ्त में मुशायरा पढ़कर गए. तो वो किसके यहां जाएंगे कहां इंकार हो जाएगा, कहना मुश्किल था. उनकी मौज थी जहां पहुंच जाएं. इसलिए जब तक राणा साहब पहुंच ना जाएं यकीन करना मुश्किल होता था कि वे आएंगे.

Munnawar Rana Unheard Stories
सतलज राहत, मशहूर शायर राहत इंदौरी के बेटे हैं

राणा के लिए क्यों कहते थे जहां खाना, वहां याराना ?

सतलज बताते हैं कि खाने के मुनव्वर साहब बेहद शौकीन थे. यानि ये समझिए कि जिस शहर में वे पहुंच रहे हैं मुशायरे के लिए रास्ते के स्टेशन पर उनके चाहने वाले राणा साहब का पसंदीदा खाना लेकर पहुंचते थे. बाकी जिस शहर जाते थे वहां सबसे पहले अच्छे खाने का बंदोबस्त आयोजकों को रखना पड़ता था. यानी यहां तक कहा जाता था कि उनके लिए कि जहां खाना वहां याराना. ये मज़ाक में कहा जाता था लेकिन हकीकत थी कि वे खाने के बहुत शौकीन थे.

मुशायरे में आंखों से इशारा और सतलज तैनात

सतलज राहत, मशहूर शायर राहत इंदौरी के बेटे हैं लेकिन किसी भी मुशायरे में अपने अब्बू के साथ मुनव्वर राणा साहब का ख्याल उनकी अनकही ड्यूटी थी. सतलज कहते हैं, 'इतने मुशायरों में इन दोनों के साथ गया हूं कि गिनती मुश्किल है.' दोनों के लिए सतलज बेहद बुनियादी जरुरतों की पहली आवाज हुआ करते थे. वो उसी साफगोई से कहते भी हैं, 'मैं दोनों को ही संभालता था. मुशायरों की सबसे ज्यादा याद जो है वो दोनों को वॉशरुम ले जाने की है. दोनों के ही पैर में दिक्कत थी. वो मुशायरे में आंख से इशारा कर देते थे और मैं ले जाता था.' सतलज भावुक होकर कहते हैं, 'कितने मुशायरे उन्हें संभालता रहा...पहले एक हाथ छूटा अब दूसरा भी.

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भोपाल. आप जिन्हें मां पर शायरी करने वाले शायर के बतौर जानते हैं, वो मुनव्वर राणा (Munnawar Rana) मनमौजी भी थे. इस दर्जे के मनमौजी कि मुशायरों में पहुंचना उनकी मजबूरी कभी नहीं रहा. गए तो मौज में, छोड़ा तो मर्जी से. ईनाम इकराम को किनारे कर देने का हौसला रखने वाले राणा इस कदर मूडी थे कि जिस इंदौर में उन्हें चांदी का ताज पहनाया जाना था, मूड में आकर उस मुशायरे में नहीं पहुंचे. और मन हुआ तो उस इंदौर की ही एक छोटी सी नशिस्त में शायरी पढ़ने पहुंच गए.

गजब के मूडी थे मुनव्वर

राहत इंदौरी के बेटे युवा शायर सतलज, मुनव्वर राणा और राहत इंदौरी की दोस्ती ही नहीं साथ-साथ पढ़े गए देश विदेश के मुशायरों के भी गवाह रहे हैं. सतलज के साथ ईटीवी भारत ने राणा साहब और राहत इंदौरी की दोस्ती के साथ उस दौर को याद किया. सतलज बताते हैं, 'मुनव्वर राणा साहब इस कदर मूडी शख्सियत थे कि वो किस मुशायरे में आएंगे ये एंकर को मुशायरा शुरु होने तक भी कंफर्म नहीं हो पाता था. उनके लिए मुशायरों में कहा जाता था कि जब आ जाएं तब जानिए कि राणा साहब मुशायरे पढ़ेंगे.'

क्यों चांदी का ताज ठुकरा दिया मुनव्वर ने?

सतलज इंदौर (Indore) के दो किस्सों को जोड़कर सुनाते हैं. राणा साहब किस कदर मूडी थे इसकी मिसाल हैं इंदौर में ही हुआ एक मुशायरा और दूसरी नशिस्त. मुशायरा खजराना में हो रहा था और आयोजन करने वाले चांदी का ताज तैयार किए बैठे थे. मुनव्वर राणा साहब को चांदी का ताज पहनाने की तैयारी थी. लेकिन राणा साहब इस मुशायरे में आए ही नहीं. इसी इंदौर में फिर वो एक नशिस्त में शामिल हुए, मुफ्त में मुशायरा पढ़कर गए. तो वो किसके यहां जाएंगे कहां इंकार हो जाएगा, कहना मुश्किल था. उनकी मौज थी जहां पहुंच जाएं. इसलिए जब तक राणा साहब पहुंच ना जाएं यकीन करना मुश्किल होता था कि वे आएंगे.

Munnawar Rana Unheard Stories
सतलज राहत, मशहूर शायर राहत इंदौरी के बेटे हैं

राणा के लिए क्यों कहते थे जहां खाना, वहां याराना ?

सतलज बताते हैं कि खाने के मुनव्वर साहब बेहद शौकीन थे. यानि ये समझिए कि जिस शहर में वे पहुंच रहे हैं मुशायरे के लिए रास्ते के स्टेशन पर उनके चाहने वाले राणा साहब का पसंदीदा खाना लेकर पहुंचते थे. बाकी जिस शहर जाते थे वहां सबसे पहले अच्छे खाने का बंदोबस्त आयोजकों को रखना पड़ता था. यानी यहां तक कहा जाता था कि उनके लिए कि जहां खाना वहां याराना. ये मज़ाक में कहा जाता था लेकिन हकीकत थी कि वे खाने के बहुत शौकीन थे.

मुशायरे में आंखों से इशारा और सतलज तैनात

सतलज राहत, मशहूर शायर राहत इंदौरी के बेटे हैं लेकिन किसी भी मुशायरे में अपने अब्बू के साथ मुनव्वर राणा साहब का ख्याल उनकी अनकही ड्यूटी थी. सतलज कहते हैं, 'इतने मुशायरों में इन दोनों के साथ गया हूं कि गिनती मुश्किल है.' दोनों के लिए सतलज बेहद बुनियादी जरुरतों की पहली आवाज हुआ करते थे. वो उसी साफगोई से कहते भी हैं, 'मैं दोनों को ही संभालता था. मुशायरों की सबसे ज्यादा याद जो है वो दोनों को वॉशरुम ले जाने की है. दोनों के ही पैर में दिक्कत थी. वो मुशायरे में आंख से इशारा कर देते थे और मैं ले जाता था.' सतलज भावुक होकर कहते हैं, 'कितने मुशायरे उन्हें संभालता रहा...पहले एक हाथ छूटा अब दूसरा भी.

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Last Updated : Jan 15, 2024, 9:04 PM IST
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