भोपाल। कहते हैं नाम में क्या रखा है, लेकिन व्यापमं नाम को लेकर मध्य प्रदेश सरकार हमेशा विवादों में रही है. व्यापमं का नाम भी सरकार को बदलना पड़ा, एक बार फिर वही व्यापमं का भूत फिर जिंदा होने लगा है. (MP Vyapam Scam) दरअसल दिसंबर 2022 में अचानक फिर एक एफआईआर हुई है, जिसमें दिग्विजय सिंह की शिकायत को आधार बनाया गया है. इस शिकायत में राज्य सरकार के मंत्री, भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ जांच करने की मांग की गई है, लेकिन ऐसे किसी नेता के खिलाफ एफआईआर नहीं हुई है. 8 साल बाद शिकायत में आठ आरोपियों के खिलाफ नामजद एफआईआर (FIR) की गई है.
एसटीएफ में दर्ज हुई FIR वायरल: एक महीने पहले एसटीएफ में दर्ज हुई इस एफआईआर के वायरल होने से यह खुलासा हुआ है, हालांकि शिकायत में दिग्विजय ने मंत्री-भाजपा नेताओं पर निशाना बनाया था, लेकिन जांच में ज्यादातर अनुसूचित जाति व जनजाति के लोग घेरे में हैं. मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह ने अक्टूबर 2014 में व्यापमं घोटाले को लेकर एसटीएफ को शिकायत की थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि भाजपा सरकार के मंत्री, भाजपा नेताओं ने आर्थिक लाभ लेकर अधिकारियों की मिलीभगत से घोटाला किया है. इसलिए उन्होंने एसटीएफ से मांग की थी कि ऐसे चयनित अभ्यर्थियों की जांच की जाए, जिनके निवास के पते एकसमान हैं, जिन्होंने 10वीं-12वीं की परीक्षाएं उत्तरप्रदेश बोर्ड से उत्तीर्ण की हों व मूल निवासी मध्य प्रदेश का दिया हो और जिनके फोटो परीक्षा फार्म व ओएमआर शीट में अलग-अलग हों.
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इन 8 के खिलाफ पर हुई FIR: पिछले महीने जिन लोगों के खिलाफ व्यापमं घोटाले में नई FIR दर्ज हुई है, इसमें बालाघाट खेरलांजी के प्रशांत मेश्राम, मुरैना बामोर के अजय टेंगर, मुरैना बामोर के हरिकिशन जाटव, छत्तीसगढ़ अंबिकापुर के कृष्णकुमार जायसवाल, बड़वानी सोडल के अनिल चौहान, रीवा त्योंथर के शिवशंकर प्रसाद, बड़वानी के अमित बडोले और झाबुआ के सुलवंत सिंह मौर्य शामिल हैं. शिकायत में कहा गया है कि इन सभी ने पीएमटी 2008 व पीएमटी 2009 में परीक्षाओं में सॉल्वर की मदद से परीक्षाएं दी गईं औऱ भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लिया गया.