भोपाल। एमपी की राजनीति में क्या इस बार चुनावी ऊंट कथावाचकों से पूछकर करवट बदलेगा. ये हम इसलिए कह रहे हैं कि पंडित प्रदीप मिश्रा और बागेश्वर धाम की आस्था में अब राजनीतिक तड़का भी लगने लगा है. सियासी दल भी इन संतों को घेर रहे हैं. और राजनेता भी चुनाव से पहले अपने वोट बैंक की मजबूती के लिए इनकी कथाएं करवा रहे हैं.
मिश्रा जी ने मुश्किल में डाला: इस सबके बीच पंडित प्रदीप मिश्रा दो कदम आगे बढ़ गए और उन्होने अपनी कथा में ये कह दिया कि परिवार से एक बेटे को संघ में और एक को बजरंग दल में जाना चाहिए. हांलाकि उनका ये बयान इंदौर में एक कांग्रेसी विधायक के यहां कथा कराने के बाद आया है. याद है ना आपको जिस कथा के दौरान ही पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का वीडियो वायरल हुआ था. अब काग्रेस के जो विधायक इनकी कथा करवा चुके वहां तक तो ठीक है. लेकिन गले की हड्डी फँसने का मामला उनका बन गया जो चुनावी साल में प्रदीप मिश्रा जी की कथा करवाने जा रहे हैं. विधायकों की हालत ये है कि अब ये मामला ना उगलते बन रहा है ना निगलते.
विजयवर्गीय की खरी खरी: बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का कोई भी बयान सीधा सीधा नहीं होता ये तो आप मानेंगे. बयान के आगे और पीछे कई निशाने होते हैं. और व्यापक संदर्भ प्रसंग और व्याख्या होती है. अब हालिया दमोह दौरे में विजयवर्गीय की माफी का मामला ही ले लीजिए. कैलाश विजयवर्गीय ने दमोह में सैकड़ों लोगों की मौजूदगी में पूर्व मंत्री जयंत मलैया से माफी मांगी. माफी उस नोटिस के लिए दमोह उपचुनाव में बीजेपी को मिली हार के लिए जवाबदार मानते हुए जो नोटिस मलैया को थमाया गया था.
अपने बयान से मुश्किल में विजयवर्गीय: अब निशाने तलाशिए तो कैलाश विजयवर्गीय के पहले निशाने पर तो प्रदेश संगठन ही आ गया कि क्या पार्टी के इतने उम्रदराज और पार्टी में लंबी निष्ठा रखने वाले कार्यकर्ता के साथ ऐसा बर्ताव ठीक है. दूसरा कैलाश विजयवर्गीय ने अपनी अल्हैदा सियासत का संदेश भी दे दिया कि वो बीजेपी की उस धारा से आते हैं. जहां किसी भी कार्यकर्ता का आत्मसम्मान का ख्याल रखना सबसे जरुरी है. खैर मुद्दा यहां ये भी है कि एक बार फिर विजयवर्गीय ने अपने बयान से मुश्किल पैदा कर दी है. इस बार विजयवर्गीय ने बीजेपी संगठन को अपनी माफी से मुश्किल में डाल दिया है. पहले सरकार को डाला था तब उन्होने ऐसा ही बेबाक बयान प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी को लेकर दे दिया था.
चिट्ठी-सीडी का जमाना गया, अब हुजूर वीडियो आया है: मध्यप्रदेश की राजनीति में एक दौर था जब चिट्ठियां पहुंचा करती थी. जिनमें टारगेटेड नेताओं का कच्चा चिट्ठा होता था. यानि यूं समझिए कि सारी करतूतें. कई बार तथ्यो की ज़मीनपर ये सही भी होती थी और कई बार कोरी गप्प भी. फिर सीडी का दौर चला चुनावी मौसम सीडी के दौड़ाए जाने का मुफीद मौसम कहा जाता था. और ऐसे सीडी प्रसंगों में कई दिग्गज नेताओं की राजनीति पर पूर्ण विराम लगा भी.
MP Political Gossips: चुनावी माहौल में कर्जमाफी का जिन्न फिर आया बाहर, जयस बिगाड़ेगा सारे खेल..
जमाना बदल गया साहब: सीडी सुनते हुए कुछ नाम तो आपके जहन में भी आ ही गए होंगे. लेकिन साहब अब जमाना बदल गया है. तो वीडियो वायरल हो रहे हैं. और चुनावी साल लगते ही इसमें तेज़ी आई है. अभी तो सरकार के एक मंत्री का ही वीडियो आया है. लेकिन सियासी हल्कों में चर्चाएं हैं कि इस तरह के कुछ और वीडियो भी कतार में है. लेकिन जब वीडियो आए तब हकीकत मानिए. वरना बेवजह क्यों किसी की धड़कनें बढ़ाना.