भोपाल। मध्यप्रदेश की राजनीति के इतिहास में वर्ष 2020 लिखा जाएगा. लिखा क्यों जाएगा आप जानते हैं. यही वो बरस था जिसमें मध्यप्रदेश के राजनीतिक इतिहास की बड़ी घटना हुई. सिंधिया ने अपने समर्थक विधायकों के साथ बीजेपी ज्वाइन करके कांग्रेस की सरकार गिरा दी थी. फिर तो एमपी में राजनीतिक दलों को दलबदल का ऐसा रोग लगा कि पूछिए मत. माना ये जा रहा है कि चुनावी साल में इसका संक्रमण जोर पकड़ सकता है. लेकिन 2020 के हिसाब से सुन ये रहे हैं कि कहानी उलट भी सकती है.
क्या 2023 में बनेगा 2020 का सिक्वल: सियासी हवाओं को पकड़िए तो ऐसी खबर है कि प्रदेश में बीजेपी के कई बड़े नेता इस समय अपना बोरिया बिस्तरा बांध चुके हैं. वे तैयारी किए बैठे हैं कि पार्टी में अगर उनकी अनदेखी हुई तो वो कांग्रेस की ट्रेन पकड़ने में देर नही लगाएंगे. खरगोन-बड़वानी से बीजेपी सांसद रहे माखन सिंह सोलंकी का एपीसोड गवाही के तौर पर बताया जा रहा है. इन्हे बीजेपी में रोकने के लिए भरपूर मान मनौव्वल किया गया लेकिन नेताजी ने एक नहीं सुनी.
नेता जी कितने उतावले: बड़वानी में हुए एक सार्वजनिक कार्यक्रम में अपने साथ बीजेपी कार्यकर्ताओं का लाव-लश्कर लिए नेताजी पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के सामने कांग्रेस की पर्ची कटा ली. अब पार्टी के सामने मुद्दा ये नहीं कि कितने नेता कांग्रेस में जाने के लिए उतावले हो रहे हैं. मुद्दा ये है कि बीजेपी से ये मोहभंग हो क्यों रहा है.
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ईद का माजरा क्या है: ईद से पहले बगलगीर हुए कांग्रेस विधायक...माजरा क्या है? ईद में अभी वक्त है. लेकिन भोपाल में कांग्रेस के 2 विधायकों ने सियासी ईद पहले ही मना ली. मौका माह ए रमज़ान और जैसे होली पर गिले शिकवे मिटाए जाते हैं, बिल्कुल उसी अंदाज में कांग्रेस के ये 2 विधायक दिखे. दोनों विधायक पुराने भोपाल से ताल्लुक रखते हैं. इत्तेफाक से दोनों का नाम भी एक ही है. लेकिन सियासत का अंदाज़ जुदा-जुदा है.
सियासत में दुश्मनी के मंजर: खैर....अब और सस्पेंस नहीं बनाते हैं. सीधा मुद्दे पर आते हैं. तो हुआ ये कि आरिफ अकील ने रमजान के महीने में आरिफ मसूद की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया. सियासत में दुश्मनी के मंजर सामने नहीं आते लेकिन शीत युद्ध चलता रहता है. खैर...आरिफ अकील ने आरिफ मसूद के घर पहुंच सियासी रंजिश खत्म की. आरिफ मसूद के पिता का अपने तरीके से एहतराम किया. आरिफ मसूद ने भी उसी अपनेपन से आरिफ अकील के बेटे को गले लगाया. सुना तो ये भी है कि इस मौके पर मिट्टी डालो पुरानी बातों के अंदाज में वाकई दोनों नेताओं ने मिट्टी भी डाल दी.
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ऐसे आसान होगी बेटे की राह: अब आपका ये सवाल जायज है कि ये सब हुआ क्यों. तो ये केवल कांग्रेस का हाथ मजबूत करने का साथ नहीं है. असल में आरिफ अकील की तबीयत नासाज रहती है. उत्तर भारत में अपनी मजबूत पकड़ बनाए अकील इस सीट से अपनी मिल्कियत जाने नहीं देना चाहते. लिहाजा सुना है कि बेटे के लिए यहां से तैयारी कर रहे हैं. अब आरिफ अकील के बेटे की राह आसान हो सके इसके लिए पहले तो अपनी ही पार्टी के कांटे निकालने होंगे ना.
जरा ठहरें..इनके लिए बन रही जमीन: तो क्या ग्वालियर राजपरिवार के महाआर्यमन सिंधिया राजनीति में आएंगे. ये सवाल अब पुराना हो चुका है. सुना तो ये है कि अब सियासी जमीन के लिए जरुरी ईंट गारा डाला जाने लगा है. सिंधिया के वफादार समर्थक इस जुगत में लग गए हैं कि कैसे सरकारी गैर सरकारी कार्यक्रमों में राजकुमार की मुख्यअतिथि बतौर एंट्री कराई जा सके और माहौल बनाया जा सके.
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डगर कितनी आसान: चर्चा तो ये भी जोर मार रही हैं कि महाआर्यमन 2023 में ही ग्वालियर की किसी सुरक्षित सीट से चुनावी मैदान में उतर सकते हैं. लेकिन क्या डगर इतनी आसान होगी कि ट्रेन में चढ़ते ही सिंधिया जी को अपने बेटे के लिए सीट मिल जाए. वो भी तब जब नरेन्द्र सिंह तोमर से लेकर गोपाल भार्गव तक पुराने मंजे हुए बीजेपी नेताओं के बेटों का रिजर्वेशन कंफर्म नहीं है. तो फिलहाल खाद पानी चलता रहे. चुनाव में ये जमीन वाकई हरिया पाएगी इसमें पूर्ण संदेह हैं.