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Adi Shankaracharya Book: एमपी के आईएएस ने क्यों करवाया शंकराचार्य पर लिखी अपनी किताब का ऊर्दू अनुवाद, जानिए क्या है संदेश

मध्य प्रदेश के ओंकारेश्वर में 108 फुट ऊंची हिंदू संत आदि शंकराचार्य का स्टेच्यू बनकर तैयार हो गया है. जिसकी चर्चा चारों तरफ है. इसके अलावा आदि शंकराचार्य पर लिखी किताब जो एक आईएएस अफसर राजीव शर्मा ने लिखी है. खास बात यह है कि इस किताब का उर्दू में भी अनुवाद है, जो देश में पहला है.

Adi Shankaracharya Book
आदि शंकराचार्य पर लिखी किताब
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Sep 20, 2023, 6:31 PM IST

Updated : Sep 21, 2023, 8:51 AM IST

भोपाल। हिंदू धर्म के दार्शनिक आदिगुरु शंकराचार्य की एमपी में बनी 108 फीट ऊंची प्रतिमा ही ऐतिहासिक नहीं है.. शंकराचार्य के जीवन और उनके संदेश को लेकर एमपी में कई और इतिहास लिखे जा रहे हैं. मध्य प्रदेश के आईएएस और शहडोल जिले के कमिश्नर राजीव शर्मा की शंकराचार्य पर लिखी किताब विद्रोही सन्यासी का अनुवाद अंग्रेजी मराठी के बाद अब उर्दू में आ रहा है. विद्रोही सन्यासी किताब शंकराचार्य पर लिखा ना केवल पहला उपन्यास है. शंकराचार्य के जीवन पर लिखी गई किसी पुस्तक का उर्दू में अनुवाद भी देश में पहला है.

आपकी तरह मेरा भी सवाल था, हिंदूओं के आदिगुरु दार्शनिक शंकराचार्य के जीवन पर लिखी किताब के उर्दू अनुवाद की कोई खास वजह...लेखक राजीव शर्मा कहते हैं शंकराचार्य का संदेश पूरी धरती के लिए है. वो मानव मात्र तक पहुंचना चाहिए. फिर भाषा कोई भी हो. अंग्रेजी में अनुवाद पहले आ चुका है.

Adi Shankaracharya Book
आदि शंकराचार्य पर लिखी किताब

आईएएस का लिखा शंकराचार्य पर उपन्यास..अब उर्दू में: मध्य प्रदेश के आईएएस और इस समय शहडोल कमिश्नर राजीव शर्मा एक अभियान की तरह शंकराचार्य की शिक्षा को जनमानस तक पहुंचाने में जुटे हैं. इसके लिए फिर चाहे भाषा की दीवारें लांघनी पड़ जाएं. अंग्रेजी के बाद अब उनकी ये किताब उर्दू में छपकर आने वाली है. एक हिंदू दार्शनिक संत शंकराचार्य के जीवन और उनकी शिक्षा का उर्दू में अनुवाद कितना मुश्किल है. इससे जरूरी था ये सवाल कि क्या उर्दू में शंकराचार्य पढ़ें जाएंगे.

लेखक राजीव शर्मा ईटीवी भारत से बातचीत में कहते हैं...."शंकराचार्य जी का संदेश सार्वभौमिक है. उसे मानव मात्र तक पहुंचना ही चाहिए. हर मनुष्य को उसे जानना चाहिए. वे बताते हैं असल विद्रोही सन्यासी जब आई तो उसके पाठक मुसलमान नौजवान और प्रोफेसर भी थे. इनकी अच्छी खासी तादाद थी. अंग्रेजी में जब इसका रिव्यू आया तो इसाई धर्म के लोगों में भी किताब को लेकर रुचि दिखाई दी. तो जब मुसलमान समाज का रुझान मैंने देखा तो मुझे लगा कि इस किताब को उर्दू में भी आना चाहिए. हालांकि किसी भी अन्य भाषा की तुलना में उर्दू में ये अनुवाद इसलिए कठिन था कि मेरे प्रतीक मेरी भाषा मेरी उपमाएं सनातनी हैं. उनका सटीक शब्द उर्दू में मिल पाना भी काफी मुश्किल है. फिलहाल किताब का अनुवाद चल रहा है. तीन महीने के भीतर ये अनुवाद पूरा होने की उम्मीद है."

विद्रोही सन्यासी....एक आईएएस का संकल्प: आईएएस राजीव शर्मा कहते हैं "विद्रोही सन्यासी लिखूंगा ये तय हुआ 2004 में. फिर मैं दस साल तक घूमा. हर उस जगह गया जहां आदि शंकराचार्य से कोई कनेक्ट था तो उस मठों में गया. शंकराचार्यों के एक पत्रकार की तरह इंटरव्यू किए. हजारों लोगों को जाना, संवाद किया, शोध कर रहा था . शंकराचार्य पर जिस भाषा में जो भी मिला मैंने उसे पढ़ा. उनकी कार्यपद्धति को समझा. आपका टारगेट रीडर कौन था. राजीव शर्मा कहते हैं मैं नई पीढ़ी का परिचय शंकराचार्य से करवाना चाहता था. असल में ये बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिन्होंने हमारी संस्कृति को खड़ा किया. उनके बारे में मुट्ठी भर लोग जानते हैं. वेद व्यास विश्वामित्र सीरियल ना बने होते तो इनके बारे में भी लोग नहीं जानते. तो सवाल था कि मैं क्या कर सकता हूं. मैंने खुद को जवाब दिया कि शंकराचार्य को जनसामान्य तक ले जा सकता हूं.

यहां पढ़ें...

दस बार ड्राफ्ट फाड़े भी...तब फाईनल किया: बीज किस रुप में फूटेंगे कहा नहीं जा सकता. विद्रोही सन्यासी का लेखक बन जाने के बीज राजीव शर्मा के जीवन में उस वक्त पड़ चुके थे, जब वे आईएएस भी नहीं थे. चौथी-पांचवी कक्षा में उनके पिताजी ने आदिशंकराचार्य पर एक पुस्तक लाकर दी थी. राजीव कहते हैं, ये मेरे जीवन में समा गई. बाद में मैंने देखा कि नेता हो, अधिकारी हो सब ऐसा प्रचारित करते हैं कि सब इन्होंने ही किया, इनकी वजह से सब हुआ है. इसी भ्र्म में जीते हैं खैर, तो जो बीज पड़ा और मैंने विद्रोही सन्यासी लिखी. मैंने ये किताब नई जनरेशन के लिए लिखी है. जब लोगों को बांटने वाला एक विचार वैश्विक स्तर पर दिखाई दे रहा है. तो ये सही समय है कि लोग वेदान्त के बारे में जानें. राजीव कहते हैं, मैंने इस किताब को रिसर्च बुक की तरह नहीं लिखा है. उसे सरल बनाया है. जैसे फिल्म देख रहा हो कोई. विजुलाइज किया पहले फिर लिखा. फिर उसे इन्प्रोवाइज भी किया. दस बार ड्राफ्ट फाड़े भी हैं, फाइनल करने से पहले. उससे किताब में जीवन्तता बनी रहती है.

भोपाल। हिंदू धर्म के दार्शनिक आदिगुरु शंकराचार्य की एमपी में बनी 108 फीट ऊंची प्रतिमा ही ऐतिहासिक नहीं है.. शंकराचार्य के जीवन और उनके संदेश को लेकर एमपी में कई और इतिहास लिखे जा रहे हैं. मध्य प्रदेश के आईएएस और शहडोल जिले के कमिश्नर राजीव शर्मा की शंकराचार्य पर लिखी किताब विद्रोही सन्यासी का अनुवाद अंग्रेजी मराठी के बाद अब उर्दू में आ रहा है. विद्रोही सन्यासी किताब शंकराचार्य पर लिखा ना केवल पहला उपन्यास है. शंकराचार्य के जीवन पर लिखी गई किसी पुस्तक का उर्दू में अनुवाद भी देश में पहला है.

आपकी तरह मेरा भी सवाल था, हिंदूओं के आदिगुरु दार्शनिक शंकराचार्य के जीवन पर लिखी किताब के उर्दू अनुवाद की कोई खास वजह...लेखक राजीव शर्मा कहते हैं शंकराचार्य का संदेश पूरी धरती के लिए है. वो मानव मात्र तक पहुंचना चाहिए. फिर भाषा कोई भी हो. अंग्रेजी में अनुवाद पहले आ चुका है.

Adi Shankaracharya Book
आदि शंकराचार्य पर लिखी किताब

आईएएस का लिखा शंकराचार्य पर उपन्यास..अब उर्दू में: मध्य प्रदेश के आईएएस और इस समय शहडोल कमिश्नर राजीव शर्मा एक अभियान की तरह शंकराचार्य की शिक्षा को जनमानस तक पहुंचाने में जुटे हैं. इसके लिए फिर चाहे भाषा की दीवारें लांघनी पड़ जाएं. अंग्रेजी के बाद अब उनकी ये किताब उर्दू में छपकर आने वाली है. एक हिंदू दार्शनिक संत शंकराचार्य के जीवन और उनकी शिक्षा का उर्दू में अनुवाद कितना मुश्किल है. इससे जरूरी था ये सवाल कि क्या उर्दू में शंकराचार्य पढ़ें जाएंगे.

लेखक राजीव शर्मा ईटीवी भारत से बातचीत में कहते हैं...."शंकराचार्य जी का संदेश सार्वभौमिक है. उसे मानव मात्र तक पहुंचना ही चाहिए. हर मनुष्य को उसे जानना चाहिए. वे बताते हैं असल विद्रोही सन्यासी जब आई तो उसके पाठक मुसलमान नौजवान और प्रोफेसर भी थे. इनकी अच्छी खासी तादाद थी. अंग्रेजी में जब इसका रिव्यू आया तो इसाई धर्म के लोगों में भी किताब को लेकर रुचि दिखाई दी. तो जब मुसलमान समाज का रुझान मैंने देखा तो मुझे लगा कि इस किताब को उर्दू में भी आना चाहिए. हालांकि किसी भी अन्य भाषा की तुलना में उर्दू में ये अनुवाद इसलिए कठिन था कि मेरे प्रतीक मेरी भाषा मेरी उपमाएं सनातनी हैं. उनका सटीक शब्द उर्दू में मिल पाना भी काफी मुश्किल है. फिलहाल किताब का अनुवाद चल रहा है. तीन महीने के भीतर ये अनुवाद पूरा होने की उम्मीद है."

विद्रोही सन्यासी....एक आईएएस का संकल्प: आईएएस राजीव शर्मा कहते हैं "विद्रोही सन्यासी लिखूंगा ये तय हुआ 2004 में. फिर मैं दस साल तक घूमा. हर उस जगह गया जहां आदि शंकराचार्य से कोई कनेक्ट था तो उस मठों में गया. शंकराचार्यों के एक पत्रकार की तरह इंटरव्यू किए. हजारों लोगों को जाना, संवाद किया, शोध कर रहा था . शंकराचार्य पर जिस भाषा में जो भी मिला मैंने उसे पढ़ा. उनकी कार्यपद्धति को समझा. आपका टारगेट रीडर कौन था. राजीव शर्मा कहते हैं मैं नई पीढ़ी का परिचय शंकराचार्य से करवाना चाहता था. असल में ये बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिन्होंने हमारी संस्कृति को खड़ा किया. उनके बारे में मुट्ठी भर लोग जानते हैं. वेद व्यास विश्वामित्र सीरियल ना बने होते तो इनके बारे में भी लोग नहीं जानते. तो सवाल था कि मैं क्या कर सकता हूं. मैंने खुद को जवाब दिया कि शंकराचार्य को जनसामान्य तक ले जा सकता हूं.

यहां पढ़ें...

दस बार ड्राफ्ट फाड़े भी...तब फाईनल किया: बीज किस रुप में फूटेंगे कहा नहीं जा सकता. विद्रोही सन्यासी का लेखक बन जाने के बीज राजीव शर्मा के जीवन में उस वक्त पड़ चुके थे, जब वे आईएएस भी नहीं थे. चौथी-पांचवी कक्षा में उनके पिताजी ने आदिशंकराचार्य पर एक पुस्तक लाकर दी थी. राजीव कहते हैं, ये मेरे जीवन में समा गई. बाद में मैंने देखा कि नेता हो, अधिकारी हो सब ऐसा प्रचारित करते हैं कि सब इन्होंने ही किया, इनकी वजह से सब हुआ है. इसी भ्र्म में जीते हैं खैर, तो जो बीज पड़ा और मैंने विद्रोही सन्यासी लिखी. मैंने ये किताब नई जनरेशन के लिए लिखी है. जब लोगों को बांटने वाला एक विचार वैश्विक स्तर पर दिखाई दे रहा है. तो ये सही समय है कि लोग वेदान्त के बारे में जानें. राजीव कहते हैं, मैंने इस किताब को रिसर्च बुक की तरह नहीं लिखा है. उसे सरल बनाया है. जैसे फिल्म देख रहा हो कोई. विजुलाइज किया पहले फिर लिखा. फिर उसे इन्प्रोवाइज भी किया. दस बार ड्राफ्ट फाड़े भी हैं, फाइनल करने से पहले. उससे किताब में जीवन्तता बनी रहती है.

Last Updated : Sep 21, 2023, 8:51 AM IST
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