भोपाल। एक तरफ शिवराज सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस का दावा करती है,लेकिन दूसरी तरफ भ्रष्टों पर कार्रवाई करने वाली एजेंसी लोकायुक्त को सरकार अभियोजन की स्वीकृति नहीं देती. यही वजह है कि एमपी के सरकारी दफ्तरों में भ्रष्टाचार बढ़ गया है. लोकायुक्त ने अपनी सालाना रिपोर्ट में बड़ा खुलासा किया है. प्रदेश में 26 फीसदी भ्रष्टाचार के मामले बढ़े हैं. एक साल के अंदर 279 सरकारी कर्मचारियों को ट्रैप किया गया. 2021 में लोकायुक्त ने 252 भ्रष्टाचारियों को रिश्वत लेते पकड़ा था. 2021 की तुलना 2022 में 12 फ़ीसदी ज्यादा केस दर्ज किए गए. रिश्वत लेने के मामले में पटवारी, क्लर्क, डॉक्टर, डायरेक्टर ,इंजीनियर, नायब तहसीलदार,रेंजर, सीईओ, एसडीओ, रेवेन्यू इंस्पेक्टर शामिल हैं.
सरकार भ्रष्ट अफसरों पर मेहरबानः मध्यप्रदेश में सरकार भ्रष्ट अफसरों पर मेहरबान है. शायद इसी वजह से सरकार ने लोकायुक्त को भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारियों के खिलाफ जांच की मंजूरी देने में कंजूसी की है. 2014 से लेकर अभी तक करीब 295 अफसर हैं. जिनके खिलाफ लोकायुक्त ने कार्रवाई की, लेकिन शासन की मंजूरी न मिलने के कारण इनके खिलाफ चार्जशीट ही पेश नहीं हो पा रही. कई बार पत्राचार के बावजूद संबंधित विभाग अभियोजन की स्वीकृति में आनाकानी कर रहे हैं. कुछ विभाग तो लोकायुक्त की चिट्ठी का जवाब तक नहीं दे रहे.
9 साल से लंबित हैं केसः भ्रष्टाचार के 15 केस 9 साल से लंबित हैं. सबसे ज्यादा नगरीय आवास और विकास विभाग के लगभग 31 मामले लंबित हैं. सामान्य प्रशासन विभाग और पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के 35 मामले लंबित हैं. वहीं राजस्व विभाग के 28 और स्वास्थ विभाग के 19 मामले लंबित हैं. अभियोजन स्वीकृति समय पर नहीं मिलने के कारण चार्जशीट पेश करने में देर हो रही है. नियम के मुताबिक अधिकतम 4 महीने में अभियोजन की स्वीकृति संबंधित विभाग को अधिकारी या कर्मचारी के खिलाफ दे देना चाहिए, लेकिन यहां जो आंकड़ा है वो महीनों का नहीं बल्कि सालों का है.
किस साल में कितने केस जिन्हें अभियोजन की स्वीकृति का इंतजारः
- 2014 - 14
- 2015- 14
- 2016 - 07
- 2017- 03
- 2018 - 19
- 2019- 29
- 2020- 24
- 2021- 50
9.2022- 135
लोकायुक्त संगठन ने दी अधिकृत जानकारीः विशेष पुलिस स्थापना, लोकायुक्त संगठन मप्र. में दीर्घ अवधि से विवेचना में लंबित पुराने आपराधिक प्रकरणों के निराकरण के लिए रणनीति बनाई गई. विवेचना अधिकारियों को निर्देशित किया गया कि प्राथमिकता के आधार पर त्वरित गति से ठोस आधारों पर विवेचना पूर्ण की जाए तथा प्रभावी अभियोजन कर अधिकतम सजा का प्रयास किया जाए. महानिदेशक, विशेष पुलिस स्थापना के स्तर से प्रकरणों की सतत समीक्षा कर आवश्यक दिशा-निर्देश दिए गये तथा त्वरित निराकरण हेतु समुचित मॉनिटिरिंग भी की गई.
क्या कहते हैं पूर्व लोकायुक्तः पूर्व लोकायुक्त रहे पीपी नावलेकर का कहना है कि उनके कार्यकाल में सरकार ने अभियोजन की स्वीकृतियां दीं, लेकिन कई मामलों में विभाग अभियोजन की स्वीकृति नहीं देते है. जिसके कारण मामले पेंडिंग हो जाते हैं. किसी अफसर, कर्मचारी के पास आय से अधिक संपत्ति है या नहीं? सरकारी काम में भ्रष्टाचार किया है या नहीं? यह कोर्ट तय करती है. सरकार के अनुमति नहीं देने से ईओडब्ल्यू, लोकायुक्त पुलिस के प्रकरण जबरन लंबित रहते हैं. जांच पूरी होने के बाद भी चालान पेश नहीं कर पाते. मैं जब लोकायुक्त था, तब भी सरकार को कई बार अभियोजन की स्वीकृति देने के लिए पत्र लिखे. मेरे कार्यकाल में केस की अभियोजन स्वीकृतियां दी गईं.
बीजेपी और कांग्रेस आमने-सामनेः बीजेपी प्रवक्ता हितेश वाजपेई का कहना है कि शिवराज सरकार भ्रष्टाचारियों के खिलाफ लगातार कार्यवाई कर रही है. हमारी पॉलिसी भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की है. वहीं कांग्रेस प्रवक्ता केके मिश्रा का कहना है कि शिवराज सरकार पिछले 18 सालों से सत्ता में है, लेकिन प्रदेश के आईएएस, आईपीएस या अन्य अधिकारियों पर अकूत संपत्ति है और सरकार उन्हें संरक्षण देती है. इतने सालों में सरकार बताते दें कि किस बड़े अधिकारी के खिलाफ कार्यवाई की गई. सरकार और अधिकारी मिलकर भ्रष्टाचार कर रहे हैं.