भोपाल। चुनावी साल में किसान की चौतरफा हुंकार है. खुद को किसान हितैषी होने का दावा कर रही शिवराज सरकार में किसानों को लागत का सही मूल्य मिल नहीं पा रहा है. खाद के लिए किसान परेशान हैं. जिस प्रदेश की 72 फीसदी आबादी गांव में रहती हो. उसमें भी ज्यादातर किसान वहां चुनावी साल में अन्नदाता के ये तेवर और आंदोलन, सरकार की अग्निपरीक्षा हैं. भारतीय किसान संघ के बैनर पर भोपाल में जुटे किसान संगठनों और किसानों ने केवल ट्रेलर दिखाया है. अब संयुक्त किसान मोर्चा पूरे प्रदेश में किसानों की मांगों को लेकर सड़क पर उतरने की तैयारी में है.
मुश्किल बढ़ाएगा संयुक्त किसान मोर्चा किसान : संयुक्त किसान मोर्चा अब नए तेवर के साथ पूरे देश में सड़क पर उतरने की तैयारी कर रहा है. वजह ये है कि यहां 72 फीसदी आबादी खेती- किसानी से ही ताल्लुक रखती है. संयुक्त किसान मोर्चे ने सरकार से मिले आश्वासन के पूरे ना होने की स्थिति में अब पूरे आंदोलन को दुबारा खड़ा करने की तैयारी कर ली है. आंदोलन के प्रदेश संयोजक बादल सरोज के मुताबिक सरकार ने लिखित में जो आश्वासन दिया था, वो लागू नहीं किया. एमएसपी का कानून नहीं बना अब तक. कर्जमाफी को लेकर भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई. बिजली का कानून बिना किसानों से बातचीत के लागू कर दिया गया. लिहाजा अब 26 नवम्बर को सभी लंबित मांगों को लेकर मध्यप्रदेश समेत पूरे देश में संयुक्त किसान मोर्चा राज्यपाल को अपने मागं पत्र का ज्ञापन सौंपेगा. ज्ञापन की ये प्रमुख मांगें हैं. एमएसपी का कानून बनाया जाए. लखीमपुरी खीरी में गृह राज्य मत्री टैनी मिश्रा दोषी पाए गए थे, उनकी बर्खास्तगी हों. किसानों की कर्जे से मुक्ति के लिए कानून लाया जाए. बिजली कानून वापस लिया जाए.
मध्यप्रदेश में भूमि विस्थापन का मुद्दा : भारतीय किसान संघ इस मांग पर अड़ा है कि सरकार सात दिन का विशेष सत्र बुलाए. जिसमें खेती- किसानों से जुड़ी समस्याओं पर ही चर्चा की जाए. जिसमे खाद संकट से लेकर उपज का सही मूल्य समेत कई मांगें हैं. संघ की मांग है कि किसानों से जुड़े विभाग समस्याओं पर सामूहिक रूप से चिंतन मंथन करें. इसके लिए भारतीय किसान संघ ने 180 से ज्यादा किसानों को ज्ञापन भी सौंपे हैं. भारतीय किसान संघ के प्रदेश अध्यक्ष कमल सिंह अंजाना ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि अभी सरकार ने हमें 15 दिन का आश्वासन दिया है. हम प्रतीक्षा कर रहे हैं. अगर मांगें नहीं मानी गईं तो पूरे मध्यप्रदेश में जिला और तहसील स्तर पर उग्र आंदोलन होगा. 19 दिसम्बर को हम लोग किसानों की मांग को लेकर दिल्ली कूच कर रहे हैं. अंजाना का कहना है कि हम चाहते हैं कि दिसम्बर में होने वाले विधानसभा सत्र को ही सरकार किसानों की समस्याओं के लिए समर्पित करे.
एमपी में किसान के हाथ में है सत्ता की चाबी : मध्यप्रदेश की 80 फीसदी आबादी ग्रामीण है और किसान इस प्रदेश का निर्णायक वोटर हैं. 230 विधानसभा सीटों से 170 से ज्यादा ऐसी सीटें हैं, जहां किसान का वोट ही जीत - हार तय करता है. 2013 के विधानसभा चुनाव में ब्याज जीरो शिवराज हीरो के मुद्दे ने बीजेपी को सत्ता की हैट्रिक दिलाई तो 2018 में किसान कर्जमाफी के मुद्दे पर सवार होकर काग्रेस सत्ता तक पहुंची. इस बार भी जिसके साथ किसान वोटर जाएगा. उस सियासी दल की जीत तय है. खास बात ये है कि इस बार किसान राजनीतिक दलों के भुलावे में नहीं हैं.